खरीफ सीजन में किसानों को मालामाल कर देंगे ये 5 मोटे अनाज
खरीफ सीजन में किसानों को मालामाल कर देंगे ये 5 मोटे अनाज
मोटे अनाज वे अनाज हैं जिसके उत्पादन में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती. ये अनाज कम पानी और कम उपजाऊ भूमि में भी उग जाते हैं. धान और गेहूं की तुलना में मोटे अनाज के उत्पादन में पानी की खपत बहुत कम होती है. इसकी खेती में यूरिया और दूसरे रसायनों की जरूरत भी नहीं पड़ती.
बलिया: खरीफ फसल का सीजन चल रहा है. धान की फसल इस सीजन की मुख्य फसलों में से एक मानी जाती है. परंतु कई अन्य फसलें भी हैं, जो खरीफ के सीजन में होती हैं. जिनकी खेती करके किसान अच्छा मुनाफा कमाते हैं. अगर आप भी एक किसान है और धान से अलग किसी अन्य फसल की खेती करना चाहते हैं तो यह खबर आपके लिए बेहद महत्वपूर्ण है. जी हां हम बात कर रहे हैं उन मोटे अनाजों की जो शरीर के लिए भी किसी वरदान से कम नहीं है. सरकार भी मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा दे रही है ताकि लोग स्वस्थ रहें.
मोटे अनाजों में टांगुन या कंगनी, कोदो, सांवा, मडुआ और रागी की कीमत बाजार में बहुत ज्यादा है. यह कहने में संकोच नहीं होगा कि इसकी खेती कर किसान मालामाल बन सकते हैं. आइए जानते इसकी खेती करने के सही तरीके को लेकर कृषि विशेषज्ञ प्रो. अशोक कुमार सिंह ने क्या कुछ कहा.
श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय बलिया के मृदा विज्ञान और कृषि रसायन विभाग के एचओडी प्रो. अशोक कुमार सिंह ने लोकल 18 को बताया कि मोटे अनाजों की खेती के लिए यह समय बहुत अच्छा है. मोटे अनाज वे अनाज हैं जिसके उत्पादन में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती. ये अनाज कम पानी और कम उपजाऊ भूमि में भी उग जाते हैं. धान और गेहूं की तुलना में मोटे अनाज के उत्पादन में पानी की खपत बहुत कम होती है. इसकी खेती में यूरिया और दूसरे रसायनों की जरूरत भी नहीं पड़ती. इसलिए ये पर्यावरण के लिए भी बेहतर होता है. साथ ही किसानों को कम लागत में अधिक मुनाफा भी होता है. खास बात यह है कि मोटे अनाज का सेवन करने से कई तरह की रोग अपने- आप ठीक हो जाते हैं.
करें इन 5 मोटे अनाजों की खेती
1 – टांगुन या कंगनी ये 60 से 90 दिन में तैयार हो जाती है, और एक बीघे के लिए सवा किलो बीज पर्याप्त है.खास बात यह है कि इसमें बहुत कम खाद और पानी की जरूरत पड़ती है. यह ऊंची जमीनों पर भी उगाई जा सकती है
2 – मड़ुआ की बाली गुच्छेदार होती हैं. यह 80 से 100 दिन में तैयार हो जाती है. मड़ुआ को सीधी बुवाई करनी है तो जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई मध्य तक मानसून की बारिश होने पर की जाती है. छिंटकवा विधि की तुलना में सीधी बुवाई से कतारों में बोआई करना बेहतर होता है. लाइन में बुआई करने के लिए बीज दर 4 से 5 किलो एकड़ जरूरत होती है.
3 – तीसरी फसल कोदो की हैं. इसका दाना लाल होता है लेकिन बीज हल्के क्रीम कलर के होते हैं. 65 से 100 दिन में तैयार होने वाली फसल है. कोदों की बुवाई का उत्तम समय 15 जून से 15 जुलाई तक है। जब भी खेत में पर्याप्त नमी हो बुवाई कर देनी चाहिए. कोदों की बुवाई अधिकतर छिटकवां विधि से की जाती है.
4- चौथी फसल है रागी, यह छोटे-मोटे अनाजों में सबसे छोटा होता है. बड़े-बड़े होटलों में इसके खीर बनते हैं. 85 से लेकर 110 दिनों में इसकी फसल तैयार होती है. एक बीघे के लिए सवा से डेढ़ किलो बीज पर्याप्त है.
5 – 5 वीं फसल है सांवा, यह एक चर्चित अनाज है. यह 60 से 100 दिन में तैयार हो जाता है. खरीफ मौसम में सांवा की बुवाई जून से जुलाई के महीने में की जाती है और फसल सितंबर से अक्टूबर के महीने में तैयार हो जाती है.
FIRST PUBLISHED : June 19, 2024, 14:51 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed