राज्यों के पास कहां से आता है धन क्यों होती ऐसी कंगाली कि वेतन के पड़ते लाले

हिमाचल प्रदेश राज्य इस गंभीर वित्तीय संकट में है. उसके पास अपने कर्मचारियों को वेतन देने के पैसे नहीं हैं. बिहार में तो एक जमाने में 22 महीने तक सैलरी नहीं मिली थी. देर से वेतन मिलता था

राज्यों के पास कहां से आता है धन क्यों होती ऐसी कंगाली कि वेतन के पड़ते लाले
हाइलाइट्स हिमाचल में गंभीर वित्तीय संकट ने उठाए राज्यों के खजाने पर सवाल राज्यों के पास कहां से और कैसे आता है धन जिससे देते हैं वेतन क्यों राज्यों को पड़ने लगते हैं वेतन के लाले, क्यों डूब जाते हैं घाटे में हिमाचल प्रदेश गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. उसके पास सरकारी कर्मचारियों को वेतन देने के पैसे नहीं हैं. सैलरी सही समय पर नहीं मिल पा रही है. पेंशनर्स को पेंशन का भुगतान समय पर नहीं हो पा रहा है. ये स्थिति भारत में कई राज्यों की हो चुकी है. बिहार में तो हालत इतनी खराब थी कि यहां 22 महीने तक कर्मचारियों की सैलरी देर से मिलती थी. कई कई महीने तक पैसा मिलता ही नहीं था. ऐसे संकट का सामना यूपी जैसे राज्य ने भी किया. वैसे हिमाचल प्रदेश छोटा राज्य है. वहां के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जबकि 2 लाख कर्मचारियों और 1.5 लाख पेंशनर्स को सितंबर की पहली तारीख को वेतन नहीं मिला. अब जानते हैं कि राज्यों के पास राजस्व किन किन जरिए से आता है, जिससे वो अपना खर्च चलाते हैं, योजनाओं के लिए पैसा खर्च करते हैं और साथ साथ वेतन व पेंशन देते हैं. बिहार में लालू यादव के मुख्यमत्री रहते हुए 90 के दशक के मध्य और आखिर खजाने की स्थिति बहुत खराब हो गई थी. एक-दो महीने नहीं बल्कि उससे सालभर से भी ज्यादा अपने कर्मचारियों के वेतन को रोका या इसमें देर की. वेतन मिलता था तो अधूरा मिलता था. इससे कर्मचारियों और पेंशनभोगियों की हालत बहुत बिगड़ गई थी. यूपी में कई बार ये खबरें आईं कि राज्य के खजाने में वेतन देने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं रह गया है. कैसे राज्य खजाने के लिए जुटाते हैं धन कर राजस्व से आने वाला पैसा (Tax Ravenue) अधिकांश राज्यों के लिए ये राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत है. राज्यों के खजाने में जो कुछ धन आता है, उसका 48% इसी से आता है. इसमें जीएसटी, राज्य उत्पाद शुल्क, बिक्री कर, संपत्ति कर, गैर कर राजस्व शामिल है. बिक्री कर राज्य के भीतर बेची गई वस्तुओं पर वसूला जाता है. संपत्ति कर अचल संपत्तियों पर लगाया जाता है. राज्य सरकार जो सेवाएं देती है, उसका भी शुल्क लेती है, उससे भी उसके पास धन आता है. जुर्माना और दंड वित्तीय स्रोत होते हैं केंद्र सरकार से भी धन मिलता है राज्यों को केंद्र सरकार से वित्तीय सहायता भी मिलती है. वित्त आयोग राज्यों के बीच केंद्रीय कर राजस्व के वितरण की सिफारिश करता है, जिसके अनुसार राज्यों को केंद्र से पैसा मिलता है. 14वें वित्त आयोग ने केंद्रीय कर पूल में राज्यों की हिस्सेदारी 32% से बढ़ाकर 42% कर दी है. हालांकि इस पैसे को लेकर राज्यों की हमेशा शिकायत रहती है कि उन्हें ये धन सही समय पर केंद्र से रिलीज नहीं किया जाता. सहायता अनुदान राशि के जरिए ये राशि भी केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को भेजा जाता है. हालांकि ये राशि विशिष्ट उद्देश्यों के लिए दी जाती है. ये अक्सर कुछ शर्तों से भी बंधी होती है. उन शर्तों को पूरा करने पर ही राज्यों को रिलीज की जाती है. केंद्र प्रायोजित योजनाओं से  इन योजनाओं के तहत केंद्र सरकार लागत का एक हिस्सा राज्यों को देता है. आमतौर पर राज्यों को एक निश्चित प्रतिशत (अक्सर लगभग 40%) देना होता है. हालांकि राज्यों को लगता है कि इससे उनके ऊपर बोझ बढ़ता है. कैसे मिलता है सरकारी कर्मचारियों को वेतन सरकारी कर्मचारियों का वेतन मुख्य रूप से राज्यों द्वारा एकत्र किए गए राजस्व के जरिए ही मिलता है. राज्य के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा वेतन और पेंशन सहित प्रशासनिक खर्चों के लिए आवंटित किया जाता है. उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में, हाल के वर्षों में वेतन और पेंशन के मद में राज्य के राजस्व का करीब 47% धन खर्च किया जाता रहा है. पेंशन योजनाओं के लिए राज्य के राजस्व से धन निकलता है सरकारी कर्मचारियों के लिए पेंशन का पैसा भी कुछ राज्यों द्वारा दिया जाता है. हालांकि बहुत से राज्यों में पेंशन योजनाएं बंद हो चुकी हैं. हालांकि चुनावी लाभ के लिए राज्य पुरानी पेंशन योजना पर लौटने की घोषणा तो कर देते हैं लेकिन इस धन की व्यवस्था अपने राजस्व मद से कर पाना उनके लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है. क्यों गंभीर वित्तीय संकट में फंस जाते हैं राज्य बेशक राजस्व इकट्ठा करते हैं. राजस्व में मिला धन काफी होता है लेकिन कई राज्य बेहिसाब खर्चा करते हैं, जिससे उनका राजस्व घाटा बढ़ जाता है. इसकी पूर्ति वो राजस्व संग्रह के नए तरीके अपना कर करते हैं. इसमें वह अगर अपने करों की ज्यादा कर देते हैं तो कई नए शुल्क लागू कर देते हैं. इससे अपने वित्तीय बोझ को संभालने की कोशिश करते हैं. जीएसटी मुआवजा अनुदान बंद होने से राज्य के वित्त पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. क्या ज्यादातर भारतीय राज्य वेतन देने में संकट में हैं नहीं, ऐसा नहीं है. ज्यादातर भारतीय राज्य सरकारी कर्मचारियों को वेतन देने सहित अपने खर्च की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त राजस्व जुटा रहे हैं. लेकिन कई राज्यों में इस तरह की दिक्कतें पिछले कुछ सालों में जरूर पैदा हुई हैं. – पंजाब उच्च ऋण स्तर, राजस्व घाटा और वेतन और पेंशन पर बढ़ते बोझ की वजह से गंभीर वित्तीय संकट का सामना कर रहा है. राज्य ने वेतन दायित्वों को पूरा करने के लिए उधार का सहारा भी लिया है. – जम्मू और कश्मीर भी उच्च राजकोषीय घाटे और बकाया देनदारियों के साथ वित्तीय तनाव का सामना कर रहा है. वह भी खर्चों के वित्तपोषण के लिए उधार पर निर्भर रहा है. – मणिपुर, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, गोवा, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे कुछ अन्य राज्य भी 2023-24 में ज्यादा राजकोषीय घाटे में हैं. इसकी कई वजहें भी हैं. क्या है राज्यों के वित्तीय दबाव में आने की मुख्य वजहें – सरकारों के अपने अनापशनाप खर्च – वेतन और पेंशन पर ज्यादा खर्च का बढ़ता बोझ – लगातार राजस्व घाटा – सब्सिडी में वृद्धि – पेंशन सुधारों को उलटना – राज्य के स्वामित्व वाली बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) की खराब वित्तीय स्थिति – जीएसटी मुआवजा अनुदान का प्रभाव जून 2022 में जीएसटी मुआवजा अनुदान बंद होने से भी कुछ राज्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. इसी वजह से कई राज्य अब जीएसटी स्लैब को तर्कसंगत बनाने की मांग भी कर रहे हैं. कौन से राज्य बेहतर काम करके वित्तीय संकट से उबरे कई भारतीय राज्यों ने विभिन्न रणनीतियों के माध्यम से, विशेषकर आर्थिक मंदी के बाद, वित्तीय संकटों को सफलतापूर्वक प्रबंधित किया है। यहां कुछ उल्लेखनीय उदाहरण दिए गए हैं: 1. मध्य प्रदेश – मध्य प्रदेश ने राजकोषीय सुधारों को लागू किया है, जिसमें वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की शुरुआत और कर संग्रह तंत्र में सुधार शामिल है. संसाधनों का बेहतर प्रबंधन करके खर्च में कटौती की और खर्च को तर्कसंगत बनाया. राजस्व को बढ़ाया. 2. गुजरात – गुजरात ने ऐतिहासिक रूप से एक मजबूत राजकोषीय ढांचा बनाए रखा. राज्य ने राजस्व बढ़ाने के लिए अपने औद्योगिक और कृषि क्षेत्रों का प्रभावी ढंग से उपयोग किया. एक मजबूत कर प्रणाली और आधार तो बनाया ही साथ में खर्च को भी कंट्रोल किया. 3. कर्नाटक – कर्नाटक ने राजकोषीय प्रबंधन के लिए लगातार सक्रियता बरती. कठोरता से बजट आकलन किया और कई तरह की निधि बनाई. राज्य ने अपने राजस्व स्रोतों में विविधता लाने पर भी ध्यान केंद्रित किया, जिससे आर्थिक उतार-चढ़ाव के प्रभावों को कम करने में मदद मिली. 4. तमिलनाडु – चुनौतियों का सामना करने के बावजूद तमिलनाडु ने अपने वित्तीय स्वास्थ्य में सुधार के लिए कर राजस्व बढ़ाया और गैर-आवश्यक खर्चों को रोका. राज्य को केंद्र से मिलने वाली मदद से भी फायदा हुआ. उसने अपने ऋणों के पुनर्गठन पर काम किया. 5. राजस्थान –राजस्थान ने कर संग्रह बढ़ाकर और सार्वजनिक व्यय को कंट्रोल करके वित्त प्रबंधन में खास प्रगति की. राज्य ने राजकोषीय घाटे को कम करने और वित्तीय प्रबंधन में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए कई सुधार लागू किए. बिहार में लालू राज में क्यों बनी हाहाकारी आर्थिक स्थिति 1990 से 1997 तक बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल के दौरान राज्य बुरी तरह से आर्थिक संकट में था. उनकी सरकार पर राज्य के वित्त के कुप्रबंधन का आरोप लगाया गया. राज्य का राजस्व घाटा खासा बढ़ गया. राज्य को उधार पर निर्भर होना पड़ा. ऐसे में कर आधार का विस्तार किया गया. कर संग्रह बढ़ाया गया लेकिन कोई खास फायदा इससे हुआ नहीं. दरअसल सरकार का ध्यान बुनियादी ढांचे और विकास परियोजनाओं में निवेश के बजाय लोकलुभावन उपायों और अनुत्पादक व्यय, जैसे सब्सिडी और मुफ्त गिफ्ट की ओर केंद्रित हो गया. वेतन भुगतान और पेंशन में देरी होने लगी. कुछ मामलों में सैलरी कुछ महीनों से लेकर एक साल तक की देरी से भी मिलती रही. फिर बिहार ने कैसे सुधार किए विकास कार्य- नीतीश कुमार की सरकार ने विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित किया. कुछ क्षेत्रों में सकारात्मक बदलाव देखने को मिले. सरकार ने विभिन्न योजनाओं के माध्यम से राजस्व बढ़ाने का प्रयास किया ताकि कुछ हद तक घाटे को कम किया जाए. अब भी घाटे का सामना हालांकि बिहार अब भी घाटे का सामना कर रहा है. शराब से राज्य को जो एक बड़ा राजस्व मिलता था, वो राज्य में इस पर लगे प्रतिबंध के कारण नहीं मिलता. Tags: Employees salary, Himachal Government, Himachal pradesh, Himachal pradesh newsFIRST PUBLISHED : September 4, 2024, 15:35 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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