दास्तान-गो : ‘गुजरात के पारसी’ हज़ार साल से ‘मेक इन इंडिया’ ‘मेक-फॉर-इंडिया’ में ही तो लगे हैं!

Daastaan-Go ; Contribution of Parsi Community in Make in India : हिन्दुस्तान में आज पारसी समाज की आबादी महज़ 57,264 है. ये सरकारी आंकड़ा है, साल 2011 के मुताबिक. पर हिन्दुस्तान के अरब-खरबपति दौलतमंदों में हर 10 में से तीसरा नाम पारसी कारोबारी का है, जिन्होंने ‘मेक-इन-इंडिया’ के जरिए दौलत-शोहरत तो कमाई ही, ‘मेक-फॉर-इंडिया’ के मार्फ़त इज़्ज़त भी खूब कमाई है.

दास्तान-गो : ‘गुजरात के पारसी’ हज़ार साल से ‘मेक इन इंडिया’ ‘मेक-फॉर-इंडिया’ में ही तो लगे हैं!
दास्तान-गो : किस्से-कहानियां कहने-सुनने का कोई वक्त होता है क्या? शायद होता हो. या न भी होता हो. पर एक बात जरूर होती है. किस्से, कहानियां रुचते सबको हैं. वे वक़्ती तौर पर मौज़ूं हों तो बेहतर. न हों, बीते दौर के हों, तो भी बुराई नहीं. क्योंकि ये हमेशा हमें कुछ बताकर ही नहीं, सिखाकर भी जाते हैं. अपने दौर की यादें दिलाते हैं. गंभीर से मसलों की घुट्‌टी भी मीठी कर के, हौले से पिलाते हैं. इसीलिए ‘दास्तान-गो’ ने शुरू किया है, दिलचस्प किस्सों को आप-अपनों तक पहुंचाने का सिलसिला. कोशिश रहेगी यह सिलसिला जारी रहे. सोमवार से शुक्रवार, रोज़…  ———– जनाब, हिन्दुस्तान में ‘मेक इन इंडिया’ का नारा तो अभी आया है. आठ बरस पहले. अगस्त-2014 में. इसके ज़रिए हिन्दुस्तान की सरकार ने दुनियाभर के अमीरों, अरबपतियों से अपील की हुई है कि ‘आइए, हिन्दुस्तान में कारोबारी सामान बनाइए (मेक इन इंडिया) और यहां से दूसरे मुल्कों में भेजिए’. सरकार ने ये नारा इसलिए दिया ताकि ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा हिन्दुस्तान को हो. लेकिन ज़रा सोचकर देखिए, ‘गुजरात के पारसियों का समाज’ हज़ार साल से हिन्दुस्तान में क्या कर रहा है? ‘मेक इन इंडिया’ ही तो कर रहा है. हिन्दुस्तान आकर ‘हिन्दुस्तान में’ बना रहा है. ‘हिन्दुस्तान के लिए’ बना रहा है. ये सिलसिला 1300 बरस पहले शुरू हुआ और जारी है. उस वक़्त जब फ़ारस (पारस) की खाड़ी (आज ईरान और आस-पास का इलाक़ा) में बुत-परस्ती की ख़िलाफ़त करने वालों ने इस अमन-पसंद कारोबारी समाज पर ज़ुल्म ढाए तो ये हिन्दुस्तान आया. इधर, हिन्दुस्तान में इस पारसी समाज को जिन ‘जादव राणा’ की रियासत में सबसे पहले पनाह मिली, वह मौज़ूदा गुजरात सूबे के हिस्से में आई, लिहाज़ा हिन्दुस्तानी होने से भी पहले ये ‘गुजरात का पारसी समाज’ कहलाया. और फिर ‘जादव राणा’ के सामने किए क़ौल-ओ-क़रार के मुताबिक जुट रहा अपनी पनाह-गाह (गुजरात, हिन्दुस्तान) को सजाने में. इसकी फ़ज़ा ख़ुशबूदार बनाने में. इसकी ज़ुबान पर मिठास घोलने में. क्योंकि यही तो क़ौल-ओ-क़रार था इस समाज