मिला नया दुर्लभ ब्लड ग्रुप 50 साल पहले एक महिला के खून से चौंके थे साइंटिस्ट

वैसे तो दुनिया में ब्लड के चार मुख्य ग्रुप हैं लेकिन कुछ रेयर ब्लड ग्रुप भी हैं. ऐसे रेयर ब्लड ग्रुप वाले हमेशा खतरे में होते हैं. वैज्ञानिकों ने 50 साल की खोज के बाद एक नए दुर्लभ खून ग्रुप का पता लगाया है.

मिला नया दुर्लभ ब्लड ग्रुप 50 साल पहले एक महिला के खून से चौंके थे साइंटिस्ट
हाइलाइट्स इस दुर्लभ रक्त समूह की विशेषता AnWj एंटीजन की गैरमौजूदगी है दुनियाभर में ऐसे रक्त समूह के लोग बमुश्किल 40-50 ही होंगे वैसे दुनिया में चार ब्लड ग्रुप हैं और दो-तीन रेयर ब्लड ग्रुप अब तक आपको चार ब्लड ग्रुप के बारे में मालूम होगा – A, B, AB और O. इन ब्लड ग्रुप के निगेटिव और पॉजिटिव भी होते हैं. अब इनके बाद एक और रेयर ब्लड ग्रुप का पता लगा है. 50 साल तक इसे रहस्यमयी खून माना जाता रहा. साइंटिस्ट मेहनत करते रहे. अब जाकर उन्होंने इस रेयर ब्लड ग्रुप की पहचान कर ली. दरअसल एक महिला का खून चेक करते समय साइंटिस्ट चकरा गए थे, वो किसी ग्रुप से मेल ही नहीं खा रहा था. इस नए रेयर ब्लड ग्रुप का नाम साइंटिस्ट ने MAL रखा है. 1972 में वैज्ञानिकों के सामने एक गर्भवती महिला के ब्लड का नमूना आया, जो असामान्य था. ये चार में किसी ब्लड ग्रुप से मेल नहीं खा रहा था. हालांकि तब तक उनके सामने एक दो रेयर ब्लड ग्रुप भी थे. ये उससे भी नहीं मेल खा रहा था. लिहाजा वैज्ञानिकों ने इस रहस्य की खोज करनी शुरू की. जांच और प्रयोगों का दौर कई दशक चला. अब जाकर वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंच पाए कि दुनियाभर में प्रचलित चार ब्लड ग्रुप के अलावा एक नया दुर्लभ ब्लड ग्रुप और मिल गया. साइंस अलर्ट द्वारा रिपोर्ट की गई जानकारी के अनुसार, इस दुर्लभ खून की खासियत ये है कि इसमें AnWj एंटीजन गैरमौजूद है, जो 99.9% से अधिक लोगों में मौजूद होता है. साइंटिस्ट का मानना है कि शायद ये जीन में बदलाव की वजह से होता है. MAL ब्लड ग्रुप में क्या होता है दिलचस्प बात ये भी है कि AnWj एंटीजन नवजात शिशुओं में मौजूद नहीं होता है, लेकिन जन्म के तुरंत बाद दिखाई देता है. इस नए ब्लड ग्रुप की पहचान से क्या होगा. इससे बहुत सी अनुवांशिक बीमारियों को समझा जा सकेगा. उनका इलाज संभव होगा. MAL प्रोटीन कोशिका झिल्ली को स्थिर रखने और कोशिका परिवहन में सहायता करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है. एमएएल ब्लड ग्रुप को दुर्लभ रक्त विकृति से जोड़ा जा सकता है, जिससे ये भी पता चलेगा कि दुर्लभ रक्त विकृतियों का रोगियों पर किस तरह का प्रभाव हो सकता है, इसका विनाशकारी प्रभाव हो सकता है, लिहाजा अब नए ब्लड ग्रुप को मिलने का मतलब है कि ऐसे ब्लड ग्रुप वालों के बचाव के लिए ज्यादा समझ विकसित होगी. दुनियाभर इस रेयर ब्लड ग्रुप के लोग कितने होंगे इसका अंदाज तो नहीं है लेकिन माना जा रहा है कि वो लोग मुट्ठीभर ही होंगे. गोल्डेन और बांबे ब्लड ग्रुप गोल्डन ब्लड ग्रुप के नाम से इस ग्रुप को सबसे रेयर ब्लड माना जाता रहा है. इसी तरह एक दुर्लभ ब्लड ग्रुप का नाम बांबे ब्लड ग्रुप भी है. हालांकि रेयर ब्लड ग्रुप जानलेवा भी होते हैं. ब्लड में रेयर होने का मतलब है उतना ही जोखिम. गोल्डन ब्लड का असल नाम आरएच नल (Rh null) है. सबसे रेयर होने की वजह से शोध कर रहे वैज्ञानिकों ने इसे गोल्डन ब्लड नाम दिया. साल 1961 से पहले डॉक्टरों को लगता था कि खून में Rh फैक्टर के अभाव में कोई भी इंसान जिंदा नहीं रह सकता है. 1961 में इस ब्लड ग्रुप का पहला मामला सामने आया, जो एक ऑस्ट्रेलियन महिला में पाया गया. क्या होता है Rh फैक्टर खून में Rh फैक्टर को ऐसे समझ सकते हैं. खून RBCs यानी लाल रक्त कणिकाओं से मिलकर बनता है. इनपर प्रोटीन की एक पर्त होती है, जिसे एंटीजन के नाम से जानते हैं. हर ब्लड ग्रुप में उसी नाम का एंटीजन होता है. किसी व्यक्ति का ब्लड ग्रुप उसी एंटीजन के आधार पर पहचाना जाता है. आपका ब्लड ग्रुप रेयर की श्रेणी में आएगा अगर आपके खून में एंटीजन नहीं हैं जो लगभग 99% लोगों में होते हैं.अब तक केवल 43 लोग इस ब्लड ग्रुप के पाए गए हैं. इनमें ब्राज़ील, कोलंबिया, जापान, आयरलैंड और अमरीका के लोग शामिल हैं. बांबे ब्लड ग्रुप भी रेयर एक और ब्लड ग्रुप भी है, जिसे बॉम्बे ब्लड ग्रुप के नाम से जाना जाता है. मुंबई में 1952 में इसका पहला मामला सामने आया, यही वजह है कि इसे बॉम्बे ग्रुप नाम दिया गया. एक मिलियन में से 4 लोग इस रक्त समूह के होते हैं. हालांकि ये केवल रेयर है, रेयरेस्ट ब्लड ग्रुप का खिताब गोल्डन ब्लड ग्रुप के ही पास है भारत में 10,000 लोगों में से केवल एक व्यक्ति का ब्लड ग्रुप बॉम्बे होता है. इसे HH रक्त प्रकार या दुर्लभ ABO रक्त समूह भी कहा जाता है. इस रक्त फेनोटाइप की खोज सबसे पहले 1952 में डॉक्टर वाईएम भेंडे ने बॉम्बे में की थी. रक्त के प्रकार AB निगेटिव – सबसे दुर्लभ रक्त प्रकार, जो केवल 1% जनसंख्या में पाया जाता है B नेगेटिव – 2% जनसंख्या में पाया जाता है ROउपप्रकार – एक दुर्लभ रक्त प्रकार जिसका उपयोग अक्सर सिकल सेल रोग से पीड़ित लोगों के इलाज के लिए किया जाता है AB पॉजिटिव: 4% जनसंख्या में पाया जाता है O नेगेटिव: 7% जनसंख्या में पाया जाता है B पॉजिटिव: 11% जनसंख्या में पाया जाता है A पॉजिविट : 32% जनसंख्या में पाया जाता है O पॉजिटिव: 40% जनसंख्या में पाया जाता है Tags: Blood bank, Blood Donation, Blood Pressure MachineFIRST PUBLISHED : September 24, 2024, 11:38 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed