क्या देश के दो भयंकर अग्निकांडों में फायर सेफ्टी नियमों की अनदेखी हुई

देश में दो दिनों में दो ऐसे अग्निकांड हुए हैं कि ये सवाल उठने लगे हैं क्या इन बिल्डिंग्स में अग्नि सुरक्षा नियमों का पालन किया जा रहा था. जानते हैं मल्टीप्लेक्स और अस्पतालों सहित इमारतों में अग्नि सुरक्षा के लिए किन नियमों का पालन जरूरी है.

क्या देश के दो भयंकर अग्निकांडों में फायर सेफ्टी नियमों की अनदेखी हुई
हाइलाइट्स देश में हर साल हजारों आग हादसों में हजारों लोग मरते हैं राष्ट्रीय भवन संहिता (एनबीसी) में अग्नि सुरक्षा एक अनिवार्य हिस्सा ज्यादातर आग हादसों में साबित हुआ कि सुरक्षा नियमों का पालन नहीं हुआ 25 मई 2024 – राजकोट गेमिंग जोन में भीषण आग से 12 बच्चों समेत 35 लोगों की मौत 26 मई 2024 – दिल्ली के चाइल्स हास्पिटल में आग से 6 नवजात की मौत इन दो घटनाओं ने देश को हिला दिया है. हम अक्सर देशभर में मॉल, मल्टीप्लैक्स, अपार्टमेंट्स और अस्पतालों में आग लगने की खबरें पढ़ते रहते हैं. नियम तो ये कहते हैं कि इन सभी बिल्डिंग्स में आग से बचाव के पर्याप्त उपाय होने चाहिए. फायर सेफ्टी नियमों को पूरा करने के बाद ही इन्हें हरी झंडी का सर्टिफिकेट मिलता है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की नवीनतम रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2022 में 7,500 से अधिक आग दुर्घटनाओं में 7,435 लोग मारे गए. आकंड़े बताते हैं कि आग लगने के हादसों में भारी जनहानि होती रहती है. ये भी लगता है कि हम इन अग्निकांडों को भूल गए हैं. एनसीआरबी एडीएसआई रिपोर्ट 2015 के अनुसार, भारत में आग लगने की वजह से हर दिन 48 लोग अपनी जान गंवाते हैं. आइए जरा उन आग के हादसों को भी याद कर लें, जिनमें से हर एक के बाद अग्नि सुरक्षा उपायों को सख्ती से लागू करने की बात उठी थी. 13 जून 1997 – दिल्ली के ग्रीन पार्क स्थित उपहार सिनेमा में भीषण आग में 59 लोगों की जान गई और 103 लोग घायल हो गए 2004 – तमिलनाडु के तंजावुर जिले के कुंभकोणम अग्निकांड में 94 स्कूली बच्चे मारे गए 10 अप्रैल 2006 – मेरठ के विक्टोरिया पार्क में इलेक्ट्रॉनिक्स प्रदर्शनी में भीषण आग में 65 लोगों की जान चली गई 23 दिसंबर 1995 – मंडी डबवाली में डीएवी पब्लिक स्कूल के वार्षिक उत्सव में आग लगने से देखते ही देखते 05 मिनट में 400 से ज्यादा लोग जल गए. गुजरात सरकार ने गेम जोन कांड में सख्त कार्रवाई करते हुए 7 अधिकारियों को सस्पेंड किया. (PTI) तो ऐसे में हमें जानना चाहिए कि आग लगने की स्थिति में जोखिम को कम करने के लिए और जानमाल की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए क्या नियम, प्रक्रियाएं और उपाय हैं. सवाल – क्या भारत में अग्नि सुरक्षा के लिए कोई नियम और दिशा-निर्देश हैं? – राष्ट्रीय भवन संहिता (एनबीसी) में अग्नि सुरक्षा एक अनिवार्य हिस्सा है. बगैर इसके किसी भी भवन को क्लियरेंस नहीं मिलता. इस संहिता को भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने 1970 में पहली बार तैयार करके प्रकाशित किया. फिर इसे 2016 में अपडेट किया गया. देशभर में जो भी बड़े कामर्शियल भवन, हास्पिटल, स्कूल भवन और अपार्टमेंट्स बनते हैं, उसमें ये लागू होते हैं. लिहाजा एनबीसी सिफारिशों को पूरा किए बगैर किसी भी भवन को मंजूरी नहीं दी सकती. अग्निशमन सेवाएं चूंकि राज्य का विषय है, लिहाजा इसे राज्य को ही लागू कराना होता है. इसे संविधान की 12वीं अनुसूची में नगरपालिका कार्य के रूप में शामिल किया गया है. सवाल – क्या इस बारे में केंद्र सरकार का भी मानदंड और दिशा-निर्देश है? – आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय का ‘ मॉडल बिल्डिंग बायलॉज 2016’ पूरे देश में संबंधित राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को बिल्डिंग बायलॉज तैयार करता है. इस मॉडल में अग्नि सुरक्षा और सुरक्षा जरूरतों के मानक तैयार किए गए हैं. इनके अलावा राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने घरों, स्कूलों और अस्पतालों में अग्नि सुरक्षा पर दिशा-निर्देश तैयार किए हैं. जिसमें खुली सुरक्षा जगह रखने, निकासी की बेहतर व्यवस्था करने, डेडीकेटेड सीढ़ियां बनाने के साथ संबंधित उपकरणों को लगाने की जरूरी कर दिया है. सबसे बड़ी और खास बात ये भी है कि इन अग्नि सुरक्षा उपायों में निकासी के विकल्पों पर खास जोर दिया गया है. स्थानीय अधिकारी आमतौर पर कामर्शियल बिल्डिंग्स में फायर सेफ्टी नार्म्स को कड़ाई से लागू नहीं करते और उनकी नियमित जांच भी नहीं करते. (PTI) सवाल – अग्नि सुरक्षा नियम क्या कहते हैं? – राष्ट्रीय भवन संहिता में साफ तौर पर कहा गया है यद्यपि पूर्ण अग्नि सुरक्षा व्यावहारिक रूप से प्राप्त नहीं की जा सकती, फिर भी अग्नि से सुरक्षा के उतने उपाय जरूर किए जाने चाहिए, जिन्हें उचित तौर पर प्राप्त किया जा सकता है. संहिता अग्नि क्षेत्रों में इमारतों के निर्माण पर सीमांकन और प्रतिबंधों के बारे में बताती है. इसमें ये भी सुनिश्चित किया जाता है कि आवासीय, और शैक्षणिक और संस्थागत इमारतें अलग क्षेत्र में हों. इन्हें अग्नि क्षेत्र 1 में रखा जाता है. जहां ये होती हैं, वहां औद्योगिक और खतरनाक संरचनाएं नहीं हो सकतीं. इमारतों को उनके नेचर के अनुसार 09 समूहों में बांटा जाता है. होटल आवासीय ‘ग्रुप ए’ के ​​अंतर्गत है तो अस्पताल संस्थागत ‘ग्रुप सी’ के अंतर्गत हैं जबकि ‘ग्रुप डी’ में मैरिज हॉल, नाइट क्लब, सर्कस टेंट और मल्टीप्लेक्स जैसी बिल्डिंग्स हैं. इसमें हर ग्रुप की इमारतों के लिए फर्श सीमा और खुली जगह भी तय होती है. सवाल – क्या ये नियम तय करते हैं कि इमारतों के निर्माण में कितनी दहनशील सामग्री का उपयोग होना चाहिए और गैर दहनशील? – राष्ट्रीय भवन संहिता का अग्नि सुरक्षा वाले हिस्से में ये भी नियमबद्ध है कि निर्माण में इस्तेमाल होने वाली सामग्री कैसी होनी चाहिए. ताकि विनाशकारी आग के खतरे को कम किया जा सके. साथ ही निकासी से जान को होने वाले खतरे को कम किया जा सके. संहिता में कहा गया है, “इमारतों के निर्माण के लिए गैर-दहनशील सामग्रियों का उपयोग किया जाना चाहिए. सीढ़ियों की आंतरिक दीवारें ईंटों या प्रबलित कंक्रीट या निर्माण की किसी अन्य सामग्री से बनी होनी चाहिए. नियमों में अधिकतम ऊंचाई, फर्श क्षेत्र अनुपात, खुले स्थान तथा दीवारों और फर्शों के प्रावधान के बारे में बताया गया है. सवाल – ज्यादातर बिल्डिंग्स में आग लगने का बड़ा कारण शार्ट सर्किट भी होता है. लिहाजा नियम वायरिंग और केबलिंग को लेकर क्या कहते हैं? – जहां तक ​​बिजली के इंस्टॉलेशन का सवाल है. NBC (The National Building Code of India ) ने साफ तौर पर कहा है कि ये जरूरी है कि वायरिंग और केबलिंग में आग को रोकने की क्षमता हो.बिजली वितरण केबल/वायरिंग को एक अलग शाफ्ट में बिछाया जाना चाहिए. शाफ्ट को हर मंजिल पर आग रोकने वाली सामग्री से सील किया जाना चाहिए, जिसमें फर्श के समान आग प्रतिरोधक क्षमता हर हाल में होनी चाहिए. शाफ्ट और फॉल्स सीलिंग में चलने वाली उच्च, मध्यम और कम वोल्टेज की वायरिंग अलग-अलग शाफ्ट/नालियों में बिछाई जानी चाहिए. महत्वपूर्ण आवश्यकताओं के लिए आपातकालीन बिजली आपूर्ति वितरण प्रणाली की व्यवस्था होनी चाहिए. इसमें निकास संकेत और आपातकालीन प्रकाश व्यवस्था, अग्नि अलार्म प्रणाली और आपात स्थितियों के लिए सार्वजनिक अनाउंस सिस्टम का प्रावधान शामिल है. इसमें कई तकनीक भी सुझाई गई हैं, जो आग रोकने के लिए बिल्डिंग में होना चाहिए. मसलन – आटोमैटिक तरीके से आग का पता लगाने और तुरंत अलार्म करने का सिस्टम, छत के टैंक से जुड़ी डाउन-कमर पाइपलाइन, ड्राई राइजर पाइपलाइनें जिनका उपयोग अग्निशमन कर्मी ऊपरी मंजिलों पर आग बुझाने के लिए कर सकते हैं, साथ में आटोमैटिक स्प्रिंकलर और पानी के स्प्रे, फायरमैन की लिफ्ट, आग अवरोधक, भागने के रास्ते और चिह्न. लेकिन अक्सर इन प्रावधानों को अनदेखा कर दिया जाता है. सवाल – क्या राज्यों के अधिकारी अग्नि सुरक्षा नियमों को लागू करने में ढिलाई दिखाते हैं? – ज्यादातर आग लगने की घटनाओं में यही साबित हुआ है. ज्यादातर इन बिल्डिंग्स की नियमित तौर पर जांच नहीं होती. ना ही इनमें कोई कमी पाए जाने पर उस पर नोटिस देकर उसे पूरा नहीं कराया जाता. इसी वजह से अदालतों ने अक्सर राज्य अधिकारियों को अग्नि सुरक्षा नियमों को लागू करने में ढिलाई करने के लिए फटकार लगाई है. फायर सेफ्टी डिपार्टमेंट में कर्मचारियों की कमी भी इस समस्या को और बढ़ा देती है, जिससे दुखद जान-माल का नुकसान होता है, जैसा कि राजकोट गेम ज़ोन और दिल्ली के अस्पताल में आग लगने की घटना में हुआ. सवाल – राजकोट में अग्नि सुरक्षा नियमों में क्या लापरवाही या ढील हुई? – राजकोट मामले में आरोपियों ने मेटल शीट फैब्रिकेशन का उपयोग करके दो मंजिला इमारत बनाई, इसे जिस तरह बनाया गया, वो मानदंडों का उल्लंघन था. एफआईआर कहती है आरोपियों ने स्थानीय अग्निशमन विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) प्राप्त नहीं किया था. उनके पास उचित अग्निशमन उपकरण भी नहीं थे. मालिकों ने गेमिंग जोन के निर्माण में ईंटों, कंक्रीट, टायरों और लकड़ी के फर्नीचर का भी इस्तेमाल किया, जिसके कारण आग तेजी से फैल गई. सवाल – दिल्ली के चाइल्ड केयर हास्पिटल में किस तरह फायर सेफ्टी नियमों की धज्जियां उड़ीं? – फायर सेफ्टी नियम कहते हैं कि इस तरह की इमारतें रिहायशी इलाके में नहीं हो सकती. हालांकि इस तरह के निर्माण देशभर में हुए हैं. अस्पताल के भीतर हमेशा सिलेंडर स्टोर करने और भरने का सिलसिला रिहायशी इलाके में जारी रहता था. आसपास के लोगों का दावा है कि आए दिन संबधित एजेंसियों को इस बारे में जानकारी दी जाती रही लेकिन उन पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. Tags: Delhi Fire, Fire Department, Fire incident, Gujarat Rajkot, Hospital fireFIRST PUBLISHED : May 27, 2024, 18:55 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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