कॉलेज के दिनों में टीचर्स की नकल उतारते शुरू हुई राजू श्रीवास्तव की कॉमेडी और यूं छा गई
कॉलेज के दिनों में टीचर्स की नकल उतारते शुरू हुई राजू श्रीवास्तव की कॉमेडी और यूं छा गई
राजू श्रीवास्तव नहीं रहे. कॉमेडी को सही मायनों में इस देश में स्टेज पर स्थापित करने वाले शख्स वही थे. वह कानपुर के ऐसे घर के थे, जहां क्रिएटिविटी का माहौल था. पिता सरकारी नौकरी में थे और खुद कविता लिखते थे. ठेठ देसी स्टाइल में राजू श्रीवास्तव ने हमेशा जीवन जिया और उस मिट्टी की याद से लेकर नेताओं तक की नकल उतारी. कैसे शुरू हुई उनकी कॉमेडी
हाइलाइट्सकॉलेज में महसूस हो चुका था कि वह अच्छे कॉमेडियन बन सकते हैंअमिताभ बच्चन उनके पहले आदर्श थे और उनकी खूब मिमिक्री भी कीलालू यादव के सामने जब उनकी नकल उतारी तो वह भी खूब हंसे
लखनऊ में हमारे मित्र रहते थे. जो तब गीतकार थे. मुंबई की फिल्मी दुनिया में संघर्ष कर रहे थे. खुद पत्रकार थे लेकिन साल में कई बार मुंबई जाते रहते थे. वह अक्सर मुंबई में जाकर राजू श्रीवास्तव के घर ठहरते थे या फिर उनसे मुलाकात जरूर करते थे. तब तक राजू श्रीवास्तव की जिंदगी पटरी पर आने लगी थी. हालांकि उन्होंने 90 के दशक में मुंबई आने के बाद जब स्टैंडअप कॉमेडी का काम करना शुरू किया तो उन्हें आसानी से स्वीकार नहीं किया गया. कहीं उनके ठेठ यूपी वाले अंदाज पर तो कभी चेहरे मोहरे को लेकर.
अब वो गीतकार मित्र भी कई फिल्मों के लिए गीत लिख चुके हैं. अपनी जगह बना चुके हैं. उनका नाम है वीरेंद्र वत्स. राजू श्रीवास्तव का नाम तो हम सभी 90 के दशक में सुन चुके थे लेकिन वह हर बार मुंबई से लौटने के बाद जिस तरह उनकी चर्चा करते थे, हम सभी उनके बारे में काफी कुछ जानने लगे थे. ये जानने लगे थे कि किस तरह वह जब मुंबई गए तो सभी कलाकारों की तरह उन्होंने भी काफी फाकेमस्ती वाला जीवन गुजारा. लेकिन जल्दी ही लोग उनकी प्रतिभा को पहचानने लगे.
राजू श्रीवास्तव खुद एक निम्नवर्गीय कायस्थ परिवार से ताल्लुक रखते थे. परिवार कानपुर का रहने वाला था. पिता रमेश चंद्र श्रीवास्तव उन्नाव कचहरी में मुलाजिम थे. वह बलई काका के नाम से कविताएं भी लिखते थे. लिहाजा जब उन्होंने कॉमेडियन के तौर पर मुंबई जाने का फैसला किया तो पिता ने उन्हें जाने दिया. शुरुआती सालों में उन्हें सपोर्ट भी किया लेकिन कहना चाहिए मुंबई जाने के बाद राजू ने तमाम मुश्किलों के बाद 90 के दशक के आखिर तक पहचान तो बना ही ली.
90 के दशक के आखिर तक अंधेरी में फ्लैट खरीद चुके थे
उन्हें प्रोग्राम मिलने लगे. स्टेज प्रोग्राम में बुलावा मिलने लगा. वो इतना कमाने लगे थे कि मुंबई में अंधेरी में अपना छोटा सा फ्लैट खरीद चुके थे. जो तब के हिसाब से बहुत बड़ी बात थी. वह खुद कानपुर के थे और ससुराल लखनऊ की थी, लिहाजा मुंबई में इन दो शहरों के लोगों के लिए हमेशा दिल से उपलब्ध रहते थे. जो मदद कर पाते थे, वो मदद भी करते थे. दोस्तों के कहने पर कभी मुफ्त तो कभी बहुत कम पैसों पर भी शो किये.
राजू श्रीवास्तव जब कानपुर से मुंबई पहुंचे तो शुरू में बहुत खारिज भी हुए लेकिन 90 के दशक के आखिर तक वह पहचान बनाने लगे थे. (फोटो साभारः Twitter @ajaydevgn)
चाहे जितने तनाव में हों लेकिन हंसा तो देते ही थे
वीरेंद्र वत्स कहते हैं, वह बहुत क्रिएटिव थे. चाहे आप जितने तनाव में हों लेकिन अगर उनके पास कुछ देर बैठ लें तो सारा तनाव गायब हो जाता था. तनाव में भी हंसाने की कला उन्हें बखूबी आती थी. साधारण बातों में एंगल तलाशना और उसे हास्य में पिरोकर अपने विशेष और ठेठ देसी अंदाज में पेश करना उनकी ऐसी खूबी थी, जो उन्हें दूसरे स्टैंडअप कॉमेडियन से अलग करती थी.
हर सेचुएशन पर कॉमडी
कहना चाहिए असल में साफसुथरी स्टैंडअप कामेडी, हंसाते-हंसाते और पेट पकड़कर लोगों को हंसाने के बाद भी वह अपनी कॉमेडी में सामाजिक सुधार के संदेश भी छोड़ते थे. चाहे रेलवे प्लेटफॉर्म हो या फिर शादी में खाने की थाली या फिर बस में सफर या फिर गांव का जीवन-हर जगह उनकी नजर गई और हर जगह से उन्होंने कॉमेडी निकाली.
तब कॉमेडी में न पैसा था और न सम्मान
जब वह 90 के दशक में कॉमेडी में आए तब फिल्मी दुनिया में कॉमेडियन तो थे लेकिन कॉमेडी का स्कोप स्टेज पर होते हुए भी बहुत कमाऊ नहीं था और बहुत सम्मानजनक भी नहीं था. घरबार छोड़कर मुंबई एक सपना लेकर चले आना. फिर उसे खुद गढ़ना आसान नहीं था. आज जो स्टैंडअप की दुनिया में तमाम सितारे नजर आते हैं युवाओं के लिए ये मनपसंद फील्ड बन चुका है, उसके लिए काफी हद तक कॉमेडी नहीं बल्कि क्रिएटिव कॉमेडी करने वाले राजू श्रीवास्तव का शुक्रिया अदा करना चाहिए. वो हर चीज और हर जगह कॉमडी का स्कोप तलाश लेते थे.
राजू श्रीवास्तव की कॉमेडी स्कूल और कॉलेज में अपने टीचर्स, दोस्तों, परिचितों की नकल करते शुरू हुई लेकिन वह जो भी करते थे, वो सबकुछ लोगों को बहुत हंसाती थी.
स्कूल और कॉलेज में टीचरों की नकल से कॉमेडी शुरू हुई
वह कॉमडियन बने कैसे. आखिर कब उन्हें महसूस हुआ कि वो ऐसा कर सकते हैं या इसमें भी करियर बना सकते हैं – इसका अंदाज उन्हें स्कूल से कॉलेज आते आते होने लगा था. पहले वह स्कूल में अपने टीचर्स की नकल उतारते और मिमिक्री करते और कॉलेज में पहुंचते तक वह इसमें माहिर हो चुके थे. लड़के गोलबंद होकर उन्हें खड़ा कर देते और फिर मजा लेते रहते. इसी जमाने में उन्होंने टीचर्स के अलावा अमिताभ बच्चन और नेताओं की मिमिक्री करनी शुरू कर दी थी. अमिताभ उनके पहले आदर्श भी थे.
तब राजू को लगा, हां उन्हें कॉमेडी में ही करियर बनाना है
उनके साथी उनसे कहने लगे थे कि यार तुम तो बहुत अच्छी कॉमेडी करते हो, क्यों नहीं इसको अपना करियर बनाते हो. राजू श्रीवास्तव को भी लगने लगा कि हां ये कला तो उनके अंदर है, वो इसमें कुछ कर सकते हैं. हिम्मत का काम तो था लेकिन उन्होंने ठान लिया कि कॉमेडी ही करते हैं. घर में जब कहा होगा तो निश्चित तौर पर उस जमाने में किसी पिता के लिए इसकी इजाजत देना आसान तो नहीं रहा होगा लेकिन जब पिता खुद कविता लिखते हों और क्रिएटीविटी का मतलब समझते हों तो उन्होंने मान ही लिया होगा. पिता को भी भरोसा हो गया होगा कि उनका बेटा जो कह रहा है, वो कर दिखाएगा.
द ग्रेट लाफ्टर चैंलेंज के बाद वह कॉमेडी के शहंशाह बन गए. फिर उन्होंने पीछे मुडकर नहीं देखा.
द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज के बाद स्टार बन गए
तो ये कहना चाहिए जब वह संघर्ष कर रहे थे तो उनके पास परिवार और दोस्तों के तौर पर काफी तादाद में शुभचिंतकों की ऐसी पलटन भी थी, जो हमेशा उनका हौसला बढ़ाती रहती थी. हालांकि 90 के दशक के बाद राजू श्रीवास्तव ने अपनी कॉमेडी को भी काफी इंप्रुवाइज किया. उसे एक अलग लेवल पर ले गए. असल में वह कॉमेडी के शंहशाह बने दे ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैंलेंज के बाद.
गजोधर काका का कैरेक्टर पिटारे से निकाला
इस कॉमेडी के पहले ही सीजन में उन्होंने गजोधर काका के जिस कैरेक्टर को अपनी कॉमेडी के पिटारे से निकाला तो वह सुपरहिट हो गया. गजोधर काका यूपी के गांव से मुंबई में नौकरी करने जाते हैं और उनके पास फिल्मी दुनिया के सितारों से लेकर इस नगरी के बारे में अपने हास्यबोध अंदाज में कहने को बहुत कुछ ऐसा है, जो कौतुहल भी पैदा करता है और हंसाता भी है.
लाफ्टर चैलेंज के जज पेट पकड़कर हंसते थे
द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज में तब शेखर सुमन और नवजोत सिंह सिद्धू उसके जज थे. दोनों राजू श्रीवास्तव की कॉमेडी पर हंसते भी थे और बहुत दाद भी देते थे. देखते देखते दूसरे सभी प्रतियोगियों को पछाड़कर वह फाइनल तक पहुंचे और विजेता भी बने. इसके बाद राजू श्रीवास्तव का सिक्का जो हवा में उछला तो फिर उछलता ही रहा. वह वाकई कॉमेडी स्टार बन गए. उनकी दुनिया बदलने लगी. उनके अच्छे दिन आ गए. उन्हें एक एक शो के लिए लाखों रुपए मिलने लगे.
लालू के सामने लालू की सुपरहिट कॉमेडी
इसके बाद भी राजू श्रीवास्तव ने कभी जमीन नहीं छोड़ी. सादगी नहीं छोड़ी. जमीन से जुड़ी अपनी कॉमेडी नहीं छोड़ी. हालांकि उनकी कॉमेडी का तड़का तब खूब लगता था जबकि वह नेताओं की नकल उतारते हुए उनकी कॉमेडी करते थे. एक बार जब वह लालू यादव के सामने 08 मिनट तक उनकी नकल उतार कर कामेडी करते रहे तो पूरा हाल पेट दबाकर लहालोट हो रहा था. लालू खुद हंस रहे थे. उन्हें खुद शाबासी भी दी.
जो बात उन्हें अलग करती है
सबसे बड़ी बात जो उनकी कॉमेडी को दूसरों से अलग करती है, वो ये है कि उन्होंने कभी बॉडीशेमिंग वाली कॉमेडी नहीं की, कभी अश्लीलता नहीं की और कभी फूहड़ नहीं हुए. जिसे तकरीबन आजकल हर कॉमेडियन अपना हथियार बना रहा है. राजू श्रीवास्तव भौतिक तौर पर तो गए हैं लेकिन उनकी सारी कॉमेडी हर ओर बिखरी हुई है और हमेशा हंसाती रहेगी.
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Tags: Comedian, Comedy Act, Raju SrivastavFIRST PUBLISHED : September 21, 2022, 13:13 IST