वो शख्स जो चपरासी से बना CJI जिनके एक फैसले से सांसत में पड़ी थी सरकार
वो शख्स जो चपरासी से बना CJI जिनके एक फैसले से सांसत में पड़ी थी सरकार
Sarosh Homi Kapadia: सरोश होमी कपाड़िया के पिता एक अनाथालय में पले-बढ़े थे. उनके परिवार का गुजारा मुश्किल से होता था. ऐसे में सरोश होमी कपाड़िया ने जज बनने का न केवल सपना देखा, बल्कि उसे साकार भी किया. उन्होंने शुरुआत में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी के तौर पर काम किया. फिर वह क्लर्क बने. उसके बाद उन्होंने तेजी से तरक्की की सीढ़ियां चढ़ीं और वह भारत के 16वें मुख्य न्यायाधीश बने.
Sarosh Homi Kapadia: यह एक ऐसे शख्स की कहानी है, जो कहती है कि अगर आप में प्रतिभा है और मेहनत करने का माद्दा है तो आप कहीं भी पहुंच सकते हैं. यह कहानी है सरोश होमी कपाड़िया की, जो बेहद गरीबी से उठकर सुप्रीम कोर्ट के शीर्ष पद तक पहुंचे. एसएच कपाड़िया ने अपने करियर की शुरुआत एक चपरासी के तौर पर की थी. बाद में वह क्लर्क बने और कानून की पढ़ाई की. अपनी कड़ी मेहनत और कुशाग्र बुद्धि के बल पर वह सुप्रीम कोर्ट के 16वें चीफ जस्टिस बने.
सरोश होमी कपाड़िया के पिता सूरत के एक अनाथालय में पले-बढ़े थे. पढ़ लिखकर वह रक्षा विभाग में क्लर्क के पद पर काम करने लगे थे. उनकी पत्नी केटी एक हाउसवाइफ थीं. उनके रहन-सहन का स्तर आम पारसियों जैसा भी नहीं था. परिवार मुश्किल से अपना गुजारा करता था. 29 सितंबर 1947 को मुंबई में जन्मे सरोश होमी ने ऐसे माहौल में भी ठान लिया था कि कानून के पेशे में अपना करियर बनाएंगे. वह शुरू से ही जज बनना चाहते थे.
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एक वकील ने पहचानी प्रतिभा
सरोश होमी कपाड़िया ने जब परिवार की मदद के लिए काम शुरू किया तो वह मुंबई के बेहरामजी जीजीभॉय के यहां चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी यानी चपरासी बन गए. उनका काम बेहरामजी जीजीभॉय के मुकदमों की फाइल वकीलों तक पहुंचाना था. बेहरामजी जीजीभॉय तत्कालीन बॉम्बे में काफी जमीनों के मालिक थे, जिससे उनको काफी पैसा मिलता था. अपनी जमीनों की वजह से उनके काफी मुकदमें चलते रहते थे. उनके सभी केसों को गगरेट एंड कंपनी लॉ फर्म संभालती थी. इस फर्म में एक युवा वकील थे रत्नाकर डी सुलाखे. रत्नाकर को समझ में आ गया था कि सरोश होमी की कानून में दिलचस्पी है. उन्होंने सरोश होमी को लॉ की पढ़ाई करने और जज बनने के लिए प्रोत्साहित किया.
नौकरी के साथ एलएलबी की पढ़ाई
बेहरामजी जीजीभॉय के यहां चपरासी का काम करते हुए सरोश होमी कपाड़िया ने एलएलबी पूरी की. पढ़ाई के दौरान उनको तरक्की देकर क्लर्क बना दिया गया था. लॉ पूरा होने के बाद उन्होंने वकालत करने के लिए रजिस्ट्रेशन करवा लिया. वह उस दौर के एक सीनियर वकील फिरोज दमानिया के साथ जुड़ गए और उनके जूनियर के तौर पर काम करने लगे. उन्होंने जमीन और रेवेन्यू से जुड़े केस लड़ने शुरू कर दिए थे. इस मामले में उनकी समझ काफी अच्छी थी. वह अपने केस बहुत मेहनत से तैयार करते थे और जोरदार बहस किया करते थे. जल्दी ही उनका नाम अच्छा वकीलों में शुमार किया जाने लगा था.
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किस तरह चढ़ीं सफलता की सीढ़ियां
सरोश होमी कपाड़िया को 23 मार्च, 1993 को बॉम्बे हाईकोर्ट में जज नियुक्त किया गया. लगभग दस साल बाद उन्हें पांच अगस्त, 2003 को उत्तराखंड हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश (CJI) बनाया गया. उसी साल 18 दिसंबर को उन्हें प्रमोट कर सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया. फिर आया वो दिन जिसे उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा दिन कहा जा सकता है. 12 मई, 2010 को वह भारत के मुख्य न्यायाधीश बने. वह 29 सितंबर 2012 तक इस पद पर रहे. 4 जनवरी 2016 को मुंबई में उनका निधन हो गया.
जिस फैसले ने किया चर्चित
वैसे तो सरोश होमी कपाड़िया ने सीजेआई रहते हुए कई बड़े फैसले दिए. लेकिन उनके एक फैसले ने तत्कालीन मनमोहन सिंह की सरकार को मुश्किल में डाल दिया था. कपाड़िया की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने 3 मार्च 2011 को मुख्य सतर्कता आयुक्त पोलायल जोसेफ थॉमस की नियुक्ति को रद कर दिया था. यह नियुक्ति तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गृह मंत्री पी. चिदंबरम और विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज वाली उच्चाधिकार प्राप्त समिति द्वारा की गई थी. हालांकि सुषमा स्वराज ने इस नियुक्ति के खिलाफ अपना मत दिया था. शीर्ष अदालत के इस फैसले से मनमोहन सरकार को काफी शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को इस नियुक्ति में अपनी गलती स्वीकार करनी पड़ी थी. इसके अलावा भी सरोश होमी कपाड़िया ने कई अहम फैसले सुनाए.
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छुट्टियां लेने से करते थे परहेज
सरोश होमी कपाड़िया बेहद जरूरी होने पर ही अवकाश लिया करते थे. अपने काम के प्रति उनकी दीवानगी इस कदर थी कि सीजेआई का पदभार ग्रहण करने के बाद पहले दिन उन्होंने आधे घंटे में 39 मामलों का निपटारा कर दिया. उनके इस काम की आज भी चर्चा होती है. ये उनका अपने काम को लेकर लगाव ही था कि उन्होंने हैदराबाद में कॉमनवेल्थ लॉ एसोसिएशन के सम्मेलन में भाग लेने का न्योता ठुकरा दिया. क्योंकि उस दिन उन्हें सुप्रीम कोर्ट जाना था, वो उनका काम करने का दिन था. जबकि उन्हें इस सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करना था. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का चीफ जस्टिस बनने के बाद स्वतंत्रता दिवस समारोह के मौके पर कहा था, “मैं एक गरीब परिवार से आता हूं. मैंने अपना करियर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के रूप में शुरू किया. मेरी ईमानदारी ही मेरी संपत्ति है.”
Tags: Bombay high court, Chief Justice, Chief Justice of India, Supreme Court, Supreme court of indiaFIRST PUBLISHED : September 20, 2024, 12:50 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed