Explainer: वोटर कब और कैसे बनाता है किसी को वोट देने का मन
Explainer: वोटर कब और कैसे बनाता है किसी को वोट देने का मन
India Elections2024 : लोकसभा चुनावों के लिए आखिरी चरण की वोटिंग चल रही है. वोटिंग को लेकर कई सवाल उभरते रहे हैं - वोटर क्या आखिरी समय तय करता है कि किसको वोट देना है या ये फैसला पहले ही कर चुका होता है. इस फैसले तक वो कैसे पहुंचता है.
हाइलाइट्स वोट देने से कितने पहले वो मन बना लेता है अमेरिका और यूरोप में वोटर क्या सोचता है महिला वोटर का वोट किन वजहों से तय होता है
लोकसभा चुनावों के आखिरी और सातवें चरण की वोटिंग आज यानि 01 जून को चल रही है. पूरे देश के वोटरों ने भारतीय लोकतंत्र के पर्व में अपनी भागीदारी की है. जब हम वोट देने जाते हैं तो क्या सोचकर जाते हैं कि किसको वोट देना है और जब हम ये फैसला करते हैं तो इसका आधार क्या होता है.
भारतीय वोटरों के वोटिंग बिहेवियर पर समय समय पर कई रिपोर्ट्स हुए. जो ये बताती हैं कि देश का वोटर जो फैसला करता है, उसके पीछे कई पहलू होते हैं, उसमें प्रत्याशी, पार्टी, धर्म, जाति, काम और विचारधारा सभी कुछ होता है. इसमें फायदे देने वाली घोषणाएं, योजनाएं और पैसा जैसे पहलू भी होते हैं.
वोटिंग व्यवहार यानि वोटर्स का मनोविज्ञान ये बताता है कि वोटर्स कैसे अपना फैसला करता है, वोट देने के दौरान उसके दिलोदिमाग में क्या होता है, जिसके आधार पर वो ये फैसला करता है कि किसे वोट देना है.
हर देश के वोटर्स का मनोविज्ञान अलग होता है
हर देश में वोटर्स का वोट मनोविज्ञान एकदम अलग होता है. मसलन अमेरिका और यूरोप में वोट डालते समय वोटर ये जरूर सोचता है कि किस पार्टी की सरकार बनने पर उसकी आर्थिक बेहतरी हो पाएगी. जापान में शहरी लोग आमतौर पर सोशलिस्ट पार्टियों के समर्थक होते हैं तो ग्रामीण आबादी कंजरवेटिव पार्टियों के समर्थक होती आई है. कई बार भावनाओं और वोटों का सीधा रिश्ता होता है.
क्या कहती है रिपोर्ट
कारनेगी की रिपोर्ट “अंडरस्टैंडिंग इंडियन वोटर्स” इसकी तह तक जाने की कोशिश करती है. मिलान वैष्णव की इस रिपोर्ट की कुछ खास बातें ये हैं
– देश में वोटर राष्ट्रीय पार्टियों के साथ क्षेत्रीय दलों के बीच पर्याप्त संतुलन रखता है
– डायनेस्टी पॉलिटिक्स बेशक लोकप्रिय नहीं हो लेकिन डायनेस्टी लीडर्स जरूर लोकप्रिय हैं
– अपराधियों को चुनने में भारतीय वोटर्स को आमतौर पर कोई गुरेज नहीं होता
– वो वोटिंग करते समय दिमाग में जाति, धर्म, धन, फायदा, समुदाय, प्रत्याशियों से रिश्ते कई बातों का ध्यान रखते हैं
– हालांकि हाल के बरसों में भारतीय वोटरों का वोटिंग बिहेवियर बदला है
– हालांकि भारतीय वोटर शायद ही कभी अच्छी अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखकर वोटिंग करता है.
क्या हैं भारतीय वोटर्स के आधार फैक्टर
– जाति : ये तो जगजाहिर है कि भारतीय वोटर्स जाति को लेकर एक खास आग्रह तो रखते हैं. इसी वजह से जहां कहीं चुनाव होते हैं, वहां पार्टियां इस आधार पर भी उम्मीदवार तय करती हैं कि उस इलाके में किस जाति के कितने वोट हैं. चुनाव विश्लेषकों के लिए इस आधार पर विश्लेषण बहुत सामान्य बात है.
2014 के लोकसभा चुनावों के बाद किए गए राष्ट्रीय चुनाव अध्ययन (National Election Study ) में पाया गया कि जातिगत विचारों ने भारत में करीब 33 फीसदी मतदाताओं के मतदान निर्णयों को प्रभावित किया. यह प्रवृत्ति विशेष रूप से उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में ज्यादा रहती आई है. नालंदा के एक बूथ पर मतदान के लिए लाइन में खड़े लोग.
– धर्म : धार्मिक या समुदाय-आधारित एजेंडे वाले राजनीतिक दल मतदान व्यवहार को प्रभावित कर सकते हैं. इसी वजह से सियासी पार्टियां इलाके की धार्मिक जनसंख्या को देखकर भी अपने उम्मीदवार तय करती हैं.
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स को शोधकर्ता सिलिया गुएतो मेलो ने अपने एक शोध में लिखा कि मतदाता अक्सर उम्मीदवारों की धार्मिक पृष्ठभूमि पर विचार करते हैं. उसी के अनुसार वोट डालते हैं. प्यू रिसर्च सेंटर के अध्ययन में पाया गया कि 64% भारतीय वयस्कों के मतदान संबंधी फैसले में धर्म की भूमिका थी. जाति की तरह पंथ, संप्रदाय और समुदाय भी वोटों को प्रभावित करते हैं.
सामाजिक-आर्थिक स्थिति –आय स्तर और आर्थिक आकांक्षाएं मतदान पैटर्न को प्रभावित करती हैं. भारत मानव विकास सर्वेक्षण (India Human Development Survey) ने पाया कि उच्च आय स्तर वाले मतदाता आर्थिक विकास और सामाजिक कल्याण पर जोर देने वाली पार्टियों का समर्थन करने की अधिक संभावना रखते हैं.
प्रधानमंत्री जन धन योजना, मुफ्त अनाज योजना, मुफ्त घर जैसी योजनाओं ने आर्थिक रूप से हाशिए पर पड़े वर्गों के मतदान विकल्पों पर प्रभाव डाला है. सासाराम की एक बूथ पर मतदान करने पहुंची महिलाएं.
राजनीतिक कारक कैसे असर डालते हैं
भारत में राजनीतिक कारक मतदाताओं की पसंद को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं. जिसमें सियासी पार्टी की विचारधारा, लीडरशिप और काम भी लोगों के जेहन में रहता है, जो वोट में बदलता है.
पार्टी कौन सी है – ये बात सबसे अहम होती है कि सियासी पार्टी कौन सी है. भारत के चुनाव आयोग के चुनाव-पश्चात सर्वेक्षणों से पता चला है कि मतदाता राजनीतिक दलों की विश्वसनीयता, प्रतिष्ठा और प्रदर्शन पर जरूर विचार करते हैं. भारत जैसे देश में सियासी पार्टी की विचारधारा साफतौर पर लोगों को प्रभावित करती है. इसके बाद उनका प्रशासन और काम रोल निभाता है.
लीडरशिप – मतदाता अक्सर नेताओं की विश्वसनीयता, करिश्मा और क्षमता का मूल्यांकन करते हैं. लोकनीति-सीएसडीएस राष्ट्रीय चुनाव अध्ययन 2019 ने संकेत दिया कि भारत में लगभग 19फीसदी मतदाताओं ने लीडरशिप को ध्यान में रखकर वोट दिया. वोटर ये देखता है कि कौन सी लीडरशिप उसकी आकांक्षाओं और जरूरतों को पूरा कर सकता है.
पार्टी विचारधारा – हमारे देश में अलग अलग विचारधारा को समर्थन करने वाली पार्टियां हैं – मसलन, समाजवाद, राष्ट्रवाद, धर्मनिरपेक्षता या क्षेत्रवाद. ये विचारधाराएं समाज के अलग वर्गों के लिए अलग मतलब रखती हैं. ये उनकी मतदान प्राथमिकताओं को प्रभावित करती हैं. विकासशील समाज अध्ययन केंद्र (Centre for the Study of Developing Societies) के सर्वेक्षणों से पता चलता है कि वैचारिक विचार भारतीय मतदाताओं के वोटिंग फैसलों को काफी हद तक प्रभावित तो करते हैं.
काम – राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर मौजूदा सरकारों का प्रदर्शन मतदाताओं के वोटिंग व्यवहार को खासा प्रभावित करता है. मुद्दे भी दिमाग पर हावी रहते हैं, मसलन- महंगाई, बेरोजगारी, देश की सुरक्षा, विकास आदि.
क्षेत्रीय एवं स्थानीय कारक भी रोल निभाते हैं
क्षेत्रीय पहचान – भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में क्षेत्रीय पहचान का बहुत महत्व है. मतदाता अक्सर उन पार्टियों के साथ जुड़ते हैं जो क्षेत्रीय हितों और आकांक्षाओं को प्राथमिकता देते हैं. भारत के चुनाव आयोग के आंकड़ों से पता चलता है कि क्षेत्रीय दलों की महत्वपूर्ण उपस्थिति है और वे विभिन्न राज्यों में समर्थन प्राप्त करते हैं.
स्थानीय मुद्दे – एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के सर्वेक्षणों से पता चलता है कि मतदाता उम्मीदवारों और पार्टियों का मूल्यांकन करते समय बुनियादी ढांचे के विकास, रोजगार के अवसर, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और कानून व्यवस्था जैसे स्थानीय मुद्दों को प्राथमिकता देते हैं.
भाषा और सिद्धांत: भाषा और कुछ हद तक सिद्धांत या उसूल भी वोटों की वजह बनते हैं. आमतौर पर पढ़े लिखे लोग इस ओर भी ध्यान देते हैं.
मीडिया का कितना असर
पारंपरिक और डिजिटल प्लेटफॉर्म सहित मीडिया जनमत और मतदाता व्यवहार को प्रभावित करने में खास भूमिका निभाता है. रॉयटर्स इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ जर्नलिज्म द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि मीडिया चुनावों के दौरान एजेंडा-सेटिंग और जनमत को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
कारनेगी की रिपोर्ट कहती है कि वोटर का सामाजिक वातावरण मीडिया की बजाए उसके वोटों के तरीके को ज्यादा प्रभावित करता है.
सोशल मीडिया – भारत में मतदाता व्यवहार पर सोशल मीडिया का असर अब तो बिल्कुल होता है. इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (IAMAI) और नीलसन के अध्ययन में पाया गया कि सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म राजनीतिक राय और वरीयताओं को आकार देने में अहम भूमिका निभाने लगे हैं.
जनवरी 2022 तक भारत में 624 मिलियन से अधिक सक्रिय सोशल मीडिया उपयोगकर्ता थे, जो इसे वैश्विक स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा बाजार बनाता है. लोकनीति-सीएसडीएस राष्ट्रीय चुनाव अध्ययन (2019) ने ये भी पाया कि भारत में लगभग 39 फीसदी वोटर्स राजनीतिक जानकारी के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं.
सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (CMS) के एक अध्ययन में पाया गया कि राजनीतिक दलों ने 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान सोशल मीडिया अभियानों पर ₹27,000 करोड़ ($3.6 बिलियन) से अधिक खर्च किए, जो ये बताता है कि सोशल मीडिया अब वोटर्स को प्रभावित करने वाला बड़ा मंच बन गया है.
अमेरिका और यूरोप में क्या होता है
– अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों में वोटर वोट देने से पहले एक बार ये जरूर सोचता है कि आने वाली सरकार आर्थिक तौर पर उसके लिए कितनी मददगार होगी. ये वहां की सरकारों की लोकप्रियता की पहली शर्त होती है लेकिन भारत में वोटर्स के दिमाग में शायद ही ये बात प्राथमिकता में होती है. भारत में इकोनॉमिक्स और चुनाव के बीच संबंध कम है. हालांकि पिछले कुछ चुनावों में ये बात भारत में भी देखी जाने लगी है कि मतदाता अब सोचने लगा कि किस सरकार की कौन सी घोषणाएं और योजनाएं उसके लिए आर्थिकतौर पर फायदेमंद हो सकती हैं.
प्रत्याशी कितना उपलब्ध रहता है
जनप्रतिनिधि की उपलब्धता और उसके काम कराने की क्षमता उसे वोटरों से काफी हद तक जोड़ती है. जिन स्थानों में चुनाव जीतते ही नेताओं ने जनता से दूरी बना ली या वो जनता के काम नहीं करा पाए, वहां उनकी छवि पर काफी नकारात्मक असर पड़ा. वोटर ने उनको लेकर नकारने का मन बना लिया.
जो सबसे नीचे रहता है
ये सबसे नीचे होता है, हालांकि एंटी एंकंबेंसी फैक्टर को लेकर सरकारों को जनता खारिज करती रही है. ये इस पर भी निर्भर करता है कि सरकार के काम करने को लेकर दूसरे सियासी कैसा माहौल बना रहे हैं या मीडिया के जरिए उनका कैसा परसेप्शन बन रहा है. हालांकि शिक्षित युवाओं के बीच ये रुझान बदल रहा है. वो सरकार के कामकाज और पार्टी की प्राथमिकताओं को देखकर वोट देते हैं
कितने समय पहले मन बना लेता है
एक और रिपोर्ट कहती है कि भारतीय मतदाता जब मतदान केंद्र पर वोट देने पहुंचता है तो ईवीएम पर बटन दबाने से पहले ही फैसला करके आता है कि उसको किसे वोट देना है. ओपिनियन पोल से लेकर एग्जिट पोल करने वाली एजेंसियां भी अपनी रिपोर्ट्स में जाहिर कर चुकी हैं कि भारतीय वोटर पहले से तय कर चुके होते हैं कि उनका वोट किधर जाना है.
ये रिपोर्ट्स भी
हमारे यहां ये भी रिपोर्ट्स आती हैं कि ग्रामीण महिलाओं से जब पूछा गया कि उन्होंने वोट देना कैसे तय किया तो उनका जवाब था कि परिवार के पुरुषों ने उनसे जो कहा, उन्होंने उसी को वोट दे दिया.
Tags: 2024 Loksabha Election, Loksabha Election 2024, Loksabha Elections, Muslim Voters, Voter ListFIRST PUBLISHED : June 1, 2024, 12:44 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed