Explainer:क्या है स्पैडेक्सजिसे भारत ने स्पेस में लांच कियाक्यों बड़ी छलांग
Explainer:क्या है स्पैडेक्सजिसे भारत ने स्पेस में लांच कियाक्यों बड़ी छलांग
30 दिसंबर को भारत ने अपने पीएसएलवी रॉकेट के जरिए स्पैडेक्स का जो मिशन स्पेस में लांच किया है. अगर वो सफल हो गया तो अंतरिक्ष में भारत के लिए एक नए युग की शुरुआत करेगा. ये बहुत बड़ी सफलता होगी.
हाइलाइट्स स्पैडेक्स का अर्थ होता है 'स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट' यानी अंतरिक्ष में यानों को 'डॉक' और 'अनडॉक' करना मिशन की सफतला के साथ ही भारत दुनिया के चार देशों में शामिल हो जाएगा, एक नए युग की शुरुआत जब अंतरिक्ष में दो यानों को जोड़़ा जाएगा, तब वह 28000 किमी घंटा की रफ्तार से गति कर रहे होंगे
इसरो (ISRO) ने 30 दिसंबर को ‘स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट’ यानी स्पैडेक्स स्पेसक्राफ्ट की सफल लांचिंग कर नया इतिहास रच दिया. इस तरह भारत ने अंतरिक्ष की दुनिया में एक और बड़ी छलांग लगा ली. डॉकिंग तकनीक के जरिए इसरो अंतरिक्ष में दो स्पेसक्राफ्ट को आपस में जोड़ेगा. अंतरिक्ष में ये काम अब तक रूस, अमेरिका और चीन ही कर पाए हैं.
आने वाले दिनों में इसरो के वैज्ञानिक पीएसएलवी-सी60 के जरिए छोड़े गए दोनों यानों की बीच की दूरी कम करके अंतरिक्ष में उन्हें पास लाकर जोड़ेंगे या डॉक करेंगे. बता दें कि प्रक्षेपण के कुछ ही मिनटों बाद दोनों अंतरिक्षयान सफलतापूर्वक अलग हो गए.
भारत का अंतरिक्ष में ये बड़ा प्रयोग होगा. उसने दो स्पेसक्राफ्ट को एक ही रॉकेट से छोड़ा है. अब वह अंतरिक्ष में उनको पास लाएगा. जोड़ेगा. फिर अलग करके दूर ले जाएगा. इसी को डॉकिंग और अनडॉकिंग कहते हैं. ये इसलिए बहुत मुश्किल है क्योकि दोनों स्पेसक्राफ्ट अंतरिक्ष में बुलेट की रफ्तार से ज्यादा तेज चल रहे होंगे. बंदूक की गोली से तेज चलने वाले दो सैटेलाइट को पास लाना और फिर जोड़ देना बहुत मुश्किल काम है.
स्पैडेक्स क्या है?
स्पाडैक्स (स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट) एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शन मिशन है जिसे इसरो द्वारा अंतरिक्ष में डॉकिंग प्रौद्योगिकी का प्रदर्शन करने के लिए विकसित किया गया है. इसका उद्देश्य दो छोटे अंतरिक्ष यान को एक साथ लाने, डॉक करने और अनडॉक करने की क्षमता का प्रदर्शन करना है , जो भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं में एक महत्वपूर्ण प्रगति को दिखाता है.
स्पैडेक्स का प्राथमिक लक्ष्य, पृथ्वी की निचली कक्षा में दो छोटे अंतरिक्ष यान, SDX01 (चेज़र) और SDX02 (टारगेट) के लिए डॉकिंग तकनीक विकसित करना है. वो हाईटेक सेसिंग और प्रोपल्सन सिस्टम का उपयोग करते हुए स्वायत्त रूप से डॉकिंग करेंगे. ये मिशन दो साल तक चलेगा.
स्पैडेक्स दो उपग्रहों, एसडीएक्स01 और एसडीएक्स02 को ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) रॉकेट का उपयोग करके 470 किमी की कक्षा में स्थापित करेगा , जहां वे अलग हो जाएंगे और धीरे-धीरे एक-दूसरे के पास आएंगे , अंततः 20 किमी से 3 मीटर की दूरी पर डॉकिंग करेंगे. दोनों उपग्रह भारतीय डॉकिंग सिस्टम (बीडीएस) से सुसज्जित हैं.
इसमें पहले दोनों उपग्रह (चेज़र और टारगेट) 28,800 किमी/घंटा की गति से परिक्रमा करेंगे. डॉकिंग से पहले उन्हें सावधानीपूर्वक अपने सापेक्ष वेग को घटाकर सिर्फ़ 0.036 किमी/घंटा करना होगा.यानि पैदल चाल से भी कम.
कब होगी डॉकिंग अनडॉकिंग प्रक्रिया
ये प्रक्रिया 30 दिसंबर को हुए प्रक्षेपण के करीब 10 से 14 दिनों बाद होने की उम्मीद है. ‘डॉकिंग’ और ‘अनडॉकिंग’ प्रयोगों के प्रदर्शन के बाद, दोनों स्पेसक्राफ्ट सैटेलाइट्स दो साल तक अलग मिशन के लिए पृथ्वी की परिक्रमा करना जारी रखेंगे. एसडीएक्स-एक उपग्रह हाई रेजोल्यूशन कैमरा (एचआरसी) से लैस है और एसडीएक्स-दो में दो पेलोड मिनिएचर मल्टीस्पेक्ट्रल (एमएमएक्स) पेलोड और रेडिएशन मॉनिटर (रेडमॉन) हैं.
इसरो ने कहा कि ये पेलोड उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाली तस्वीरें, प्राकृतिक संसाधन निगरानी, वनस्पति अध्ययन और कक्षा में विकिरण पर्यावरण माप प्रदान करेंगे, जिनके कई अनुप्रयोग हैं. ‘स्पैडेक्स मिशन’ में ‘स्पेसक्राफ्ट ए’ में हाई रेजोल्यूशन कैमरा है, जबकि ‘स्पेसक्राफ्ट बी’ में मिनिएचर मल्टीस्पेक्ट्रल पेलोड और रेडिएशन मॉनिटर पेलोड शामिल हैं. ये पेलोड हाई रेजोल्यूशन वाली तस्वीर, प्राकृतिक संसाधन निगरानी, वनस्पति अध्ययन आदि प्रदान करेंगे.
स्पेस डॉकिंग क्या है
अंतरिक्ष डॉकिंग दो तेज गति से चलने वाले अंतरिक्ष यान को एक ही कक्षा में लाकर पास लाने और एकसाथ जोड़ने की जटिल प्रक्रिया है. यह क्षमता अंतरिक्ष में बड़ी संरचनाओं को इकट्ठा करने या उपकरण, चालक दल या आपूर्ति को स्थानांतरित करने में काम आती है.
अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) का निर्माण इसी तकनीक का उपयोग करके किया गया था, जिसमें विभिन्न मॉड्यूलों को अलग-अलग प्रक्षेपित किया गया. फिर अंतरिक्ष में एकसाथ मिलाकर स्थापित किया गया.
निरंतर डॉकिंग मिशन, आपूर्ति, नए चालक दल के सदस्यों और मॉड्यूलों को पहुंचाकर इंटरनेशनेशन स्पेस स्टेशन काम को सुचारु बनाए रखते हैं. पुराने चालक दल के सदस्यों को पृथ्वी पर वापस लौटने में सहायता करते हैं.
ये तकनीक किस काम आएगी
ये डॉकिंग अनडॉकिंग टेक्नोलॉजी भारत के चंद्रयान-4 मिशन में काम आएगी. जिसमें यान चांद पर जाएगा और फिर वहां से चांद पर उतरने वाला हिस्सा वापस अंतरिक्ष में घूमते उस रॉकेट से जुड़ेगा, जो पृथ्वी पर पर वापस भी आएगा.
फिर इसी तकनीक का इस्तेमाल भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन को बनाने में होगा. जब धरती से कई मॉड्यूल्स को ले जाकर अंतरिक्ष में जोड़ा जाएगा. 2040 में जब एक भारतीय को चांद पर भेजा जाएगा और वापस लाया जाएगा, तब भी डॉकिंग और अनडॉकिंग एक्सपेरिमेंट की जरूरत पड़ेगी. ये पेचीदा काम है. डॉकिंग से उपग्रहों की मरम्मत, ईंधन भरने और उन्हें उन्नत करने की सुविधा मिलती है. यह भविष्य में स्पेस रोबोटिक्स जैसे प्रयोगों में भी अहम साबित हो सकता है.
किस देश ने पहली बार ये काम किया
संयुक्त राज्य अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा डॉकिंग तकनीक में आगे रही है. इसने सबसे पहले 1960 के दशक में दो अंतरिक्ष यान को सफलतापूर्वक डॉक किया था, जिसने अपोलो प्रोग्राम के जरिए मून मिशनों के लिए मार्ग प्रशस्त किया. नासा आज भी अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के साथ डॉकिंग तकनीक का उपयोग करना जारी रखता है, जहां अंतरिक्ष यान नियमित रूप से अंतरिक्ष यात्रियों और आपूर्ति को पहुंचाने के लिए डॉक करते हैं. रूस और चीन भी डॉकिंग टैक्निक में काफी प्रगति कर चुके हैं.
Tags: Isro k shivan, ISRO satellite launch, Isro sriharikota location, Space, Space newsFIRST PUBLISHED : December 31, 2024, 16:14 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed