दास्तान-गो: चंद्रयान-2… ‘बहुत नज़दीक फिर भी बहुत दूर’ इस जुमले को उल्टा पढ़िए!
दास्तान-गो: चंद्रयान-2… ‘बहुत नज़दीक फिर भी बहुत दूर’ इस जुमले को उल्टा पढ़िए!
Daastaan-Go ; Story of Chandrayan-2 Mission : वहां जो लोग अब तक ज़श्न मना रहे थे, उन्हीं के चेहरों पर कुछ तनाव नज़र आने लगा था. कमान सेंटर से मिलने वाली हिदायतों पर ‘विक्रम’ ज़वाब नहीं दे रहा था. कंप्यूटर स्क्रीन पर उसकी स्थिति चांद की सतह से यही कोई दो किलोमीटर ऊपर बता रही थी. और तभी जैसे वह अनंत में कहीं ग़ुम हो गया. कंप्यूटर स्क्रीन पर उसका निशान मिलना बंद हो गया.
दास्तान-गो : किस्से-कहानियां कहने-सुनने का कोई वक्त होता है क्या? शायद होता हो. या न भी होता हो. पर एक बात जरूर होती है. किस्से, कहानियां रुचते सबको हैं. वे वक़्ती तौर पर मौज़ूं हों तो बेहतर. न हों, बीते दौर के हों, तो भी बुराई नहीं. क्योंकि ये हमेशा हमें कुछ बताकर ही नहीं, सिखाकर भी जाते हैं. अपने दौर की यादें दिलाते हैं. गंभीर से मसलों की घुट्टी भी मीठी कर के, हौले से पिलाते हैं. इसीलिए ‘दास्तान-गो’ ने शुरू किया है, दिलचस्प किस्सों को आप-अपनों तक पहुंचाने का सिलसिला. कोशिश रहेगी यह सिलसिला जारी रहे. सोमवार से शुक्रवार, रोज़…
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जनाब, हिन्दुस्तान ने वैसा जलसा शायद ही पहले देखा हो. साल 2019 के सितंबर महीने की सात तारीख़ थी. रात के एक बजे के आस-पास का वक़्त. आम तौर पर नींद की आग़ोश में पूरी तरह समा जाने का वक़्त होता है ये. पर उस रोज़ पूरा मुल्क ही गोया, टेलीविज़न की स्क्रीन के सामने चिपका हुआ था. तमाम समाचार चैनलों और दूरदर्शन पर भी, वाक़ि’अे का सीधा प्रसारण हो रहा था. समाचार चैनलों के एंकर जितनी तेजी से उस वाक़ि’अे की पल-पल की ख़बर दे रहे थे, घड़ी की सुइयां उससे तेज भाग रही थीं. और देखने वालों की धड़कनें शायद उससे भी तेज. कि तभी रात के क़रीब 1.37 बजे इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान) के कमान सेंटर से आवाज़ गूंजी, ‘रफ़ ब्रेकिंग ऑफ ‘विक्रम’ लैंडर बिगिंस’. यानी आम ज़बान में कहें तो ‘बेहद तेजी से चंद्रमा की तरफ़ भाग रहे ‘विक्रम’ लैंडर की रफ़्तार कम करने के लिए इमरजेंसी ब्रेक लगाने की प्रक्रिया शुरू हुई है’.
जी जनाब, यह चंद्रयान-2 मिशन की दास्तान है. इसके तहत हिन्दुस्तान ने वह करने की कोशिश की, जो दुनिया में अब तक कोई न कर सका था. इसरो ने इसके जरिए ‘विक्रम’ (मशहूर वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के नाम पर नामकरण) नाम का एक उपकरण बहुत आहिस्ता से (सॉफ्ट लैंडिंग) चंद्रमा के दक्षिणी-ध्रुव पर उतारने का मंसूबा बांधा था. चंद्रमा का दक्षिणी-ध्रुव यानी वह जगह, जिसके बारे में आज तक किसी को कुछ पता नहीं है. इंसान तो क्या, कोई छोटा-मोटा उपकरण तक वहां नहीं पहुंच सका है. कहते हैं, क़रीब-क़रीब पूरे ही वक़्त वहां अंधेरा रहता है. हिन्दू मज़हब में तो इस जगह को ‘पितृ-लोक’ भी कहा जाता है, जहां इंसानों के पुरखे रहा करते हैं. तो जनाब, वहां उतरना था ‘विक्रम’ को और वह भी दबे पैर, चुपके से. इस ‘विक्रम’ के भीतर एक रोबोट रखा हुआ था. नाम रखा गया था उसका ‘प्रज्ञान’, यानी कि ‘विवेक-बुद्धि या प्राप्त किया गया ज्ञान’.
चंद्रमा की सतह पर ‘प्रज्ञान’ का काम यही था, ज्ञान प्राप्त करना. जब तक सांसें रहतीं (विज्ञान की ज़बान में बैटरी-लाइफ़), तब तक उसे यह जायज़ा लेना था कि चंद्रमा के उस हिस्से ज़मीन कैसी है? आब-ओ-हवा किस तरह की है? इंसान के पुरखे या कोई और वहां रहता है क्या? वहां किसी के रहने लायक हाल भी हैं या नहीं? वग़ैरा, वग़ैरा. अलबत्ता, यह सब काम ‘प्रज्ञान’ तब कर पाता जब ‘विक्रम’ ठीक तरह से उस ज़मीन पर उतरता, जिसके बाद उसके दरवाज़े ख़ुलने थे और ‘प्रज्ञान’ को जाइज़ा लेने के लिए निकलना था. और रात 1.37 बजे ‘विक्रम’ की रफ़्तार थामने की जो क़वायद शुरू हुई थी, वह उसी सिलसिले का पहला सबसे बड़ा क़दम था. सबकी धड़कनें अब तक और बढ़ चुकी थीं. टेलीविज़न एंकरों की आवाज़ें धीमी हो गई थीं. क्योंकि इस क़वायद के दौरान कुछ भी हो सकता था. ‘विक्रम’ रास्ता भटक जाता, लुढ़क जाता, उसमें कोई टूट-फूट हो जाती.
लेकिन जनाब ऐसा नहीं हुआ. यही कोई 10-12 मिनट बाद इसरो के कमान सेंटर में वही आवाज़ फिर गूंजी, ‘रफ़ ब्रेकिंग ऑफ ‘विक्रम’ लैंडर एंड्स. फाइन ब्रेकिंग फ़ेज स्टार्ट्स’. मतलब, हिन्दुस्तान के साइंस-दानों ने ‘विक्रम’ की रफ़्तार पर क़ाबू करने में क़ामयाबी हासिल कर ली थी. वह अपने सही रास्ते पर, ठीक हालत में था. अब आहिस्ता से उसे उतारने की क़वायद शुरू हुई थी. कमान सेंटर में साइंस-दान इस वक़्त पहली बड़ी क़ामयाबी का ज़श्न मना रहे थे. ‘विक्रम’ अभी चांद की सतह से लगभग तीन किलोमीटर की ऊंचाई पर था. वक़्त 1.50 के आस-पास का था. कमान सेंटर में सभी की निग़ाहें कंप्यूटर की स्क्रीनों पर लगी हुई थीं. मुल्क के बाहर भी हजारों निग़ाहें कंप्यूटर-स्क्रीनों पर हिन्दुस्तान की इस क़वायद पर ग़ौर किए हुए थीं. और मुल्क के भीतर करोड़ों जोड़ी नज़रें टेलीविज़न की स्क्रीनों पर टिकी हुई थीं. तभी इसरो कमान सेंटर में माहौल बदला.
