कौन हैं वो पंडित जी जिन्होंने 100 साल पहले पैगंबर पर लिखी किताबजो अब तक बैन
कौन हैं वो पंडित जी जिन्होंने 100 साल पहले पैगंबर पर लिखी किताबजो अब तक बैन
First Ban on communal Book In India : पंडित एमए चामुपति आर्यसमाज के प्रचारक थे. उन्होंने 1923 एक किताब लिखी, इसे लाहौर में राजपाल के प्नकाशन ने छापा. उनकी हत्या कर दी गई. हत्यारे का केस जिन्ना ने लड़ा लेकिन फांसी से बचा नहीं पाए
हाइलाइट्स इस किताब का नाम था रंगीला रसूल, ये भारत में प्रतिबंधित होने वाली पहली किताब थी तब लेखक ने इस किताब पर अपना नाम गुप्त रखने का अनुरोध प्रकाशक से किया था राज पाल प्रकाशन नाम का प्रकाशन हाउस है, इन्हीं प्रकाशक राजपाल द्वारा शुरू किया गया
20वीं सदी के शुरू में आर्यसमाज के बड़े विद्वान और प्रचारक थे पंडित एमए चामुपति. वह लेखक और कवि भी थे. उन्होंने करीब सौ साल पहले एक ऐसी किताब लिखी, जिसने तहलका मचा दिया. इस किताब का नाम था “रंगीला रसूल”. ये किताब अब तक तीन देशों में प्रतिबंधित है – भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान. इस किताब में पैगंबर मुहम्मद के जीवन पर लिखा गया. आलोचकों का कहना था इसमें पैंगबर पर आपत्तिजनक बातें लिखीं गईं. किताब पर बहुत बवाल हुआ. किताब के प्रकाशक का खुलेआम कत्ल कर दिया गया. हत्यारे का मुकदमा मोहम्मद अली जिन्ना ने लड़ा. हालांकि वह उसको फांसी से नहीं बचा पाए.
प्रकाशक का नाम था महाशय राजपाल. जिनके नाम पर देश में एक बड़ा प्रकाशन हाउस है. राजपाल ने इस प्नकाशन की नींव लाहौर में आजादी से पहले रखी थी. जब पंडित चामुपति ने ये किताब लिखी, तब उन्होंने प्रकाशक से अनुरोध किया था कि इस किताब पर लेखक का नाम गोपनीय रखा जाए.
ये किताब 1923 में प्रकाशित हुई. शुरू में तो इस किताब “रंगीला रसूल” के छपने पर बवाल नहीं हुआ बल्कि ये बवाल चार साल बाद शुरू हुआ. इस पर तीव्र प्रतिक्रियाएं हुईं. खासकर मुस्लिम समुदायों से, जिन्होंने इस पुस्तक को अपमानजनक और ईशनिंदा वाला माना. 1924 में इसे लेकर प्रकाशक राजपाल मल्होत्रा पर मुकदमा चला. तीन साल बाद उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया गया. इसके बाद देशभर में इसके खिलाफ मुस्लिमों का गुस्सा भड़क उठा. किताब के प्रकाशक राजपाल मल्होत्रा, जिन पर इस किताब को लेकर मुकदमा भी चला लेकिन फिर तीन साल बाद बाइज्जत बरी कर दिया गया. उन्होंने लाहौर में राजपाल एंड संस प्रकाशन हाउस की शुरुआत की थी. (फाइल फोटो)
पुस्तक के प्रकाशन ने हिंसक विरोध और सेंसरशिप सहित कानूनी और सामाजिक परिणामों को जन्म दिया. आखिरकार सांप्रदायिक अशांति को रोकने के लिए औपनिवेशिक कानूनों के तहत भारत में ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा “रंगीला रसूल” किताब पर प्रतिबंध लगा दिया गया. पुस्तक के प्रकाशन से भारत की दंड संहिता में सुधार हुए, जिससे ईशनिंदा अवैध हो गई.
लेखक का नाम गोपनीय रखा गया
इसके लेखक ‘चामुपति एम ए’ या किशन प्रसाद प्रताब नामक आर्यसमाजी थे किन्तु लेखक का नाम प्रकाशन ने कभी नहीं बताया. यह किताब बहुत विवादास्पद सिद्ध हुई. इसमें पैगम्बर मुहम्मद के विवाह एवं गृहस्थ जीवन के बारे में लिखा गया. किताब मूलतौर उर्दू में छपी किंतु बाद में इसका हिन्दी संस्करण भी प्रकाशित हुआ.
तब लेखक के नाम की जगह लिखा – दूध का दूध और पानी का पानी
जब “रंगीला रसूल” किताब प्रकाशित हुई तो इस पुस्तक के लेखक के नाम के स्थान पर ‘दूध का दूध और पानी का पानी’ लिखा था. उन्होंने महाशय राजपाल जी से यह वचन ले लिया था कि चाहे कितनी भी विकट परिस्थितियां क्यों न बनें, वे किसी को भी पुस्तक के लेखक के बारे में नहीं बताएंगे. भारत के विभाजन के बाद राजपाल द्वारा स्थापित प्रकाशन राजपाल एंड संस दिल्ली आ गया. भारत के प्रमुख हिन्दी प्रकाशक के रूप में जाने जाने लगा. लाहौर में प्रकाशक महाशय राजपाल की हत्या एक मुस्लिम द्वारा की गई. इसके बाद अगले दिन वहां के अखबार में छपी इस घटना की रिपोर्ट और तस्वीरें. (फाइल फोटो)
कई बार प्रकाशक से लेखक का नाम बताने को कहा गया
1924 से 1929 तक पांच बरसों के दौरान प्रकाशक महाशय राजपाल से कई बार असली लेखक का नाम बताने को कहा गया लेकिन उन्होंने यही कहा कि इस पुस्तक के लेखन-प्रकाशन की पूरी जिम्मेदारी मेरी ही है, अन्य किसी की नहीं.
इसके जवाब में मुसलमानों के करीब सभी गुटों की तरफ से मौलाना सनाउल्लाह अमृतसरी ने उर्दू में मुकददस रसूल बजवाब रंगीला रसूल लिखी जो हिंदी में भी प्रकाशित हुई.
पहले आस्तिक था फिर नास्तिक बना लेखक
पंडित चामुपति ने हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, उर्दू, अरबी व फारसी ने कई भाषाओं में किताबें लिखीं. गुरुकुल में अध्यापन भी किया. आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब के उपदेशक व प्रचारक भी रहे. उन्हें कई धर्मों का ज्ञाता भी माना जाता था. संस्कृत में उन्होंने एमए किया. वह पहले नास्तिक बने. फिर महर्षि दयानंद के साहित्य को पढ़ने के बाद आस्तिक बन गए. पूरी तरह आर्यसमाज के कामों में लग गए.
बाद में वह लाहौर आ गए. गुरुकुल कांगड़ी में भी पढ़ाने का काम किया. कुछ मामलों में वह इस्लाम के प्रशंसक भी थे. उसके उस पहलू को वह वैदिक इस्लाम कहते थे.
दुकान में घुसकर की गई प्रकाशक की हत्या
किताब के प्रकाशक महाशय राजपाल तब लाहौर में रहते थे. उन्होंने कुछ किताबें प्रकाशित की थीं. जब किताब पर काफी बवाल शुरू हो गया तो इल्म उद दीन नाम के एक शख्स ने दिनदहाडे़ उनकी दुकान में घुसकर उनकी हत्या कर दी. फिर पुलिस ने उसको गिरफ्तार कर लिया.
हत्यारा कारपेंटर था
अब जानते हैं कि उस शख्स के बारे में जिसने उनकी हत्या कर दी. वह कारपेंटर था. एक दिन वह अपने एक दोस्त के साथ गली से गुजर रहा था. तब उसने भीड़ को किताब के प्रकाशक राजपाल के खिलाफ मुस्लिमों के उग्र विरोध प्रदर्शन को देखा. दरअसल शुरू में जब मुस्लिम दलों ने इस किताब पर प्रतिबंध लगाने की मांग की तब ब्रिटिश सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया.
एक रुपए में हत्या के खरीदी थी खंजर
इल्म-उद-दीन शहीद ने ये सोच लिया कि वो इस किताब को छापने वाले राजपाल की हत्या कर देगा. उसने बाजार से एक रुपये में ख़ंजर खरीदा. जैसे राजपाल अपनी दुकान में आए. वह उनकी दुकान में दाखिल हुआ. खंजर के ताबड़तोड़ हमले से उनकी हत्या कर दी.
जिन्ना ने लड़ा उसका मुकदमा
उसे पंजाब मियांवाली जेल में भेज दिया गया. बाद भारतीय दण्ड संहिता के तहत अदालत ने मौत की सजा सुनाई. उसे 31 अक्टूबर 1929 को फांसी दी गई. मोहम्मद अली जिन्ना तब जाने माने बैरिस्टर थे. उन्होंने उसका मुकदमा लड़ा लेकिन सजा से नहीं बचा पाए.
प्रकाशक पर तीन बार हुए हमले
महाशय राजपाल खुद लाहौर में एक आर्यसमाजी नेता, प्रकाशक एवम हिन्दीसेवी थे. उनका लाहौर में प्रकाशन संस्थान था. जब उन्होंने रसूल रंगीला किताब छापी तो उन पर तीन जानलेवा हमले हुए. 6 अप्रैल 1929 का आक्रमण राजपाल जी के लिए प्राणलेवा बन गया.
राजपाल ने उस समय की अंग्रेज़ी भाषा की चर्चित पुस्तकों के प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद प्रकाशित किए थे, जैसे- ‘मेरी स्टोप्स’ की लोकप्रिय पुस्तक ‘मेरिड लव’ को ‘विवाहित प्रेम’ नाम से प्रकाशित किया.
आजादी से पहले राजपाल द्वारा प्रकाशित कई किताबों पर तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने मुकदमा चलाया. जुर्माने किए. कई पुस्तकों के संस्करण भी जब्त कर लिए.
Tags: Book revew, Communal Tension, Prophet MuhammadFIRST PUBLISHED : November 12, 2024, 16:31 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed