सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी EVM पर अपनी स्पष्ट मुहर लगा दी, लेकिन 40 साल पहले, जब केरल के पारूर विधानसभा क्षेत्र में पहली बार EVM का इस्तेमाल किया गया था, तो अदालत ने चुनाव को रद्द कर दिया था और 85 मतदान केंद्रों में से 50 पर पुनर्मतदान का आदेश दिया था. अगस्त 1980 में, इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL) ने राजनीतिक दलों के सामने एक प्रोटोटाइप वोटिंग मशीन प्रस्तुत की.
इसके दो साल बाद, 1982 में, भारत के चुनाव आयोग (ECI) ने घोषणा की कि केरल में उस वर्ष के विधानसभा चुनावों के दौरान पारूर निर्वाचन क्षेत्र के 84 मतदान केंद्रों में से 50 में इस मशीन का उपयोग पायलट प्रोजेक्ट के रूप में किया जाएगा. केंद्र सरकार ने मशीनों के उपयोग को मंजूरी नहीं दी थी, लेकिन ईसीआई ने अनुच्छेद 324 के तहत अपनी संवैधानिक शक्तियों का इस्तेमाल किया, जो उसे चुनावों पर “अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण” की शक्ति देता है.
कांग्रेस कैंडिडेट गए कोर्ट
20 मई 1982 को घोषित परिणाम में सिवन पिल्लई (सीपीआई) ने अंबत चाको जोस (कांग्रेस) को 123 वोटों से हराया. पिल्लई को 30,450 वोट मिले, जिनमें से 19,182 वोटिंग मशीनों का उपयोग करके डाले गए. चाको जोस ने परिणाम को ट्रायल कोर्ट में चुनौती दी और कोर्ट ने मशीनों के माध्यम से मतदान की वैधता और चुनाव परिणाम को बरकरार रखा. इसके बाद जोस सुप्रीम कोर्ट चले गए और वहां अपील की. उच्चतम न्यायालय में जस्टिस मुर्तजा फजल अली, अप्पाजी वरदराजन और रंगनाथ मिश्रा की बेंच ने मामले की सुनवाई की.
चुनाव आयोग ने क्या तर्क दिया?
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 324 के तहत उसकी शक्तियां संसद के किसी भी अधिनियम का स्थान ले लेंगी, और यदि कानून और ईसीआई की शक्तियों के बीच टकराव होता है, तो कानून आयोग के अधीन हो जाएगा. इस दलील के जवाब में न्यायमूर्ति फ़ज़ल अली ने लिखा, “यह बहुत ही आकर्षक तर्क है लेकिन बारीकी से जांच करने और गहन विचार-विमर्श करने पर यह 324 के दायरे में नहीं आता है और उससे असंबद्ध है…”.
बेंच ने सर्वसम्मति से दिये अपने फैसले में कहा कि वोटिंग मशीन पेश करना एक विधायी शक्ति है, जिसका प्रयोग केवल संसद और राज्य विधानसभाएं ही कर सकती हैं (अनुच्छेद 326 और 327), ईसीआई नहीं.
सुप्रीम कोर्ट ने नहीं मानी दलील
ईसीआई ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 59 और चुनाव आचरण नियम, 1961 के नियम 49 का भी हवाला दिया. धारा 59 कहती है, “वोट मतपत्र द्वारा अथवा निर्धारित तरीके से डाले जाएंगे…”. आगे कहा गया है कि ईसीआई “मतदान से जुड़ा निर्देश देने के लिए एक अधिसूचना प्रकाशित कर सकता है और अधिसूचना में निर्दिष्ट मतदान केंद्रों पर मतपत्र द्वारा मतदान अथवा निर्धारित पद्धति का पालन किया जाएगा..”
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान मतदान के लिए ”निर्धारित पद्धति” की व्याख्या करते हुए कहा कि इससे आशय मतपत्र का उपयोग करना था, ना कि वोटिंग मशीनों का. अदालत ने यह भी माना कि ‘मतपत्र’ शब्द के “सख्त अर्थ” में वोटिंग मशीनों के माध्यम से मतदान शामिल नहीं होगा. अदालत ने कहा कि “यदि यांत्रिक प्रक्रिया अपनाई जाती है, तो मतदाताओं को पूर्ण और उचित प्रशिक्षण देना होगा, जिसमें काफी समय लगेगा.”.
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव कर दिया रद्द
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद पारूर विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव हुए और ईवीएम का विरोध करने वाले चाको जोस ने जीत दर्ज की. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बावजूद चुनाव आयोग ने बैलट पेपर की जगह वोटिंग मशीन से मतदान का विचार नहीं छोड़ा. साल 1988 में चुनाव कानून में संशोधन किया गय और इसमें धारा 61ए शामिल की गई. इस धारा में प्रावधान किया गया कि चुनाव आयोग ईवीएम से मतदान करवा सकता है.
एक दशक बाद EVM की वापसी
इसके करीब एक दशक बाद मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली की 16 विधानसभा सीटों पर ईवीएम का इस्तेमाल किया गया. फिर साल 1999 में 46 लोकसभा सीटों पर भी ईवीएम के जरिये वोटिंग हुई. 2001 में, तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी और पश्चिम बंगाल में राज्य चुनाव पूरी तरह से ईवीएम का उपयोग करके आयोजित किए गए. 2004 के लोकसभा चुनाव तक, सभी 543 सीटों पर मतपत्रों की जगह ईवीएम ने ले ली थी. तब से सभी चुनाव में ईवीएम का इस्तेमाल हो रहा है.
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Tags: 2024 Loksabha Election, EVM, Loksabha Election 2024, Loksabha Elections, Supreme CourtFIRST PUBLISHED : April 27, 2024, 09:55 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed