क्या है संविधान का अनुच्छेद 32 जिसकी ओट ले रहा इस्लामिक उपदेशक जाकिर नाइक
क्या है संविधान का अनुच्छेद 32 जिसकी ओट ले रहा इस्लामिक उपदेशक जाकिर नाइक
Islamic Preacher Zakir Naik: क्या है संविधान को वो अनुच्छेद-32 जिसकी आड़ लेकर विवादित इस्लामिक उपदेशक जाकिर नाइक ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. जाकिर नाइक ने कई राज्यों में उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को एक साथ जोड़ने का अनुरोध किया था. जिसके औचित्य पर सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने सवाल उठाया है.
हाइलाइट्स जाकिर नाइक अपने बयानों की वजह से अक्सर सुर्खियों में रहते हैं कई राज्यों में दर्ज एफआईआर को एक साथ जोड़ने का अनुरोध किया उपदेशक ने यह याचिका संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत दायर की
Islamic Preacher Zakir Naik: इस्लामिक उपदेशक जाकिर नाइक अपने बयानों की वजह से अक्सर सुर्खियों में रहते हैं. लेकिन ताजा मामला जाकिर नाइक की सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई याचिका का है. उनकी याचिका पर महाराष्ट्र सरकार ने गंभीर सवाल उठाए हैं. जाकिर नाइक ने साल 2012 में गणपति उत्सव के दौरान कई कथित आपत्तिजनक बयान दिए थे. जिसे लेकर कई राज्यों में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी. उन्होंने उन्हीं एफआईआर को एक साथ जोड़ने के अनुरोध किया था.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न केवल सुप्रीम कोर्ट से जाकिर नाइक की याचिका को खारिज करने की मांग की बल्कि इसके औचित्य पर भी सवाल उठाया है. जाकिर नाइक ने यह याचिका संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत ((मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए) दायर की थी. तुषार मेहता ने जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस एहसानुद्दीन अमानुल्ला और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के सामने सवाल उठाया कि एक व्यक्ति जो भगोड़ा घोषित किया गया है, वह संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत याचिका कैसे दायर कर सकता है? मेहता ने कहा कि जाकिर नाइक भगोड़ा है और सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में दखल देने का अधिकार नहीं है.
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क्या है संविधान का अनुच्छेद-32
संविधान का अनुच्छेद-32 (संवैधानिक उपचारों का अधिकार) दरअसल यह एक मौलिक अधिकार है, जो भारत के प्रत्येक नागरिक को संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त अन्य मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने का अधिकार देता है. इसे इस तरह भी कहा जा सकता है कि संवैधानिक उपचारों का अधिकार स्वयं में कोई अधिकार न होकर अन्य मौलिक अधिकारों की रक्षा करने का उपाय है. इसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति मौलिक अधिकारों के हनन की स्थिति में अदालत की शरण ले सकता है. इसलिए डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अनुच्छेद-32 को संविधान का सबसे महत्वपूर्ण अनुच्छेद बताते हुए कहा था कि इसके बिना संविधान अर्थहीन है, यह संविधान की आत्मा और हृदय है.
अदालत करेगी मौलिक अधिकारों की रक्षा
न्यायालय के पास किसी भी मौलिक अधिकार की रक्षा के लिए निर्देश, आदेश या रिट जारी करने का अधिकार है. इसकी रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) रिट, परमादेश रिट (Mandamus), प्रतिषेध रिट (Prohibition), उत्प्रेषण रिट (Certiorari) और अधिकार पृच्छा रिट (Qua Warranto) जारी की जा सकती है. संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक, राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए किसी भी अदालत के सामने याचिका दायर करने के अधिकार को निलंबित कर सकता है. इसके अलावा अन्य किसी भी स्थिति में इस अधिकार को निलंबित नहीं किया जा सकता है.
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… लेकिन अदालत का विशेषाधिकार नहीं
मौलिक अधिकारों की रक्षा के मामले में सुप्रीम कोर्ट का मूल क्षेत्राधिकार तो है किंतु यह अदालत का विशेषाधिकार नहीं है. यह सुप्रीम कोर्ट का मूल क्षेत्राधिकार इस अर्थ में है कि इसके तहत एक पीड़ित नागरिक सीधे सुप्रीम कोर्ट में जा सकता है. हालांकि यह सुप्रीम कोर्ट का विशेषाधिकार नहीं है, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट को भी मौलिक अधिकारों को बचाने के लिए रिट जारी करने का अधिकार दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फैसलों में कहा है कि जहां अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट के जरिये राहत प्रदान की जा सकती है, वहां पीड़ित पक्ष को सबसे पहले हाईकोर्ट के पास ही जाना चाहिए. साल 1997 में चंद्र कुमार बनाम भारत संघ वाद में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि रिट जारी करने को लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों के अधिकार क्षेत्र संविधान के मूल ढांचे का एक हिस्सा हैं.
क्या है संविधान का अनुच्छेद 226
अनुच्छेद-226 हाईकोर्ट को नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा और ‘किसी अन्य उद्देश्य’ के लिए सभी प्रकार की रिट जारी करने का अधिकार प्रदान करता है. यहां ‘किसी अन्य उद्देश्य’ का अर्थ किसी सामान्य कानूनी अधिकार का बचाव करने रो लेकर है. इस प्रकार रिट को लेकर हाईकोर्ट का अधिकार क्षेत्र सुप्रीम कोर्ट की तुलना में काफी व्यापक है. जहां एक ओर सुप्रीम कोर्ट केवल मौलिक अधिकारों के हनन की स्थिति में ही रिट जारी कर सकता है, वहीं हाईकोर्ट को किसी अन्य उद्देश्य के लिए भी रिट जारी करने का अधिकार है.
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कौन है जाकिर नाइक
जाकिर नाइक पेशे से डॉक्टर है और वह भारत छोड़ने से पहले मुंबई में रहता था. जाकिर नाइक अहमद दीदात से प्रभावित होकर इस्लामिक उपदेशक बना था. वह इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन का संस्थापक और अध्यक्ष है. लेकिन यह संस्था भारत में प्रतिबंधित है. जाकिर नाइक दो टीवी चैनल भी चलाता था. उसके द्वारा संचालित दो चैनल, पीस टीवी और पीस टीवी उर्दू, भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका, कनाडा और यूनाइटेड किंगडम सहित कई देशों में प्रतिबंधित हैं. नाइक पर आरोप है कि उसके भाषणों से प्रभावित होकर 2016 में ढाका में होली आर्टिसन बेकरी में बम विस्फोट किए गए थे. इस घटना में 20 लोग मारे गए थे. इसके अलावा 2019 में श्रीलंका में ईस्टर बम विस्फोटों में 250 से अधिक लोग मारे गए थे. इस विस्फोट को अंजाम देने वाले भी जाकिर नाइक से प्रभावित थे.
हाल ही किन बयानों पर मचा बवाल
जाकिर नाइक एक इस्लामिक उपदेशक हैं, लेकिन वह अपने बयानों की वजह से विवादों में घिरे रहते हैं. हाल ही में पाकिस्तान में अपने बयानों के कारण उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ा था. खासकर उनके द्वारा महिलाओं पर दिए गए बयानों से गुस्सा भड़का है.यह विवाद तब हुआ जब जाकिर नाइक ने एक कार्यक्रम में एक छात्रा के सवाल पर जवाब देते हुए कुंवारी लड़कियों को बाजारू कहकर उनकी तुलना पब्लिक प्रॉपर्टी से कर दी. यही नहीं, जाकिर नाइक ने महिला टीवी न्यूज एंकर को पुरुषों को उत्तेजित करने वाला बताया. उन्होंने तो ये तक कह दिया कि अगर महिला एंकर को देखकर पुरुष को कुछ नहीं होता है, तो वह मेडिकली फिट ही नहीं है.
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कहां रहते हैं जाकिर नाइक
जाकिर नाइक अभी मलेशिया में रहते हैं. वहा भी उन्हें नस्ली रूप से संवेदनशील अपने बयानों के लिए माफी मांगनी पड़ी थी. अगस्त 2019 में मलेशियाई पुलिस ने जाकिर नाइक पर सार्वजनिक सभाओं में उपदेश देने पर पाबंदी लगा दी थी.
Tags: Constitution of India, High court, Indian Constitution, Islam religion, Supreme CourtFIRST PUBLISHED : October 17, 2024, 13:08 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed