EWS कोटा छलपूर्ण व पिछले दरवाजे से आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने का प्रयास SC में दलील

Supreme Court On EWS: सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को एक वकील ने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) श्रेणी के लिए दाखिले और नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण देने का केंद्र का फैसला कई मायनों में संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन है और आरक्षण के संबंध में 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन भी होता है.

EWS कोटा छलपूर्ण व पिछले दरवाजे से आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने का प्रयास SC में दलील
नई दिल्ली: सरकारी और निजी शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और केंद्र सरकार की नौकरियों में भर्ती के लिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग यानी ईडब्ल्यूएस को दिए गए 10% आरक्षण को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि यह संशोधन समानता के अधिकार को नुकसान पहुंचाता है जो कि संविधान की आत्मा है. सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को एक वकील ने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) श्रेणी के लिए दाखिले और नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण देने का केंद्र का फैसला कई मायनों में संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन है और आरक्षण के संबंध में 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन भी होता है. एक वकील ने दलील दी कि ईडब्ल्यूएस के लिए कोटा ‘धोखाधड़ी और पिछले दरवाजे से आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने का एक प्रयास’ है. सुप्रीम कोर्ट से यह भी कहा गया कि इसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) श्रेणियों से संबंधित गरीबों को शामिल नहीं किया गया है और ‘क्रीमी लेयर’ धारणा को नाकाम बनाना है. ईडब्ल्यूएस श्रेणी के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण के अतिरिक्त है. पांच जजों की बेंच में सुनवाई चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने ईडब्ल्यूएस कोटा संबंधी 103वें संविधान संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की है. मंगलवार को दिन भर चली सुनवाई के दौरान पीठ ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण का विरोध करने वाली जनहित याचिकाओं के याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश तीन वकीलों की दलीलें सुनीं. ‘आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने का प्रयास’ शिक्षाविद मोहन गोपाल ने दलीलों की शुरुआत करते हुए पीठ से कहा, ‘ईडब्ल्यूएस कोटा अगड़े वर्ग को आरक्षण देकर, छलपूर्ण और पिछले दरवाजे से आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने का प्रयास है.’ पीठ में न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट, न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला भी शामिल हैं. कोर्ट में कहा गया, ‘जो नागरिक शैक्षिक और सामाजिक रूप से पिछड़े होने के साथ-साथ एससी और एसटी हैं, वे आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों में आने पर भी इस आरक्षण का लाभ नहीं ले सकते हैं. यह पूरी तरह से अस्वीकार्य है क्योंकि यह दर्शाता है कि केवल उच्च वर्गों के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के पक्ष में विशेष प्रावधान किए गए हैं.’ ‘समानता और अन्य मौलिक अधिकारों के सिद्धांत का उल्लंघन’ एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने संवैधानिक योजनाओं का जिक्र किया और कहा, ‘आरक्षण वर्ग-आधारित सुधारात्मक उपाय है जो लोगों के एक वर्ग के साथ किए गए ऐतिहासिक अन्याय और गलतियों को दुरुस्त करता है तथा सिर्फ आर्थिक मानदंडों के आधार पर ऐसा नहीं किया जा सकता है.’ वरिष्ठ वकील संजय पारिख ने कहा कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी से संबंधित गरीबों को बाहर रखने से यह प्रावधान सिर्फ अगड़े वर्गों के लिए हो गया है और इसलिए यह समानता और अन्य मौलिक अधिकारों के सिद्धांत का उल्लंघन है.’ इस मामले में सुनवाई आज यानी बुधवार को भी जारी रहेगी. ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी | Tags: Supreme CourtFIRST PUBLISHED : September 14, 2022, 08:56 IST