महाभारत : कैसे नहाती थीं रानियां कैसे होता था द्रौपदी का स्नान क्या था अवभृत

Mahabharat Katha : महाभारत काल में रोजाना सुबह स्नान जरूरी प्रथा थी. आमतौर पर रानियां या महल के अंदर बने सरोवर या कुंड में ही स्नान करती थीं लेकिन नदी जाकर खास अनुष्ठान तरीके से भी स्नान होता था.

महाभारत : कैसे नहाती थीं रानियां कैसे होता था द्रौपदी का स्नान क्या था अवभृत
हाइलाइट्स रानियां दासियों की ओर नदी की ओर स्नान करने जाती थीं महाभारत काल में ब्रह्णमुहूर्त में स्नान को जरूरी मानते थे सार्वजनिक तौर पर खास अवभृत स्नान होता था महाभारत काल में रानियां स्नान करने के लिए दलबल के साथ नदी की ओर जाती थीं. कई स्नान अनुष्ठान पूर्वक हुआ करते थे. द्रौपदी के स्नान के लिए गंगा नदी जाने के बारे महाभारत में कई जगह बताया गया है. उस दौर के ग्रंथों में स्नान के बारे जो बताया गया है. वो हम आपको बताते हैं. महाभारत की मुख्य स्त्री पात्रों में एक द्रौपदी अपनी भक्ति और अनुष्ठानों के लिए जानी जाती हैं. वह हस्तिनापुर में पांडेश्वर महादेव मंदिर के पास एक पवित्र जलधारा में प्रतिदिन स्नान करती थीं, जहां वह शिव की पूजा करती थीं. ये जगह अब भी हस्तिनापुर में मौजूद है. ये मंदिर उनकी आध्यात्मिक प्रथाओं के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान था, जो दिखाता है कि स्नान और शुद्धिकरण अनुष्ठान उनके दैनिक जीवन के महत्वपूर्ण पहलू थे. सुबह तड़के ही होता था स्नान द्रौपदी महल से सुबह दासियों के साथ नदी की ओर नहाने के लिए जाती थीं. आमतौर पर तब राजमहल की स्त्रियों के लिए एक घाट निश्चित होता था, जहां कोई और स्नान के लिए नहीं जा सकता था. रानियों के नहाने के समय आसपास सुरक्षा भी काफी बढ़ जाती थी. द्रौपदी आमतौर पर स्नान से पहले कुछ खास परंपराओं का पालन करती थीं. इसमें उबटन लगाने से लेकर सुगंधित लेप लगाना आदि होता है. द्रौपदी और महाभारत की दूसरी रानियां रोज सुबह गंगा नदी के खास घाट पर स्नान करने जाती थीं (image generated by leonardo ai) सुगंधित जल और फूलों का उपयोग कई स्नान महल के अंदर खासतौर पर बनाए गए छोटे सरोवर या कुंड में होते थे. बार कुछ स्नान ऐसे होते थे जो मंत्रोच्चारण के बीच होते थे. स्नान खास अनुष्ठानों के बीच होता था. जिसमें सुगंधित जल और फूलों का उपयोग शामिल था. हम्पी में जहां रानी के स्नानगृह को इस तरह बनाया गया है कि शाही महिलाएं शानदार कक्ष में आराम से स्नान का आनंद ले सकें. दैनिक स्नान: स्नान को एक आवश्यक दैनिक अनुष्ठान माना जाता था, विशेष रूप से सुबह (ब्रह्म मुहूर्त) जैसे शुभ समय पर. ऐसा माना जाता रानियां भी सुबह होने से पहले ही स्नान कर लेती थीं. क्योंकि इसके बाद रोजाना के काम और धार्मिक अनुष्ठान शुरू हो जाते थे. अनुष्ठान स्नान: स्नान न केवल स्वच्छता का मामला था, बल्कि एक अनुष्ठानिक अभ्यास भी था. धार्मिक कर्तव्यों या अनुष्ठानों को करने से पहले व्यक्तियों के लिए स्नान करना आम बात थी, क्योंकि ईश्वर से जुड़ने के लिए पवित्रता आवश्यक थी.स्नान शुभ समय और स्थितियों से जुड़े होते थे. कई बार स्नान से पहले कई खास अनुष्ठान होते थे. (image generated by leonardo ai) स्नान के बाद रानियों और दासियों से कुछ नियमों का पालन करने की अपेक्षा की जाती थी, जैसे कि तुरंत बाद अपने अंगों पर तेल नहीं लगाना. यह सुनिश्चित करना कि वे गीले कपड़े न पहनें. महाभारत काल में होता था अवभृत स्नान महाभारत काल में रानियों के स्नान कई तरह के होते थे. इसी में एक था अवभृत स्नान. अवभृत स्नान भी नदी के तट पर होने वाले महत्वपूर्ण वैदिक समारोहों का एक हिस्सा था. इस आयोजन को सार्वजनिक उत्सव के रूप में मनाया जाता था, जिसमें नागरिक और देवता स्नान समारोह में शामिल होने के दौरान आशीर्वाद और फूल बरसाते थे. इस अनुष्ठान में पानी, तेल, दूध, मक्खन और दही जैसे कई तरल पदार्थों का उपयोग किया जाता था, जिन्हें हल्दी और केसर के साथ मिलाकर उत्सव के माहौल को बढ़ाया जाता था. द्रौपदी सहित रानियों को रंगीन वस्त्र पहनाए जाते थे. गहनों से सजाया जाता था, फिर वो इस उत्सव में हिस्सा लेती थीं. फिर नागरिक गंगा में स्नान करते थे राजसी जोड़े के अवभृत स्नान के बाद हस्तिनापुर के नागरिक भी गंगा में स्नान करते थे. यह स्नान प्रथा न केवल व्यक्तिगत शुद्धि थी, बल्कि शाही आयोजनों के प्रति समर्पण और उत्सव का सार्वजनिक प्रदर्शन भी. वैसे महाभारत काल में नदियों या झीलों के पानी में स्नान पवित्र माना जाता था. इन जल निकायों में स्नान करने का कार्य एक शुद्धिकरण अनुष्ठान और आध्यात्मिक अभ्यास दोनों रहा होगा. महाभारत में द्रौपदी के स्नान से जुड़ा किस्सा एक बार द्रौपदी अपने महल के पास एक नदी में स्नान करने जा रही थी. उसके साथ महल में उसके लिए काम करने वाली अन्य दासियां भी थीं. यह उनकी दैनिक दिनचर्या थी. उस दिन उसने एक ऋषि को उसी नदी में स्नान करते देखा, जहां वह स्नान करने जाती थीं. द्रौपदी ने दासियों के साथ ऋषि के बाहर आने तक प्रतीक्षा करने का फैसला किया. ऋषि ने उसे और अन्य लड़कियों को एक पेड़ की छाया में खड़े देखा. उन्होंने ऋषि के बाहर आने के लिए कुछ देर तक प्रतीक्षा की, लेकिन अधिक प्रतीक्षा नहीं कर सकती थीं, क्योंकि दिन बहुत गर्म था. उन्होंने ऋषि से बाहर आने का अनुरोध किया. ऋषि ने जवाब दिया, ‘मेरे कपड़े, जो मैंने नदी के तट पर रखे थे, चोरी हो गए हैं. इसलिए मैं बाहर नहीं आ सकता’. द्रौपदी को छोड़कर सभी लड़कियां खिलखिलाकर हंसने लगीं. द्रौपदी ने कहा, ‘मैं अपनी साड़ी का एक हिस्सा फाड़कर आपकी ओर फेंकूंगी ताकि आप उसे पकड़ें, अपने शरीर पर लपेटें और बाहर आ जाएं’. ऋषि सहमत हो गए. द्रौपदी ने अपनी साड़ी का एक हिस्सा फाड़कर ऋषि की ओर फेंक दिया. ऋषि उसे पकड़ नहीं पाए. कपड़े का वह टुकड़ा नदी की धारा के साथ बह गया. उन्होंने अपनी साड़ी का दूसरा हिस्सा फाड़ा. फिर से ऋषि की ओर फेंका. ऋषि फिर उसे पकड़ नहीं पाए. जब ​​वह तीसरी बार अपनी साड़ी का टुकड़ा फाड़ने जा रही थीं, तो ऋषि ने उसे रोक दिया. उन्होंने कहा, ‘यदि आप अपनी साड़ी का एक और हिस्सा फाड़ती हैं, तो आपके पास खुद को ढकने के लिए शायद ही कुछ बचेगा लेकिन फिर भी आप मेरी मदद करना चाहती हैं तो अपने साथ आई दासियों में से किसी से कपड़े का एक टुकड़ा मांग सकती थीं, लेकिन न तो आपने उनसे पूछा और न ही उनमें से किसी ने मदद की. इसके बजाय सभी मेरी स्थिति का मज़ाक उड़ा रही थीं.’ सभी लड़कियों ने हँसना बंद कर दिया और खेद महसूस करना शुरू कर दिया. ऋषि ने आगे कहा, ‘द्रौपदी मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि अगर कोई भी तुम्हारे कपड़े उतारकर तुम्हारा गौरव छीनने की कोशिश करेगा, तो वह कभी सफल नहीं होगा.’ द्यत क्रीड़ा सभागृह में जब दुशासन ने द्रौपदी की साड़ी खींचीं तो इसीलिए वो खींचती चली गई. हांलाकि महाभारत ये भी कहती है कि ऐसा भगवान श्रीकृष्ण की वजह से हुआ. Tags: Ganga river, MahabharatFIRST PUBLISHED : September 28, 2024, 08:16 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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