का, ‘जादव-राणा’ से कि वे अपनी इस पनाह-गाह में दूध में शक्कर की तरह घुल जाएंगे. और फिर इस समाज की ख़ुद-पसंद भी तो यही रही हमेशा से. जनाब, बहुत कम लोग जानते होंगे शायद यह कि पारसी समाज अपनी रिहाइशों को ‘बाग़’ कहा करता है. ‘बाग़’ यानी बाग़ीचा, जहां हरियाली होती है, फुलवारी (फूलों की क्यारियां) होती है. सो, इसी ‘ख़ुद-पसंद’ के मुताबिक, इस समाज ने हिन्दुस्तान को भी ‘अपने बाग़’ की तरह सूरत देने की कोशिश की हमेशा से. तमाम मिसालें मौज़ूद हैं इसकी. एक-दम शुरू से शुरू करते हैं. साल 1870 के आस-पास का वाक़ि’आ. उस वक़्त तक हिन्दुस्तान ही नहीं, बल्कि हिन्दुस्तानी उद्योग-धंधों पर भी अंग्रेजों का राज हुआ करता था. पर तभी हिन्दुस्तान के एक कारोबारी ने ‘हिंदुस्तानी उद्योग, हिंदुस्तानियों के मुताबिक, हिंदुस्तानियों द्वारा, हिंदुस्तानियों के लिए’ हो, ऐसा ख़्वाब देखा, मंसूबा बांधा और महज़ चार के भीतर ही, 1874 में इस ख़्वाब, इस मंसूबे को ज़मीन पर उतार दिया.  हिंदुस्तान में पहली बार किसी हिंदुस्तानी ने अपना कारख़ाना खड़ा किया था. इस कारोबारी का नाम हुआ, जमशेतजी नुशेरवांजी टाटा, ‘हिन्दुस्तान में औद्योगीकरण के जनक’. एक पारसी कारोबारी, जिन्होंने अपने ‘बाग़’ (मुल्क) में तब पहली फुलवारी का बीज डाला था और जो आज टाटा-समूह की शक़्ल में हिन्दुस्तान ही नहीं, दुनिया-भर में भारी-भरकम बाग़ीचे की तरह फैल चुका है. वैसे, इससे भी कुछ पहले का एक और वाक़ि’आ है. बात 1854 की है. तब फरवरी के महीने में हिन्दुस्तान के बंबई शहर में पहला-सूत कारख़ाना (कॉटन-मिल) खोला गया था. और यक़ीनन वह कोई इत्तिफ़ाक़ नहीं था कि उस कारख़ाने को खोलने वाले कारोबारी भी पारसी ही हुए. कावसजी नानाभाई दावर. हालांकि उनकी शुरुआत पर जमशेतजी नुशेरवांजी टाटा ने जो कामयाब कारोबारी इमारत खड़ी की, उसकी वज़ह से ‘हिन्दुस्तान में औद्योगीकरण के जनक’ का ख़िताब उनके ख़ाते में गया. इसी ‘टाटा ख़ानदान’ में अगले हुए दोराबजी, जिन्होंने हिन्दुस्तान को ‘लोहे का पहला कारख़ाना’ दिया. साल 1907 में. और फिर इस ख़ानदान की तीसरी पीढ़ी में हुए जहांगीर रतनजी दादाभाई (जेआरडी), जिन्होंने हिन्दुस्तान को ऊंची उड़ान भरना सिखाया. हिन्दुस्तान की पहली कारोबारी एयरलाइंस (आज की एयर इंडिया) की शुरुआत इन्हीं जेआरडी ने की, साल 1932 में. इस ख़ानदान से ऐसी मिसालें और भी हैं. अब ज़रा आइए मनोरंजन की दुनिया में. फिल्में जिसका सबसे बड़ा ज़रिया हैं. और हिन्दुस्तान में पहली बार फिल्मों को ज़ुबान देने वाली शख़्सियत का नाम याद है, क्या है. आर्देशिर ईरानी. यानी ये भी एक पारसी, जिन्होंने ‘आलम-आरा’ फिल्म से हिन्दुस्तान में बोलती फिल्मों की शुरुआत की. साल 1931 में. फिर फिल्मों की इसी दुनिया में हिन्दुस्तान की आज़ादी के वक़्त बड़ा शाहकार हुआ. ‘मुग़ल-ए-आज़म’ की सूरत में. इस शाहकार के लिए अक्सर पूरा ज़िम्मेदार बताया जाता है, कमाल के करीम आसिफ़ साहब को. मगर कम लोगों ही मानते-जानते होंगे कि आसिफ़ साहब ये कारनामा कर नहीं पाते, अगर उनके कांधे पर एक पारसी का हाथ न होता. शापूर जी पालोन जी मिस्त्री, नाम हुआ है उनका, जिन्होंने ‘मुग़ल-ए-आज़म’ को फिल्मी पर्दे पर उतारने के लिए उस ज़माने (1940-50 के बाद वाली दहाई) में डेढ़ करोड़ रुपए ख़र्च कर दिए थे. इसके बाद भी लंबी फ़ेहरिस्त है, पारसी समाज के लोगों की. मसलन, गोदरेज, वाडिया, मिस्त्री, दारूवाला, जो ‘हिन्दुस्तान की कारोबारी पहचानें’ बन चुकी हैं अब तक. इसके बाद कारोबार से इतर आइए तो एक चमकता नाम मिलेगा होमी जहांगीर भाभा का. हिन्दुस्तान के ‘परमाणु कार्यक्रम का जनक’ कहते हैं इन्हें. क्योंकि इन्होंने ही साल 1944 में दोराबजी टाटा की मदद लेकर हिन्दुस्तान में परमाणु कार्यक्रम शुरू किया था. इसी तरह, हिन्दुस्तान की सियासत के शुरुआती नामों में भी, नींव पर पारसी शख़्सियतें पाई जाती हैं. मसलन- एक हुए फ़िरोजशाह मेहता, जिन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बुनियाद डालने वालों में शुमार किया जाता है. और दूसरे दादाभाई नौरोजी, जो 1892 में इंग्लैंड की संसद में, उसके मेंबर बनकर, वहीं अंग्रेजों को बता आए थे कि हिन्दुस्तान को आज़ादी दिए बग़ैर उनकी ख़ैर नहीं होने वाली. और एक मिसाल तो ताज़ा है. साल 2020-21 की बात है. दुनियाभर में कोरोना महामारी को लेकर जब हाहाकार मचा हुआ था, तब की. उस वक़्त दुनियाभर में सबसे पहले कोरोना का टीका बनाने वालों में जो हिन्दुस्तानी नाम शुमार हुआ, और जिसने हिन्दुस्तान का रोशन किया, वह भी एक पारसी ही हैं. अदार पूनावाला, इनके वालिद हैं साइरस एस. पूनावाला, जिन्होंने 1960 की दहाई में ही ये शुरुआत कर दी थी कि एक दिन हिन्दुस्तान को दवा-बाज़ार में सबसे आगे लाकर खड़ा करना है. और देखिए, आज है भी. ऐसी और भी तमाम मिसालें हैं जनाब, जिन्हें गिनाते-गिनाते लफ़्ज़ क्या किताबों के सफ़्हात (पन्ने) भी कम पड़ जाएंगे. सो, एक लाइन में यूं समझ लीजिए कि हिन्दुस्तान में आज पारसी समाज की आबादी महज़ 57,264 है. ये सरकारी आंकड़ा है, साल 2011 के मुताबिक. पर हिन्दुस्तान के अरब-खरबपति दौलतमंदों में हर 10 में से तीसरा नाम पारसी कारोबारी का है, जिन्होंने ‘मेक-इन-इंडिया’ के जरिए दौलत-शोहरत तो कमाई ही, ‘मेक-फॉर-इंडिया’ के मार्फ़त इज़्ज़त भी खूब कमाई है. आज के लिए बस इतना ही. ख़ुदा हाफ़िज़.  ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी| Tags: Hindi news, Make in india, up24x7news.com Hindi OriginalsFIRST PUBLISHED : November 22, 2022, 09:42 IST