75 साल पहले : 11 अगस्त 1947- जिन्ना बने पाकिस्तान के राष्ट्रपति
75 साल पहले : 11 अगस्त 1947- जिन्ना बने पाकिस्तान के राष्ट्रपति
देश का बंटवारा हो चुका था. रेलवे स्टेशनों पर भीड़ थी. लोग इधर से उधर जा रहे थे. पाकिस्तान ने आजादी से पहले 11 अगस्त को अपना राष्ट्रीय झंडा फहराया. मणिपुर का विलय भारत में हुआ तो गांधीजी ने अशांत नोआखली जाने का फैसला किया,
हाइलाइट्सपाकिस्तान में आजादी से पहले पहली बार वहां का नेशनल फ्लैग फहराबंगाल में दंगे जारी थे, नोआखली ज्यादा ही धधक रहा थादोनों देशों के बीच ट्रेनों खचाखच भरी हुई चल रहीं थीं
आजादी से ठीक 03 पहले मोहम्मद अली जिन्ना को पाकिस्तान का निर्विरोध राष्ट्रपति चुना गया. जिन्ना ने कहा कि पाकिस्तान में हिंदू और मुस्लिम सभी के बराबर अधिकार हैं. आप स्वतंत्र हैं कि मंदिर जाइए या मस्जिद. हालांकि कुछ समय बाद ही पाकिस्तान कट्टर मजहबी देश बन गया. आज ही के दिन पाकिस्तान को अपना झंडा मिला.
कराची में संविधान सभा की बैठक में जिन्ना को निर्विरोध राष्ट्रपति चुन लिया गया. इसके बाद जिन्ना ने भाषण दिया कि पाकिस्तान में आप स्वतंत्र हैं. चाहें मंदिर जाएं या मस्जिद. सबके लिए समान नागरिक अधिकार का सिद्धांत है.
पाकिस्तान में कुछ दिनों बाद आप देखेंगे कि यहां मुसलमान, मुसलमान नहीं होंगे और हिन्दू, हिन्दू नहीं होंगे-सब एक देश के नागरिक होंगे. हालांकि उनके इस भाषण से ये सवाल जरूर उठता है कि अगर उनके ख्यालात ऐसे थे तो उनको मजहब के नाम पर अलग देश बनाने की जरूरत क्यों पड़ गयी.
पाकिस्तान में फहरा नेशनल फ्लैग
पाकिस्तान ने आज ही अपने नेशनल फ्लैग को फहराया. इसका डिजाइन अमीरुद्दीन किदवई ने किया था. 14अगस्त को पाकिस्तान के आजादी वाले दिन इसी को फहराया जाना था. किदवई उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में पैदा हुए थे. इसके बाद उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से वकालत की पढ़ाई की थी. उनका सियासी जीवन खिलाफत आंदोलन में एक एक्टिविस्ट के तौर पर शुरू हुआ था. 1947 में वो यहां से लाहौर चले गए. वहीं उन्होंने वकालत की.
गांधी नोआखली जाने वाले थे
गांधी जी दंगों में जल रहे नोआखली जाने वाले थे. जब सुहरावर्दी को पता चला तो वह कराची से सीधे कलकत्ता पहुंचे. गांधी जी से मिले. उनसे कलकत्ता में ही रुकने का अनुरोध किया. उन्होंने गांधी जी से कहा कि नोआखली में अब शांति हो जाएगी-इसके लिए वह भरपूर कोशिश करेंगे.
जब देश आजाद हो रहा था तब तक देश में रेलवे अलग अलग इलाकों में बंटी हुई थी औऱ इसको चलाने का काम अलग प्राइवेट कंपनियां करती थीं. बंटवारे के समय देशभर में चलने वाली ट्रेनों को आमतौर पर शरणार्थियों को लाने लेजाने के काम पर लगा दिया गया.
कश्मीर के प्रधानमंत्री ने इस्तीफा दिया
श्रीनगर में रामचंद्र काक ने महाराजा हरि सिंह से मतभेदों के कारण प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया. उनकी जगह मेजर जनरल जनक सिंह को अस्थाई रूप से प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई.
पूरे देश की ट्रेनें शरणार्थियों को ले जाने लाने के लिए लगा दी गईं
पंजाब में समस्या और जटिल होती जा रही थी. जमकर पलायन हो रहा था और जबदस्त कत्लेआम. देशभर के सभी स्टेशनों पर जमकर भीड़ थी. नई दिल्ली के रेलवे स्टेशन पर हजारों लोगों की भीड़ इकट्ठा थी. कहीं पैर रखने की भी जगह नहीं थी.
तब देशभर अलग अलग इलाकों में प्राइवेट कंपनियां रेलवे चलाती थीं. चूंकि अगस्त में एक से दूसरे देश में जाने और आने वालों की संख्या बहुत बढ़ चुकी थी, लिहाजा इस तरह ट्रेनों को क्वार्डिनेट किया गया कि देशभर की ट्रेनों से पाकिस्तान जाने और आने वालों को मैनेज किया जा सके. माल गाड़ियों रोक दी गईं. रेलवे स्टाफ भी देशभऱ से बुलाकर इसी काम पर लगा दिया गया. ये सिलसिला नवंबर तक चलता रहा. इसी दौरान देशभर में रेल चलाने वाली प्राइवेट कंपनियों से रेलवे को सरकार ने अपने हाथों में लेने का काम भी शुरू कर दिया.
मणिपुर का विलय
मणिपुर ने भारत में विलय का फैसला किया. उनके महाराजा बुद्धचंद्र ने विलय पत्र पर साइन किए. हालांकि उनके ही राज्य के बहुत से लोग इसके खिलाफ थे. उन्हें लगता था कि ये विलय स्थायी नहीं होगा. हालांकि इस विलय पर सही तरीके से अमल 1949 में हो पाया. राज्य का एक वर्ग ये नहीं चाहता था. खासकर राज्य का एक अतिवादी दल. उसने इसके खिलाफ अभियान भी चलाया. तब राज्य में इस बात को लेकर आंदोलन चलते रहे कि मणिपुर को अलग स्वतंत्र देश बनाया जाए.
विलय पर सहमति होने के बाद 1948 में राज्य में पहली बार चुनाव हुए. एमके प्रियोबरता पहले मुख्यमंत्री बने. इसी समय महाराजा और वीपी मेनन के बीच मीटिंग हुई. 1949 में पूरी तरह इस विलय पर मुहर लगा दी गई. विलय पर महारानी चंद्रकला ने हस्ताक्षर किए.
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Tags: 75th Independence Day, Freedom, Freedom Struggle Movement, Independence, Independence dayFIRST PUBLISHED : August 11, 2022, 10:19 IST