क्या पांडवों ने बाद में बदल लिया धर्म क्यों एक रिलीजन करता है ऐसा दावा

अगर महाभारत पढ़िए या इतिहासकारों से बात करिए तो वो पांडवों को क्षत्रीय कहा जाता रहा है. उन्हें हिंदू धर्म से जुड़ा बताया जाता रहा है. लेकिन देश के ही एक पुराने धर्म का दावा है कि ये सही नहीं है. उस धर्म की अपनी एक अलग महाभारत भी है.

क्या पांडवों ने बाद में बदल लिया धर्म क्यों एक रिलीजन करता है ऐसा दावा
हाइलाइट्स ये धर्म दावा करता है कि पांडव तो पैदाइश उनके धर्म से ताल्लुक रखते थे इस धर्म की अपनी महाभारत और रामायण भी है, जो कुछ अलग है ये किताब कहती है कि न तो धृतराष्ट्र अंधे थे और न ही विदुर दासी पुत्र पांडवों  को सूर्यवंशी माना जाता रहा है. सैकड़ों सालों से माना जाता रहा है कि पांडव  सूर्यवंशी क्षत्रिय थे. महान कुरु राजवंश से ताल्लुक रखते थे. हिंदू धर्म  में दो महान धर्म ग्रंथ माने  गए हैं-रामायण और गीता. रामायण का संबंध अगर भगवान राम की जीवनकथा  और रावण के साथ युद्ध में उनकी जीत से है तो गीता का संबंध महाभारत के रणक्षेत्र में भगवान कृष्ण द्वारा महान धनुर्धर अर्जुन को दिए उपदेशों से है. हिंदू धर्म  में गीता का स्थान इतना ऊंचा है कि जब अदालत में किसी की गवाही होती है तो हिंदू धर्म  के लोगों से गीता पर हाथ रखकर सच बोलने  की कसम दिलाई जाती है. ये बताने  का मतलब ये है कि हिंदू धर्म  में गीता, कृष्ण और महाभारत के सभी पात्रों खासकर पांडवों का स्थान बहुत ऊंचा है. पांडव  हिंदू धर्म  के ऐसे वंशज माने  जाते हैं, जिन्होंने  अपने  जीवनचरित से हिंदू धर्म की कई मान्यताओं, परंपराओं और सत्य – असत्य की परिभाषाओं की एक परिपाटी रखी. लेकिन इस पर क्या कहेंगे अगर ये कहा जाए कि पांडव हिंदू नहीं बल्कि किसी अन्य धर्म से ताल्लुक रखते थे या फिर उन्होंने जीवन के आखिरी बरसों में जैन धर्म  स्वीकार कर लिया  था. जैन तीर्थस्थल हस्तिनापुर के जैन मंदिर में लगी एक पेंटिंग और जैन महाभारत कम से कम यही कहते हैं. पेंटिंग दिखाती है कि पांचों पांडव द्रौपदी के साथ जैन धर्म में दीक्षा ले रहे हैं. क्या कहती है ये पेंटिंग पांडवों  के जैन धर्म  में आ जाने की पेंटिंग हस्तिनापुर के श्री दिगंबर जैन बड़ा मंदिर में लंबे समय से लगी है. अक्सर पर्यटकों को इस पेंटिंग देख हैरानी भी होती है. इस पेंटिंग के बारे में जब इस मंदिर के पुजारियों से बात की गई तो उनका कहना था  कि ये पेंटिंग एकदम ठीक है. ये सच्चाई है कि पांडवों ने पत्नी द्रौपदी समेत जैन धर्म  स्वीकार कर लिया  था. पांडवों  को तो हिंदू क्षत्रिय माना जाता है आमतौर माना जाता है कि पांडव  हिंदू धर्म  से ताल्लुक रखने  वाले क्षत्रिय थे. जिन्होंने हस्तिनापुर में शासन किया. बाद में उन्हें चौपड़ के खेल में कौरवों के हाथों राजपाट गंवाना पड़ा. 13 साल का निर्वासन भोगना पड़ा. जब वो लौटे तो कौरव उनका राजपाट लौटाने  के पक्ष में नहीं थे. लिहाजा महाभारत का युद्ध लड़ा गया. इसी युद्ध में भगवान कृष्ण ने  अर्जुन को जो उपदेश दिए, वो गीता के रूप में हिंदुओं का सबसे पवित्रतम ग्रंथ बन गया.  जैन मुनि भी लगाते हैं मुहर दिल्ली के एक जैन मुनि से जब पांडवों के  जैन धर्म  स्वीकार करने  के संबंध में बात की गई तो उन्होंने  कहा कि पांडवों ने  हिंदू धर्म  को छोड़कर जैन धर्म  स्वीकार नहीं किया था  बल्कि वो जन्म से ही जैनिज्म से ताल्लुक रखते थे. वो मूल रूप से जैन ही थे. बेशक पांडव  क्षत्रिय थे लेकिन उन्हें जैन क्षत्रिय कहा जाना चाहिए. उनका कहना है कि महाभारत काल में जैन धर्म  के २२वें तीर्थांकर मौजूद थे. कृष्ण के रिश्ते के भाई थे 22वें तीर्थांकर  जैन धर्म शास्त्रों के अनुसार जैनियों के 22वें  तीर्थांकर का नाम ने मिनाथ था , जो रिश्ते में कृष्ण के चचेरे भाई थे. कृष्ण के पिता वासुदेव उनके चाचा थे. जैन वर्ल्ड डॉट कॉम साइट कहती है कि बलराम और कृष्ण जैन ही थे. हालांकि ये साइट कहती है कि कौरवों और पांडव बाद में जैन धर्म  में चले गए थे. आखिरी बरसों में वो तपस्वी बन गए. बाद में निर्वाण को प्राप्त हुए. एक पक्ष जाटों का भी जाटों का इतिहास पांडवों को  जाटों का पूर्वज बताता है. जाटों की वेबसाइट जाटलैंड डॉट कॉम के अनुसार पांडव  जाट थे. वो पश्चिम उत्तर प्रदेश और हरियाणा के इलाके में रहते थे. इसलिए महाभारत का रिश्ता हस्तिनापुर और कुरुक्षेत्र से है. वेबसाइट के अनुसार जाटों में तोमर जाति के लोग आज भी मानते हैं कि वो महान धनुर्धर अर्जुन की संतान हैं. तोमर गोत्र के बहुत से लोग आज भी खुद का जातिनाम पांडव लिखते हैं. क्या कहती है जैन महाभारत  जैन महाभारत कुछ ऐसे तथ्यों के बारे में बताती है, जो हैरान भी करती हैं. दिगंबर जैन त्रिलोक शोध संस्थान जंबूद्वीप-हस्तिनापुर से जैन महाभारत में वैदिक महाभारत से अलग तथ्य दिए गए हैं. इस पुस्तक की लेखिका गणिनि प्रमुख आर्यिका शिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी हैं. इस किताब का पहली बार प्रकाशन 1998 में हुआ. ट उसके बाद इसके कई संस्करण प्रकाशित हुए. ये किताब जैन धर्म  के ग्रंथों पर शोध आधारित है. साथ ही जैन धर्म  की दो प्राचीन पुस्तकों पांडु पुराण और हरिवंश पुराण पर आधारित. न धृतराष्ट्र अंधे थे और न विदुर दासी पुत्र ये किताब कहती है कि न तो धृतराष्ट्र अंधे थे और न ही विदुर दासी पुत्र बल्कि तीनों राजा व्यास की रानी सुभद्रा से पैदा हुए थे. किताब ये भी कहती है कि कर्ण जिसे महाभारत में  कुंती और सूर्य के संयोग से उत्पन्न माना गया है, वास्तव में ऐसा नहीं था  बल्कि कुंवारी कुंती और राजा पांडु के संयोग से ही कर्ण का जन्म हुआ था , लेकिन चूकि कुंती कुंवारी थी लिहाजा लोकलाज के भय से उन्होंने  अपने  इस पुत्र को गुप्त तौर पर पैदा तो किया लेकिन पेटी में बंद करके नदी में बहा दिया. ये पेटी चंपासुर के राजा भानु के पास पहुंची. उन्होंने  ही कर्ण का पालन  पोषण किया. इसलिए कर्ण को भानु सूर्य पुत्र भी कहा गया. चूंकि राजा भानु की पत्नी यानि रानी का नाम राधा था , लिहाजा कर्ण को राधेय कहा गया. Tags: Hindu Rashtra, Mahabharat, ReligionFIRST PUBLISHED : July 1, 2024, 11:34 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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