वहां जो लोग अब तक ज़श्न मना रहे थे, उन्हीं के चेहरों पर कुछ तनाव नज़र आने लगा था. कमान सेंटर से मिलने वाली हिदायतों पर ‘विक्रम’ ज़वाब नहीं दे रहा था. कंप्यूटर स्क्रीन पर उसकी स्थिति चांद की सतह से यही कोई दो किलोमीटर ऊपर बता रही थी. और तभी जैसे वह अनंत में कहीं ग़ुम हो गया. कंप्यूटर स्क्रीन पर उसका निशान मिलना बंद हो गया. इसरो के प्रमुख उस वक़्त के. सिवन हुआ करते थे. वे दूसरे साइंस-दानों के साथ संजीदगी से कुछ जानने-समझने की कोशिश कर रहे थे. ख़बरिया चैनल वालों को भी कुछ ख़ास समझ नहीं आ रहा था. तनाव का माहौल तारी था, जिसमें मुमकिन है, लाखों हाथ दुआओं के लिए उठ गए हों. कि तभी कमान सेंटर पर के. सिवन की आवाज़ गूंजी. कुछ भर्राई हुई सी, ‘हमारा संपर्क ‘विक्रम’ से टूट गया है’. यानी अब किसी को पता नहीं था कि आगे उसका क्या हुआ. अब तक तड़के तीन बजे का वक़्त हो चुका था.
हालांकि किसी की आंखों में नींद नहीं थी अब. उनकी टूटी नींद अपने साथ करोड़ों उम्मीदें तोड़ गई थी. जनाब, हिन्दुस्तान के वज़ीर-ए-आज़म नरेंद्र मोदी उस वक़्त इसरो के कमान सेंटर में मौजूद थे. उन्होंने साइंस-दानों का हौसला बढ़ाया. कहा, ‘हिन्दुस्तान को आप लोगों पर फ़ख्र है. ये ना-क़ामयाबी नहीं है कोई. बल्कि कई मायनों में बड़ी क़ामयाबी है. आने वाला वक़्त यह बताएगा’. अलबत्ता, इन लफ़्ज़ों को सुनना था कि के. सिवन का धीरज टूट गया जैसे. भरे दिल से वज़ीर-ए-आज़म को छोड़ने वे कमान सेंटर के दरवाज़े पर आए थे. वहां मोदी-साहब ने उनके कंधे पर हाथ रखा तो सिवन उनके सीने से लगकर रो पड़े. आंखें हर किसी की नम थीं, इस वक़्त. अगली सुबह ख़बरों के जरिए पता चला कि चांद की ज़मीन से कोई 300-500 मीटर ऊपर ‘विक्रम’ टेढ़ा हो गया. फिर नीचे गिर गया. उसी से शायद उसके कल-पुर्ज़े टूट गए और कमान सेंटर से नाता भी.
जाहिर तौर पर अख़बारों के लिए अगले रोज यह मसला ही पहली सुर्ख़ी था. तरह-तरह के जुमले लिखे गए. एक अख़बार ने लिखा, चंद्रयान-2 मिशन का यह मामला ‘बहुत नज़दीक, फिर भी बहुत दूर’ का रहा. हालांकि हक़ीक़त में जनाब, तो इस जुमले को उल्टा पढ़ने की ज़रूरत थी. यूं कि ‘बहुत दूर, फिर भी नज़दीक’ का मामला. कैसे? सिलसिलेवार बताते हैं. इसमें पहला- चंद्रयान-2 मिशन सिर्फ़ ‘विक्रम’ लैंडर और ‘प्रज्ञान’ से जुड़ा हुआ नहीं था. यह पूरे मिशन का सिर्फ़ पांच फ़ीसद हिस्सा था. यह पांच फ़ीसद हिस्सा भी पूरा ना-कामयाब नहीं कहा जा सकता, बल्कि 95 फ़ीसदी तक कामयाब रहा. वज़ह यह कि चांद की ज़मीन से करीब दो किलोमीटर की ऊंचाई तक वह तयशुदा तरीके से चला था. इस मिशन का बाकी 95 फ़ीसद हिस्सा तो पूरा 100 फ़ीसदी कामयाब रहा. ये आज भी चांद के गिर्द चक्कर लगाकर काम कर रहा है. तीन-चार साल और करने वाला है.
