Explainer: क्या है एंटी कोलेजन डिवाइस सिस्टमजिसके होने पर नहीं होता रेल हादसा

जलपाईगुड़ी में एक मालगाड़ी के कंचनजंघा एक्सप्रेस से टक्कर के कारण बड़ा हादसा हो गया है. इसके बाद फिर से रेलवे की एंटी कोलेजन डिवाइस चर्चा में है. जानते हैं कि ये सिस्टम कैसे काम करता है.

Explainer: क्या है एंटी कोलेजन डिवाइस सिस्टमजिसके होने पर नहीं होता रेल हादसा
हाइलाइट्स इंडियन रेलवे ने 2016 में इस तरह की स्वदेशी डिवाइस डिजाइन की थी इस डिवाइस सिस्टम से अभी पूरे भारतीय रेलवे के ट्रैक को लैस नहीं किया गया है ये डिवाइस दो ट्रेनों की इस तरह की टक्कर को होने से रोकती है बंगाल के जलपाईगुड़ी में कंचनजंघा एक्सप्रेस को पीछे से एक मालगाड़ी ने तेज टक्कर मारी, जिससे बड़ा हादसा हो गया. कुछ सालों से रेल महकमा ज्यादातर ट्रेनों को इस डिवाइस से लैस करने का दावा कर रहा था. ऐसा लगता है कि ये ट्रेन और रेल सेक्टर इस डिवाइस सिस्टम से लैस नहीं था. हालांकि भारत में कई रेल सेक्टर्स में इसका इस्तेमाल हो रहा है. इसके जरिए दो ट्रेनों की इस तरह की टक्कर को रोका जा सकता है. जानते हैं कि ये डिवाइस सिस्टम क्या है. ट्रेनों में टकराव रोधी उपकरण यानिए एंटी कोलेजन सिस्टम (एसीडी) तकनीक का उपयोग करके रीयल टाइम ट्रेनों की गतिविधियों पर नजर रखी जाती है. ये यात्रियों और कर्मचारियों की सुरक्षा को बेहतर करते हैं. दो ट्रेनों को टक्कर से बचाते हैं. सवाल – ये सिस्टम कैसे काम करता है? चेतावनी देना — ड्राइवर या ऑपरेटर के लिए अलर्ट देता है. ब्रेक- आपातकालीन ब्रेकिंग प्रणाली को गंभीर परिस्थितियों में स्वचालित रूप से सक्रिय कर देता है, इससे ट्रेनें ठहर जाता हैं और ट्रेनों को आपसी टक्कर से बचा देता है.इस सिस्टम का इस्तेमाल तब होता है जबकि ट्रेनें एक ही ट्रैक पर हों और चालक सही समय पर रिएक्शन नहीं दे. सहायता देना – ये सिस्टम अन्य सुविधाएं भी देता है. मसलन आपातकालीन एसओएस संदेश, लेवल क्रॉसिंग पर स्वचालित सीटी बजाना, तथा लूप लाइन में प्रवेश करते समय गति धीमी करना. सवाल – क्या भारत में इस तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है? हां, भारत में ट्रेन टक्कर परिहार प्रणाली (टी.सी.ए.एस.) है, जिसे कवच के नाम से भी जाना जाता है. कवच पूर्ववर्ती प्रौद्योगिकी का उन्नत संस्करण है जिसे स्वदेशी तौर पर डिजाइन किया गया है. इसे देश भर में लागू करने का दावा किया गया था. हालांकि रेल मंत्रालय का कहना है कि ये सिस्टम पूरी तरह से देश की सभी ट्रेनों और रेल सेक्टर्स में वर्ष 2028 लागू हो जाएगा. ये कवच ट्रैक पर किसी अवरोध को महसूस करते ही इंजन को अपने आप रोक लेता है. सवाल – क्या इसे सभी रेल ट्रैक पर लगा दिया गया है? – अगर रेलव मंत्रालय के दावों पर गौर करें तो ये कवच 2022-23 में भारतीय रेलवे को 2,000 रेलवे पथ प्रणालियों पर कवच लगाने की योजना थी. उसके बाद हर साल 4,000-5,000 रेल चैनल नेटवर्क स्थापित किए जाने की योजना थी. सफल ट्रायल रन के बाद, कवच को दक्षिण मध्य रेलवे के अंतर्गत 1,098 से अधिक रूट किमी और 65 ट्रेनों में लगाया गया है. हालांकि इसको लगाए जाने की गति काफी धीमी है. सवाल – इस तकनीक में क्या रेल ट्रैक को तकनीक से लैस किया जाता है या कुछ और होता है? – रेलवे 2016 से ही यात्री सेवाओं पर कवच के लिए जमीनी परीक्षण कर रहा था. इस तकनीक में रेल पटरियों पर रेडियो फ्रीक्वेंसी उपकरण लगाए जाते हैं, साथ रेलवे पटरियों पर सिग्नलिंग डिवाइस और ट्रेन मोटरें लगाई गई हैं जो वास्तविक समय में लगातार संदेश भेजती हैं ताकि यह दिखाया जा सके कि जिस मार्ग पर ट्रेन चल रही है वह बाधाओं से मुक्त है. सवाल – कवच प्रणाली कैसे काम करती है? – जब कोई ट्रेन लाल सिग्नल पर चलती है तो तुरंत खतरे का संदेश प्रसारित होता है. ऐसी स्थिति में अगर लोको ऑपरेटर ट्रेन की गति को कम करके रोकने में नाकाम रहता है तो ‘कवच’ खुद ब खुद यानि आटोमैटिक तरीके से ब्रेक लगाकर गति को कम करके रोक देता है. हाई फ्रीक्वेंसी रेडियो संपर्क का उपयोग करते हुए ये लगातार काम करता है. यह सुरक्षा प्रमाणन, SIL-4 (सुरक्षा अखंडता स्तर – 4) के स्तर को भी पूरा करता है. सवाल – अगर ये सिस्टम लागू हो जाता है तो कितने दायरे में सक्रिय हो जाता है? – एक बार सिस्टम चालू हो जाने पर, 5 किलोमीटर के दायरे में सभी इंजन पूरी तरह से रुक जाएंगे, ताकि आस-पास की पटरियों पर ट्रेनों की सुरक्षा हो सके. अधिकारियों के अनुसार, लोको-पायलट और सहायक लोको-पायलट आमतौर पर चेतावनी के संकेतों और संकेतों को देखने के लिए खिड़की से अपनी गर्दन बाहर निकालते हैं. इसमें ऐसे उपकरण भी लगे होते हैं जो सिग्नलिंग के साथ ट्रेन की स्पीड को कंट्रोल करते हैं. ट्रेन चालक दल और जंक्शनों के बीच संपर्क बनाए रखते हैं. सवाल – फिलहाल कवच का इस्तेमाल कहां हो रहा है? – कवच का इस्तेमाल दक्षिण मध्य रेलवे की 1098 लाइन किलोमीटर और 65 इंजनों पर किया गया है.इसे,दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा सर्किट के हिस्से पर लागू किया जाना है, जिसका अधिकतम पथ किलोमीटर 3000 किलोमीटर से अधिक है. ही हैं,” अधिकारियों ने कहा। सवाल – क्या भारत इस तकनीक का इस्तेमाल अपने किसी रेल सेक्टर में पहले से कर रहा है? – भारतीय रेलवे 2002 से ही कोंकण रेलवे द्वारा डिजाइन की गई ‘रक्षा कवच’ टक्कर रोधी प्रणाली का इस्तेमाल कर रहा है. कोंकण रेलवे के पूर्व प्रमुख राजाराम बोज्जी ने टक्कर रोधी उपकरण (एसीडी) की स्थापना की थी. सवाल – इसकी लागत कितनी है? – प्रोजेक्ट कवच का बजट लगभग 30-50 लाख रुपये प्रति किलोमीटर होने का अनुमान है, जिसमें निजी खिलाड़ियों के लिए कई क्षेत्रों में नेटवर्क स्थापित करने के लिए दो से तीन साल की समयसीमा है, जिन्हें नीलाम किया जाएगा. सवाल – इसके पूरे देश में कब तक लागू होने की उम्मीद है? – भारतीय रेलवे को उम्मीद है कि 2028 तक देश के सभी रेल ट्रैकों पर नई टक्कर-रोधी प्रणाली पूरी तरह लागू हो जाएगी. Tags: Train accidentFIRST PUBLISHED : June 17, 2024, 14:23 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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