मनमोहन सिंह: चुनाव के चक्‍कर में छोड़नी पड़ी थी ईमानदारी

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ईमानदारी की मिसाल हैं. उनकी उपलब्‍ध‍ियां ज‍ितनी खास हैं, उतनी उनकी कहान‍ियां भी. डॉक्‍टर मनमोहन सिंह के जन्‍मद‍िन पर आइए जानते हैं उनसे जुड़े कुछ अनसुने कि‍स्‍से...

मनमोहन सिंह: चुनाव के चक्‍कर में छोड़नी पड़ी थी ईमानदारी
इसी साल राजनीत‍ि से र‍िटायर हुए पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह 92 साल के हो गए हैं. 1932 में 25 सितंबर को पंजाब के एक गांव में जन्मे सिंह भारत की अर्थव्‍यवस्‍था को नई दिशा देने वाले वित्‍त मंत्री और प्रधानमंत्री के रूप में जाने जाते हैं. साथ ही, वह लोकसभा की चुनावी राजनीत‍ि से दूर रहने वाले प्रधानमंत्री के रूप में भी जाने जाएंगे. हालांकि, एक बार उन्‍होंने इसका अनुभव जरूर ल‍िया, लेकिन वह अनुभव इतना कटु रहा कि हमेशा के लिए दूर रहने का फैसला कर लिया. मनमोहन सिंह करीब 33 साल राज्‍यसभा सांसद रहने के बाद 3 अप्रैल, 2024 को रिटायर हुए. उन्‍होंने अपने राजनीत‍िक जीवन में लोकसभा का चुनाव बस एक ही बार लड़ा था. वह भी सोनिया गांधी के कहने पर और पत्‍नी गुरशरण कौर के काफी खिलाफ होने के बावजूद. इस चुनाव ने जहां उन्‍हें ईमानदार रहने के उनके अड‍िग फैसले को ह‍िला दिया, वहीं फ‍िर कभी चुनावी दांवपेच में नहीं पड़ने की एक तरह से कसम भी दिलवा दी. सोनिया गांधी ने 1999 के लोकसभा चुनाव में दक्ष‍िण दिल्‍ली लोकसभा सीट से मनमोहन सिंह को उम्‍मीदवार बना दिया और चुनाव लड़ने के लिए 20 लाख रुपये भी दे दिए. लेक‍िन, वह चुनाव हार गए. इस हार से जहां उनके पूरे पर‍िवार को धक्‍का लगा, वहीं इसके बाद उन्‍होंने कभी लोकसभा चुनाव का रुख भी नहीं किया. 2004 में ट‍िकट की पेशकश होने के बावजूद उन्‍होंने तौबा कर ली. मनमोहन कैसे हारे थे चुनाव मनमोहन सिंह ने अपने जीवन का एक मात्र लोकसभा चुनाव कैसे लड़ा और कैसे हारे, इसकी कहानी उस चुनाव में उनके प्रचार प्रबंधक रहे हरचरण सिंह जोश ने बयां की है. उनके हवाले से ‘कारवां’ मैग्‍जीन ने 2011 में यह कहानी छापी थी. जीती बाजी हार गए थे डॉक्‍टर साहब जोश ने कहा था- कांग्रेस की जीत सुनिश्चित थी. दक्ष‍िण दिल्‍ली का मुकाबला ‘डॉक्टर साहब’ बनाम ‘कारसेवक’ का हो गया था. भाजपा से विजय कुमार मल्‍होत्रा उम्‍मीदवार थे. उनका चांस जीरो था. उस चुनाव से पहले के विधानसभा चुनाव में 14 में से 10 सीटें कांग्रेस ने जीती थीं. सोनिया गांधी ने खुद मनमोहन सिंह को टिकट दिया था, लेकिन पार्टी ने उन्हें बाहरी उम्मीदवार माना और कार्यकर्ताओं का समर्थन उन्हें नहीं मिला. ‘सिस्‍टम’ नहीं समझ रहे थे डॉक्‍टर साहब जोश के मुताब‍िक- पार्टी ने मनमोहन सिंह को चुनाव लड़ने के लिए 20 लाख रुपये दिए थे. बाकी उम्मीदवारों की तुलना में यह ज्यादा था. लेकिन, चुनाव लड़ने के लिए यह काफी कम था. मनमोहन सिंह विधायकों, पार्षदों और अन्य नेताओं को सामूहिक रूप से अपने लिए काम कराने के दांवपेच नहीं जानते थे. उन्हें लगता था कि जब कांग्रेस ने टिकट दिया है तो स्वाभाविक रूप से सभी नेताओं को पार्टी के उम्मीदवार के‍ लिए काम करना ही चा‍हिए और वे करेंगे ही. लोगों से पैसे लेने का कभी नहीं सोचा पैसे खत्म हो रहे थे. पैसे देने को तैयार उद्योगपति कलकत्ता से आते थे, लेकिन मनमोहन सिंह उनसे मिलते नहीं थे. बकौल जोश, एक दिन उन्होंने बताया कि पैसे खत्म हो रहे हैं. हमें कम से कम एक करोड़ रुपये चाहिए. विधायक-पार्षद पैसे मांगते हैं. कम से कम दो-दो लाख रुपये तो देने होंगे. ऑफि‍स खोलना होगा, चाय-पानी, कार का खर्चा है. इन सबके लिए पैसा चाहिए. लेकिन, मनमोहन सिंह ने पैसे के इंतजाम के बारे में कभी नहीं सोचा. एक दिन मनमोहन सिंह, जोश के साथ-साथ पत्नी गुरशरण कौर और बेटी दमन सिंह के साथ बैठे थे. तब भी सिंह ने वही बात दोहराई- मैं किसी से नहीं मिलूंगा. जोश ने कहा- डॉक्टर साहब, पैसे के बिना हम चुनाव हार जाएंगे. …अंतत: लेने ही पड़े पैसे जोश ने ‘कारवां’ पत्रिका को बताया कि जो मनमोहन सिंह शुरू में चट्टान की तरह अटल थे, अंतत: वे झुक गए और भारतीय चुनाव प्रणाली के दलदल में फंस गए. यह तय हुआ कि अब लोग डॉक्टर साहब से मिलने आया करेंगे. लोग आते और कहते- कुछ सेवा बताइए मुझे. डॉक्टर साहब उनसे कहते- बस आपका आशीर्वाद चाहिए, और कुछ नहीं. वे अंदर के कमरे में मैडम (गुरशरण) को पैसे पकड़ा देते. …फ‍िर भी नहीं पलट सकी बाजी अब पैसे आ रहे थे, लेकिन कार्यकर्ताओं में जोश भरने और मतदाताओं को अपनी ओर खींचने की कला की कमी अब भी थी. कांग्रेस के कई नेताओं ने डॉक्टंर साहब को हराने के लिए काम किया. उन बड़े नेताओं के समर्थक पार्षदों ने भी ऐसा ही किया. नतीजा रहा मनमोहन सिंह चुनाव हार गए. जोश ने यह भी बताया था कि चुनाव के बाद मनमोहन सिंह ने सात लाख रुपये पार्टी को वापस भी किए थे. कैंब्रिज में रोमांस, चॉकलेट पर गुजारा मनमोहन सिंह कैंब्रिज में पढ़े हैं. जब वह वहां पढ़ रहे थे तो उन दिनों के कुछ किस्से उनकी बेटी दमन सिंह ने बयां किए हैं. उनके बयां ये किस्से ‘स्ट्रिक्टली पर्सनल’ नाम से लिखी गई मनमोहन सिंह व पत्‍नी गुरशरण कौर की जीवनी में दर्ज हैं. यह जीवनी दमन सिंह ने ही लिखी है. दमन सिंह लिखती हैं कि कैंब्रिज के दिनों में मनमोहन सिंह पैसों की कमी के चलते पूरा-पूरा दिन केवल चॉकलेट खाकर रह जाते थे. उन्होंने एक दोस्त से दो साल के लिए 25 पाउंड उधार मांगे थे. दोस्त ने केवल तीन पाउंड दिए थे. यह कहते हुए कि इससे ज्यादा देने की मेरी हैसियत नहीं है. क्‍या ये रोमांस था दमन सिंह ने किताब में कैंब्रिज के दिनों में मनमोहन सिंह के प्यार में पड़ने के संकेतों का जिक्र भी किया है. तब उनकी शादी नहीं हुई थी. इसका जिक्र करते हुए दमन सिंह ने एक इंटरव्यू में कहा था, ‘मुझे यह जानकर खुशी हुई कि पढ़ाई के दौरान मेरे पिता किसी लड़की के बारे में भी सोचते थे. क्या वह रोमांस रहा होगा? मुझे लगता है.‘ आर्थ‍िक सुधार किया तो बेटी का हो गया था बायकॉट मनमोहन सिंह को देश में उदारीकरण के जर‍िए आर्थिक सुधार को ग‍ति देने वाले नेता के रूप में जाना जाता है. जब उन्होंने आर्थिक सुधार के लिए कदम उठाने शुरू किए थे तब उनकी काफी आलोचना भी हुई थी. इसका असर उनके परिवार तक को झेलना पड़ा था. बेटी दमन सिंह तब एक गैर लाभकारी संस्था में काम करती थीं. उन्होंने उन दिनों की आपबीती बयां करते हुए किताब में लिखा है, ‘1991 मेरी पेशेवर जिंदगी का सबसे बुरा साल रहा. तब मेरे पिता ने आर्थिक सुधार के रास्ते पर चलना शुरू किया था. मेरे साथ काम करने वाले लोग इससे भड़के हुए थे. उन्होंने मुझसे पूरी तरह किनारा कर लिया था. उन्होंने मुझे स्टाफ मीटिंग तक से दूर कर दिया था और मेरे साथ किसी भी तरह का रिश्ता् रखने से इनकार कर दिया था.’ मनमोहन की चुनावी हार हार टूट गई थीं बेटी मनमोहन सिंह तीन दशक से भी ज्यादा समय तक सांसद रहे, लेकिन लोकसभा में कभी नहीं रहे. जब पहली और आख‍िरी बार सोनिया गांधी के कहने पर 1999 में दक्षिण दिल्ली सीट से चुनाव लड़ा तो पत्नी गुरशरण कौर इसके सख्‍त खिलाफ थीं. फिर भी वह चुनाव लड़े और भाजपा के विजय कुमार मल्होत्रा से 29999 कम वोट पाकर हार गए. उनकी इस हार ने बेटी दमन सिंह को भी तोड़ कर रख दिया था. ‘स्ट्रिक्टली पर्सनल’ में दमन सिंह उस दौर को याद करते हुए लिखती हैं कि वह ‘मानसिक रूप से पूरी तरह टूट गई थीं.’ हालांकि वह यह भी लिखती हैं, ‘ऐसा लगा कि मेरी यह हालत उस वक्त घ‍टित घटनाओं से हुई थी, पर इसका कारण वे घटनाएं नहीं थीं.‘ उन्होंने लिखा कि जो कुछ भी हुआ उसके लिए मेरे पिता ने खुद को जिम्मेदार ठहराया. Tags: Congress, Dr. manmohan singh, Manmohan singhFIRST PUBLISHED : September 26, 2024, 20:38 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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