अगली बात. चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण 15 जुलाई 2019 को तकनीकी दिक़्क़तों के कारण हो नहीं पाया था. लेकिन इसरो ने हफ़्ते भर में इसका प्रक्षेपण कर अपनी क्षमता को साबित कर दिया. चंद्रयान-2 को जीएसएलवी मार्क-3 से प्रक्षेपित किया गया. यह हिन्दुस्तान का सबसे ताक़तवर अंतरिक्ष यान है. इसने मिशन के दौरान क्षमता से बेहतर काम किया. इस मिशन से जुड़े वैज्ञानिक टीवी वेंकटेश्वरन ने एक बार बताया था, ‘हमें लगा था कि चंद्रयान-2 जब धरती की कक्षा में पहुंचेगा, तो उसकी नज़दीकी दूरी 170 और अधिकतम 39,000 किलोमीटर होगी. लेकिन इस बार जीएसएलवी मार्क-3 ने चंद्रयान को पहली ही बार 180-45,000 किलोमीटर की दूरी पर ले जाकर रखा. इसका मतलब ये कि चंद्रमा तक पहुंचने में कम ईंधन की खपत हुई. इससे चंद्रयान-2 की उम्र जो पहले एक साल मानी गई, अब सात साल तक बढ़ गई है. यह 2026 तक काम करने वाला है अब’.
वेंकटेश्वरन की ही मानें तो इस मिशन से यह तय हो गया है कि जीएसएलवी मार्क-3 के जरिए अब और ज़्यादा वज़न के उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे जा सकते हैं. पहले 3.6 टन तक वज़न के उपग्रह इससे ले जाते थे. इस बार (चंद्रयान-2 मिशन में) 3.8 टन लेकर गए. अगली बार चार टन तक वज़न के उपग्रह ले जाएंगे. इसके अलावा धरती से चंद्रमा तक पहुंचने के सफ़र में जितने भी चरण आए, सब एकदम सटीक बैठे. उनमें कहीं किसी ग़लती की गुंज़ाइश तक न दिखी. चंद्रयान-2 में आठ पे-लोड हैं. यानी अलग तरह का काम करने वाले बड़े-बड़े उपकरण. ये सब के सब बेहतर काम कर रहे हैं. इसके अलावा, चंद्रयान-2 की जानिब से निकली वह कामयाबी भी सामने आई, जिसे अमेरिका जैसे बड़े मुल्कों के मिशन भी अब तक ठीक तरह हासिल न कर पाए थे. यह कामयाबी थी, चांद की सतह पर पानी की मौज़ूदगी का पता लगाने, उसकी पुख़्तगी कर देने की.
जनाब, ‘करंट साइंस’ नाम की मैगज़ीन है. उसमें इसरो के पूर्व अध्यक्ष एएस किरण कुमार की मदद से तैयार किया गया एक रिसर्च-पेपर छपा था. शायद पिछले बरस की बात है. उसमें बताया गया था कि चंद्रयान-2 में ‘इमेजिंग इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर’ (आईआईआरएस) नाम का एक उपकरण है. इससे जो जानकारियां और तस्वीरें वग़ैरा मिली हैं, उनसे चंद्रमा पर पानी की मौज़ूदगी साफ़ तौर पर दिखाई देती है’. जनाब, इस तरह की कामयाबियां और भी हैं चंद्रयान-2 के हिस्से में. इन सबको ज़ेहन में रखकर तय कीजिए, क्या चंद्रयान-2 का मामला ‘बहुत दूर, फिर भी नज़दीक’ का नहीं है. और अब रही बात चांद की ज़मीन पर उतरने की, तो वह भी हो जाएगा जल्द ही. सुना है, अगले ही साल इसरो चंद्रयान-3 मिशन पर निकलने वाला है. इसके जरिए अब रोबोट नहीं, इंसान को चंद्रमा पर उतारने की तैयारी है.
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Tags: Hindi news, ISRO, up24x7news.com Hindi OriginalsFIRST PUBLISHED : September 07, 2022, 06:37 IST