कौन सी हैं अंडमान की वो जनजातियां जिनमें सामाजिक बदलाव को लेकर मचा है विवाद

Controversy Surrounds Andaman Tribes: अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी) जैसे शोम्पेन, जारवा (आंग), ओंगेस और ग्रेट अंडमानीज अपने लिए आरक्षित घने जंगलों में रहते हैं. इन जंगलों में गैर-आदिवासियों का प्रवेश वर्जित है. लेकिन इन जनजातियों को मुख्य धारा शामिल कराने की कोशिश की जा रही है, जिसे लेकर विवाद पैदा हो गया है.

कौन सी हैं अंडमान की वो जनजातियां जिनमें सामाजिक बदलाव को लेकर मचा है विवाद
Controversy Surrounds Andaman Tribes: अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी) को लेकर एक बहस चल रही है. विवाद का एक पहलू पीजीटीवी को मुख्य धारा में शामिल करने को लेकर है. क्योंकि इन जनजातियों के अस्तित्व को लेकर कुछ विशेषज्ञों ने चिंता जताई है. उनका मानना है कि इससे बाहरी लोगों द्वारा उनका शोषण हो सकता है. वहीं, दूसरा विवादास्पद मामला यहां ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना को लागू किया जाना है. इसे ना केवल स्थानीय जनजातीय समूहों को खतरा हो सकता है, बल्कि यह द्वीप के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी गंभीर खतरा है. विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी) जैसे शोम्पेन, जारवा (आंग), ओंगेस और ग्रेट अंडमानीज अपने लिए आरक्षित घने जंगलों में रहते हैं. इन जंगलों में गैर-आदिवासियों का प्रवेश वर्जित है. लेकिन इन जनजातियों को मुख्य धारा शामिल कराने की कोशिश के तहत उनकी शिक्षा की वकालत की जा रही है. यही नहीं, इस साल हुए आम चुनावों में 19 अप्रैल को कुछ जनजातियों ने पहली बार मतदान में भाग लिया था. इसे एक वर्ग तो क्रांतिकारी कदम बता रहा है, लेकिन यहां की संस्कृति को बचाये रखने के हिमायतियों का मानना है कि ये कदम जनजातीय समूहों के खत्म होने का कारण भी बन सकते हैं. कहां है अंडमान-निकोबार अंडमान और निकोबार द्वीप समूह एक केंद्रशासित प्रदेश है. ये बंगाल की खाड़ी के दक्षिण में हिंद महासागर में स्थित है. ये द्वीप समूह लगभग 572 छोटे-बड़े द्वीपों से मिलकर बना है. जिनमें से कुछ ही द्वीपों पर लोग रहते हैं, बाकी निर्जन है. 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की जनसंख्या तीन लाख, 80 के करीब है. आबादी की केवल दस फीसदी हिस्सा ही निकोबार द्वीप में रहता है. अंडमान का लगभग 86 फीसदी हिस्सा घने जंगलों से घिरा हुआ है. यहां का साफ सुंदर समुद्र तट, मूंगे की की दीवारें और कई तरह की दुर्लभ वनस्पतियां लोगों का लुभाती हैं. समुद्री जीवन और वॉटर स्पोर्ट्स में दिलचस्पी रखने वाले पर्यटकों को यह द्वीप आकर्षित करता है.  ये भी पढ़ें- आखिर तिब्बत के ऊपर से क्यों नहीं उड़ते हैं हवाई जहाज? पायलटों को क्यों लगता है डर जानिए कौन हैं अंडमान और निकोबार में रहने वाले वो विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी) जिनके अस्तित्व को लेकर इन दिनों काफी चर्चा हो रही है. खास तौर से शोम्पेन, जारवा (आंग), ओंगेस और ग्रेट अंडमानीज जैसी जनजातियां. आइए जानते हैं इनके बारे में… शोम्पेन 2011 की जनगणना में शोम्पेन जनजाति के 229 लोग थे मौजूद थे. अप्रैल में हुए आम चुनाव में शोम्पेन जनजाति के सात सदस्यों ने यहां की एकमात्र लोकसभा सीट के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग किया. मुख्य निर्वाचन अधिकारी बीएस जगलान ने बताया कि इन लोगों को पहले एक प्रशिक्षक के जरिये ईवीएम और वीवीपेट का प्रशिक्षण दिया गया था. यह देखकर अच्छा लगा कि उन्होंने जंगल से बाहर आकर पहली बार मतदान किया. उन्होंने बताया कि 98 शोम्पेन मतदाताओं में से पहली बार सात ने मतदान किया है. इससे पहले तक निकोबार द्वीप पर शोम्पेन मुख्य रूप से संपर्क रहित खानाबदोश शिकारी माने जाते थे.कुछ लोगों को डर है कि निकोबार द्वीप पर केंद्र द्वारा 72,000 करोड़ रुपये की अंतरराष्ट्रीय ट्रांसशिपमेंट परियोजना के कारण शोम्पेन विस्थापित हो सकते हैं. हालांकि, स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों ने दावा किया कि यह परियोजना उस क्षेत्र के लिए प्रस्तावित है जहां शोम्पेन लोग नहीं रहते हैं. क्योंकि 2004 में सुनामी आने से पहले ही वे पहले ही जंगलों के अंदर चले गए थे. ये भी पढ़ें- क्या है रक्षा मंत्रालय की वो योजना, जिसके तहत स्थानीय निकायों को सौंपी जा रहीं सैन्य छावनियां, क्या पड़ेगा असर जारवा जारवा इस द्वीप समूह की एक प्रमुख जनजाति है. वर्तमान समय में इनकी संख्या 250 से लेकर 400 के बीच तक हो सकती है. जारवा लोगों की त्वचा का रंग एकदम काला होता है और कद छोटा होता है. साल 1990 तक जारवा जनजाति किसी की नजरों में नहीं आई थी और एक अलग तरह का जीवन जी रही थी. अगर कोई बाहरी आदमी इनके दायरे में प्रवेश करता था, तो ये लोग उसे देखते ही मार देते थे. हालांकि 1998 के बाद इनकी इस आदत में बहुत बदलाव आ चुका है. जारवा जनजाति 5 हजार साल से यहां रहती है, लेकिन 1990 तक बाहरी दुनिया के लोगों से इनका कोई संपर्क नहीं था. ये जनजाति अब भी तीर-धनुष से अपने लिए शिकार करती है. इनकी आबादी हर साल घटती देखी गई है. ऐसे में जानकारों का कहना है कि अगर इनको बचाना है तो इन्हें बाहरी दुनिया से दूर रखना ही उचित होगा. ग्रेट अंडमानी एक समय ग्रेट अंडमानी की इस द्वीपसमूह में सबसे अधिक आबादी थी. 1789 में उनकी अनुमानित जनसख्या 10,000 थी. साल 1901 में इनकी संख्या घटकर 625 हो गई और 1969 में इनकी संख्या घटकर मात्र 19 हो गई. लेकिन साल 1999 में इनकी संख्या बढ़ कर 41 हो गई. प्रशासन इस जनजाति के संरक्षण के लिए भरसक प्रयास कर रहा है. इस जनजाति को स्टेट आईलैंड नाम के एक छोटे से द्वीप में बसाया गया है.  ये भी पढ़ें- क्या है वो खदान जो पाकिस्तान को बना सकती है मालामाल, इस खजाने पर सऊदी अरब की नजर ग्रेट निकोबारी ग्रेट निकोबारी, ऐसी जनजाति है जो भोजन को इकट्ठा करके रखती है. आजकल वे चावल, दाल, चपाती और अन्य आधुनिक खाद्य सामग्री खाते है. वे गर्म मसालों का उपयोग करके खाना पका कर खाते हैं. लेकिन अब भी जरूरत पड़ने वे शिकार करने जाते हैं. उनके परंपारागत भोजन में मछली, डुगांग, कछुआ, कछुए के अंडे, केकड़ा और कंद मूल शामिल हैं. वे अंडमान के समुद्र में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के केकड़े, मछली, ओक्टोपस के अलावा अन्य समुद्री जीवों को खाना पसंद करते हैं. बाद में कुछ लोग सब्जियों की खेती करने लगे और मुर्गी पालन भी करने लगे हैं. सबसे ज्यादा आबादी इन्हीं की है. इस जनजाति के करीब 30,000 लोग वहां रहते हैं. ओंगी ओंगी भारत की सबसे आदिम जन जाति में से एक है. वे निग्रीटों जाति से संबंध रखते हैं. और उन्हें लिटिल अंडमान में डुगोंग क्रीक के आरक्षित क्षेत्र में रखा गया है. ये अर्ध खानाबदोश जनजाति हैं और वे पूर्णरूप से प्रकृति से प्राप्त आहार पर निर्भर हैं. वे अब बाहर लोगों के प्रभाव में आए हैं. उन्हें प्रशासन द्वारा पक्का मकान, आहार, कपड़ा, दवा आदि प्रदान किया गया. वे कछुआ, मछली, कंदमूल और कटहल आदि खाते हैं. ओंगी डोंगी भी बना सकते हैं. डुगांग क्रीक सेटलमेंट में इनके लिए एक प्राथमिक विद्यालय चल रहा है. इस जनजाति की आबादी इस समय 94 है. जानें द्वीप का इतिहास इस द्वीप पर अंग्रेजों की हुकूमत थी. लेकिन बाद में दूसरे विश्व युद् के दौरान इस पर जापान ने अपना कब्जा कर लिया था. कुछ समय के लिए अंडमान और निकोबार भारत के महान क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आाजाद हिंद फौज के अधीन भी रहा. 1947 में ब्रिटिश सरकार से आजादी मिलने के बाद यह द्वीप भारत का केंद्र शासित प्रदेश बना. ब्रिटिश सरकार ने इस जगह का उपयोग भारत की आजादी के लिए लड़ने वालों क्रांतिकारियों को अलग-थलग रखने के लिए किया जाता था. इसी कारण यह स्थान आंदोलनकारियों के बीच काला पानी के नाम से कुख्यात था. क्रांतिकारियों को कैद करने के लिए पोर्ट ब्लेयर में एक अलग जेल सेल्यूलर जेल का निर्माण किया गया था. एक तरीके से यह उसी तरह था, जैसे रूस के लिए साइबेरिया था.     Tags: Andaman and Nicobar, Andaman nicobar election 2024, Scheduled Tribe, Tribes of IndiaFIRST PUBLISHED : September 10, 2024, 13:30 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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