Explainer: जर्मनी क्यों गए जयशंकर क्यों हथियारों को लेकर कड़ा है उसका रुख
Explainer: जर्मनी क्यों गए जयशंकर क्यों हथियारों को लेकर कड़ा है उसका रुख
भारतीय विदेशमंत्री जयशंकर जर्मनी के दो दिनों के दौरे पर गए थे. यूं तो जर्मनी हमेशा से ही भारत का अहम साझीदार रहा है लेकिन हथियारों के निर्यात को लेकर उसका रुख हमेशा कड़ा रहता है. भारत क्या चाहता है उससे.
हाइलाइट्स भारत चाहता है कि जर्मनी हथियारों के निर्यात में नियम ढीले करे जर्मनी के साथ भारत का कुछ क्षेत्रों में रक्षा सहयोग लेकिन वो पर्याप्त नहीं जर्मनी की डिफेंस एक्विपमेंट एक्सपोर्ट पॉलिसी दुनिया में सबसे कड़ी
जर्मनी में हर गर्मियां के बाद उसके विदेश स्थित जर्मन मिशनों के प्रमुख बर्लिन में जुटते हैं. वहां उनकी सालाना मीटिंग होती है. जिसमें नीतियों और देश की विदेश और सुरक्षा नीति की प्राथमिकताओं पर बहस होती है. इस बार सालाना सम्मेलन में बिजनेस फोरम में भारत के विदेश मंत्री डॉ. जयशंकर मुख्य अतिथि थे. भारतीय विदेश मंत्री इस समय क्यों जर्मनी गए. आखिर भारत इस देश के रक्षा उपकरणों में ढील क्यों चाहता है.
दरअसल 24-25 अक्टूबर को जर्मन चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ की नई दिल्ली यात्रा होनी है. मुख्य तौर पर उनकी ये यात्रा इसलिए भी है ताकि वह जर्मन विदेश मंत्री एनालेना बैरबॉक के साथ द्विपक्षीय बैठक कर सकें. हालांकि साफतौर पर दिखा कि अब दुनिया में भारत की भूमिका असरदार हो गई है.
जयशंकर ने कहा कि उन्होंने रूस-यूक्रेन संघर्ष, गाजा संघर्ष सहित “दुनिया की स्थिति” पर चर्चा की. साथ ही महीने के अंत में होने वाले संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन से पहले एजेंडे पर चर्चा की. खासकर इस बात पर भी भारत कैसे यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध में मध्यस्थ की भूमिका निभा सकता है. एक जमाने में जर्मनी इस युद्ध को यूरोप की समस्या मानता था लेकिन अब चाहता है कि इसमें भारत और चीन देश शांति प्रयास करें.
सवाल – जर्मनी में राजदूत सम्मेलन में जर्मन राजनयिकों ने चीन को लेकर जयशंकर से क्या पूछा?
– जयशंकर से चीन के साथ आर्थिक संबंधों के बारे में पूछा गया. क्योंकि दोनों देशों के बीच चार साल से चल रहे सैन्य गतिरोध के कारण चीनी कंपनियों और निवेश पर कई प्रतिबंध लगे हुए हैं. जयशंकर ने कहा, “हमने चीन से व्यापार बंद नहीं किया है.
सवाल – क्या जर्मनी चाहता है कि भारत से कुशल श्रमित वहां आएं. इस बारे में जर्मनी की विदेश मंत्री ने क्या कहा?
– जर्मनी अधिक कुशल भारतीय श्रमिकों को लाना चाहता है. फिलहाल 1,25,000 भारतीय नागरिक जर्मनी में काम कर रहे हैं. 50,000 छात्र अध्ययन कर रहे हैं. दोनों के बीच सालाना व्यापार 30 बिलियन डॉलर का है. भारत चाहता है कि जर्मनी अपने हथियार नियंत्रण नीति में ढिलाई बरते और उसे हथियार निर्यात में आगे बढ़े. (ANI)
सवाल – इस सम्मेलन में भारतीय विदेश मंत्री ने भारत के बारे में क्या बोला?
– उन्होंने राजदूतों के सालाना सम्मेलन में भारत में हो रहे बदलावों पर बात की. उन्होंने कहा, “पिछले एक दशक में भारत काफी बड़े स्तर पर बदला है. आज यह करीब चार ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था है. भारत का मानव संसाधन भी बदल रहा है. वैश्विक कारोबार में भारतीय प्रतिभाओं की प्रासंगिकता स्पष्ट दिख रही है.” उन्होंने कहा, “अब भारत चांद पर उतर रहा है और मंगल अभियान की तैयारी कर रहा है. वैक्सीन और दवाओं का बड़ा निर्माता है. ये देश वैश्विक सेमीकंडक्टर उद्योग के लिए ज्यादा अहम होता जा रहा है. इतने सब के बावजूद अभी बहुत कुछ करने के लिए बचा है.”
सवाल – जर्मनी भारत के लिए कितना अहम है?
– द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से कई क्षेत्रों में भारत और जर्मनी के बीच संबंध बेहतर हुए हैं. अब अपने तेजी से बढ़ते व्यापार के साथ, जर्मनी यूरोपीय संघ में भारत का सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार है. वह विश्व भर में भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों में एक है.
सवाल – जर्मनी अब भी भारत को रक्षा उपकरणों के निर्यात में क्यों कड़ाई बरतता है?
– ये बात सही है. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी जर्मनी में अपने संबोधन में जर्मनी से रक्षा उपकरणों के निर्यात नियंत्रण में ढील की अपील की है.
जयशंकर ने कहा, “रक्षा सहयोग पर अधिक विचार किया जाना चाहिए, खासकर तब जब भारत का प्राइवेट सेक्टर उस क्षेत्र में विस्तार कर रहा है. इसके लिए निर्यात नियंत्रण को भी अपडेट करने की जरूरत है.
सवाल – फिलहाल भारत और जर्मनी के बीच किस तरह का रक्षा सहयोग है?
– भारत और जर्मनी के बीच रक्षा सहयोग कई दशकों से चला आ रहा है. भारत और जर्मनी ने सितंबर 2006 में द्विपक्षीय रक्षा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. दोनों के बीच रक्षा उद्योग और रक्षा सहयोग बढ़ाने का समझौता भी है. वैश्विक सुरक्षा चुनौतियों और द्विपक्षीय सहयोग पर चर्चा करने के लिए दोनों देशों के रक्षा मंत्रालयों के बीच नियमित रूप से हाई लेवल रणनीतिक वार्ता आयोजित की जाती है. लेकिन ये बात सही है कि रक्षा क्षेत्र में भारत चाहता है कि जर्मनी रक्षा से संबंधित साजोसामान पर कंट्रोल को ढीला करे.
रक्षा सहयोग के सबसे उल्लेखनीय क्षेत्रों में से एक सबमरीन टेक्नोलॉजी है. जर्मनी की थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम (TKMS) भारत के पनडुब्बी बेड़े के लिए महत्वपूर्ण टेक्नोलॉजी प्रदान करने में शामिल रही है.
सवाल – जर्मनी हथियारों या हथियार तकनीक के निर्यात पर कड़ा नियंत्रण क्यों लागू करता है?
– जर्मनी के डिफेंस इक्विपमेंट एक्सपोर्ट कंट्रोल दुनिया में सबसे कड़े हैं, जो अंतरराष्ट्रीय हथियारों की बिक्री में उसके नैतिक मानकों के के प्रति प्रतिबद्धता को दिखाते हैं. ये नियंत्रण ये सुनिश्चित करते हैं कि जर्मन निर्मित रक्षा उपकरण जिम्मेदारी से उपयोग किए जाएं. मानवाधिकारों के हनन या क्षेत्रीय अस्थिरता में योगदान न दें. दूसरे विश्व युद्ध के बाद से जर्मनी ने शांतिवादी रुख अपनाया है, इसी वजह से रक्षा नीतियों और हथियारों के निर्यात के प्रति उसका दृष्टिकोण अलग है.
सवाल – तो क्या भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर की अपील के बाद जर्मनी भारत के लिए अपने रक्षा उपकरण निर्यात नियंत्रण में ढील देगा?
– इस साल की शुरुआत में जर्मनी के उप विदेश मंत्री टोबियास लिंडनर ने कहा है कि भारत के लिए जर्मन कंपनियों से हथियार खरीदने की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए उनकी सरकार निर्यात नियंत्रण नियमों में सुधार करेगी. हालांकि भारत ने पिछले कुछ बरसों में जर्मनी से कुछ खास रक्षा उपकरण चाहे थे, जो उससे नहीं मिले तो उसे विकल्प तलाशने पड़े.
Tags: EAM S JaishankarFIRST PUBLISHED : September 11, 2024, 16:20 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed