Explainer: क्या होते हैं दिल्ली के मुख्यमंत्री की पॉवर्स कौन यहां ज्यादा पॉवर

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जमानत पर रिहा होने के बाद कहा है कि वह पद से इस्तीफा देने वाले हैं. इसके बाद दिल्ली का मुख्यमंत्री पद भी चर्चाओं में आ गया है, जानते हैं कि दिल्ली में सीएम की पॉवर्स क्या होती है.

Explainer: क्या होते हैं दिल्ली के मुख्यमंत्री की पॉवर्स कौन यहां ज्यादा पॉवर
हाइलाइट्स किसी सामान्य राज्य की तुलना में दिल्ली विधानसभा की शक्तियां सीमित हैं मुख्यमंत्री वास्तविक कार्यकारी प्रमुख हैं उपराज्यपाल के पास कुछ विवेकाधीन शक्तियां हैं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सुप्रीम कोर्ट से जमानत पाकर जेल से बाहर तो आ गए हैं. हालांकि बाहर आते ही उन्होंने ये घोषणा कर दी कि वह दिल्ली के सीएम पद से इस्तीफा दे देंगे. दिल्ली केवल राज्य ही नहीं बल्कि देश की भी राजधानी है. फिर साथ ही केंद्र शासित क्षेत्र है. दिल्ली की पूरी स्थिति पॉवर शेयरिंग के हिसाब से थोड़ी अलग है. लिहाजा यहां के सीएम की स्थिति भी पॉवर्स के लिहाज से अलग है कई बार यहां ये भी कहा जाने लगता है कि यहां मुख्यमंत्री ताकतवर है या फिर उप राज्यपाल. सवाल – दिल्ली की शासन व्यवस्था को किस तरह संवैधानिक ढांचे के भीतर पारिभाषित किया गया है? – दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) के प्रमुख के रूप में दिल्ली के मुख्यमंत्री की शक्तियों को एक अद्वितीय संवैधानिक ढांचे के भीतर परिभाषित किया गया है जो केंद्र शासित प्रदेश और राज्य दोनों के तत्वों को जोड़ता है. इस ढांचे को विभिन्न विधायी कृत्यों और न्यायिक फैसलों द्वारा आकार दिया गया है. संवैधानिक ढांचा दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार (GNCTD) अधिनियम, 1991, दिल्ली के लिए शासन संरचना स्थापित करता है, उपराज्यपाल (LG) को प्रशासक के रूप में नामित करता है जबकि दिल्ली विधानसभा को कुछ विषयों पर कानून बनाने का अधिकार देता है. सवाल – दिल्ली के मुख्यमंत्री के पास जो शक्तियां हैं, वो किसी दूसरे राज्य की ही तरह होती हैं या अलग? – किसी सामान्य राज्य की तुलना में दिल्ली विधानसभा की शक्तियां सीमित हैं. दिल्ली सरकार पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि से संबंधित मामलों पर कानून नहीं बना सकती है, ये केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में रहते हैं. तो दिल्ली का जो भी मुख्यमंत्री होता है उसके पास इन क्षेत्रों को छोड़कर विधायी और कार्यकारी शक्तियां रहती हैं. इन क्षेत्रों को छोड़कर राज्य के पास सूची और समवर्ती सूची में विषयों पर विधायी और कार्यकारी शक्तियां हैं. सवाल – इसका क्या मतलब निकाला जा सकता है? – इसका मतलब है कि मुख्यमंत्री विभिन्न प्रशासनिक कार्यों की देखरेख कर सकते हैं. इन शक्तियों की सीमाओं के भीतर नीतियों को लागू कर सकते हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर बल दिया है कि पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि के मामलों को छोड़कर दिल्ली सरकार का सेवाओं पर नियंत्रण है. दिल्ली के मुख्यमंत्री के पास NCT यानि नेशनल कैपिटल टेरिटेरी को चलाने के लिए के लिए महत्वपूर्ण शक्तियाँ हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जो केंद्र सरकार के लिए आरक्षित नहीं हैं. हालांकि केंद्र शासित प्रदेश के रूप में दिल्ली की अनूठी स्थिति यहां के पॉवर की गतिशीलता को जटिल बनाती है. सवाल – दिल्ली में वास्तविक प्रमुख कौन होता है – मुख्यमंत्री या उपराज्यपाल? – दिल्ली के शासन में उपराज्यपाल की महत्वपूर्ण भूमिका है जबकि मुख्यमंत्री वास्तविक कार्यकारी प्रमुख हैं. उपराज्यपाल के पास कुछ विवेकाधीन शक्तियां हैं. उपराज्यपाल को अधिकांश मामलों में मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करना होता है लेकिन विशिष्ट परिस्थितियों में विवेकाधीन शक्तियां अपना सकते हैं, खासकर तब जबकि सरकार के फैसले राष्ट्रीय सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था को प्रभावित कर रहे हों. हाल के संशोधनों और अधिसूचनाओं ने एलजी की शक्तियों का काफी विस्तार किया है, जिससे उन्हें विभिन्न प्राधिकरणों में सदस्यों की नियुक्ति करने और प्रशासनिक सेवाओं पर विवेकाधिकार का प्रयोग करने की अनुमति मिली है। हाल के विधायी परिवर्तनों, विशेष रूप से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2021 और उसके बाद के अध्यादेशों ने विभिन्न प्रशासनिक कार्यों पर नियंत्रण वापस उपराज्यपाल (LG) को सौंप दिया है, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है. एलजी कुछ मामलों में स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकते हैं, विशेष रूप से सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि से जुड़े मामले, जो केंद्रीय नियंत्रण में हैं वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री दिल्ली सरकार का वास्तविक कार्यकारी मुखिया होता है, जो दिन-प्रतिदिन के शासन के लिए जिम्मेदार होता है. सीएम मंत्रिपरिषद का नेतृत्व करता है और दिल्ली विधानसभा के प्रति जवाबदेह होता है. मुख्यमंत्री के पास विधायी अधिकार हैं. हालांकि, इन अधिकारों को हाल ही में केंद्र सरकार की कार्रवाइयों द्वारा चुनौती दी गई है, जो सेवाओं और नौकरशाही नियुक्तियों पर मुख्यमंत्री के कंट्रोल को सीमित करती हैं. सवाल – क्या इससे दिल्ली की चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार और इसके मुख्यमंत्री की शक्तियों पर असर पड़ता है? – ये कहा जा सकता है. हाल के विधायी परिवर्तनों, विशेष रूप से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2023 ने विभिन्न प्रशासनिक कार्यों पर नियंत्रण वापस उपराज्यपाल (LG) को सौंप दिया है, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है. यह केंद्रीकरण निर्वाचित दिल्ली सरकार के अधिकार को कमज़ोर करता है और नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करने की दिल्ली सरकार और इसके मुख्यमंत्री की क्षमता को बाधित करता है. एलजी की बढ़ी हुई शक्तियां उन पहलों को क्रियान्वित करने में देरी और संघर्ष का कारण बन सकती हैं, जिनके लिए त्वरित कार्रवाई की जरूरत होती है. दिल्ली सरकार के फैसले एलजी द्वारा रोके जा सकते हैं या वीटो किए जा सकते हैं. सवाल – क्या इससे सिविल सेवा के अधिकारी दिल्ली की निर्वाचित सरकार और उसके प्रतिनिधियों के प्रति नहीं होती? – दरअसल दिल्ली में सरकार और उपराज्यपाल के बीच शक्ति-साझाकरण व्यवस्था जवाबदेही तंत्र को जटिल बनाती है.य सिविल सेवा मामलों पर एलजी की विवेकाधिकार का प्रयोग करने की क्षमता का अर्थ है कि सिविल सेवक निर्वाचित अधिकारियों के प्रति पूरी तरह से जवाबदेह नहीं हो सकते. जाहिर सी बात है कि इससे सिविल सेवा के अधिकारी निर्वाचित प्रतिनिधियों और नीतियों के प्रति पूरी ताकत से काम नहीं कर पाएंगे. उसका अभाव या शिथिलता महसूस होते रहेंगे. सवाल – दिल्ली में मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के बीच शक्ति साझाकरण क्या प्रभावी शासन में बाधक बनती है? – दिल्ली में शक्ति-साझाकरण की स्थिति अक्सर एलजी और मुख्यमंत्री के बीच संघर्ष की ओर ले जाती है, जो शासन को और जटिल बनाती है. नीतिगत प्राथमिकताओं या कार्यान्वयन रणनीतियों पर असहमति के परिणामस्वरूप सार्वजनिक विवाद भी होते नजर आते हैं. ये सब प्रभावी शासन से ध्यान भटकाते हैं और नीति निष्पादन के लिए अस्थिर वातावरण बनाते हैं. सवाल – इससे दिल्ली शासन में क्या दिक्कतें हो रही हैं? – 2015 से, केंद्र सरकार ने प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण उपराज्यपाल (LG) को सौंप दिया है, जिसने निर्वाचित दिल्ली सरकार के कामकाज को गंभीर रूप से बाधित किया है. अधिकारियों के बार-बार तबादले होते हैं. शासन में निरंतरता की कमी होती है. गलत काम करने वाले अधिकारियों को जवाबदेह ठहराने में असमर्थता सरकार की रिक्तियों और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को संबोधित करने की क्षमता को बाधित करती है, जिससे अकुशल सेवा वितरण होता है. – दिल्ली सरकार के लिए विभिन्न विधायी और प्रशासनिक कार्यों के लिए एलजी की सहमति लेने की आवश्यकता निर्णय लेने में टकराव पैदा करती है. – कानूनी और संवैधानिक चुनौतियां एलजी बनाम दिल्ली सरकार की शक्तियों की सीमा के बारे में चल रही कानूनी लड़ाइयां एक अस्थिर शासन वातावरण बनाती हैं. – जवाबदेही की यह कमी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमजोर करती है और शासन में जनता के विश्वास को खत्म करती है – पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर नियंत्रण की कमी प्रभावी स्थानीय शासन को काफी हद तक बाधित करती है. सवाल – दिल्ली का मुख्यमंत्री कौन से काम सीधे कर सकता है? – मुख्यमंत्री शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन और बुनियादी ढाँचे जैसे विभिन्न क्षेत्रों में नीतियां बनाने के लिए जिम्मेदार हैं – मुख्यमंत्री महत्वपूर्ण राज्य मामलों पर चर्चा और निर्णय लेने के लिए कैबिनेट मीटिंग बुलाने में सक्षम है. – मुख्यमंत्री शासन, बजट आवंटन और प्रशासनिक सुधारों के बारे में निर्णय लेने के लिए मंत्रियों के साथ सहयोग करते हैं – मुख्यमंत्री संबंधित विभाग सचिवों के साथ परामर्श करके अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर विशिष्ट मामलों को संभालने के लिए स्थायी आदेश जारी कर सकते हैं. – मुख्यमंत्री अपने-अपने विभागों में सार्वजनिक अधिकारियों द्वारा की गई कार्रवाइयों के लिए दिल्ली विधानसभा के प्रति जवाबदेह हैं. Tags: Delhi, Delhi CM, Delhi CM Arvind Kejriwal, Delhi LGFIRST PUBLISHED : September 16, 2024, 17:39 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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