तीसरे बच्चे की क्‍या गलती मैटरनिटी लीव नहीं देने पर हाईकोर्ट का सख्‍त रुख

न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और गिरीश कठपालिया की बेंच ने कहा कि नियम के कारण तीसरे और उसके बाद के बच्चों को मातृ देखभाल से वंचित होना पड़ता है, जो पहले दो बच्चों को मिली थी.

तीसरे बच्चे की क्‍या गलती मैटरनिटी लीव नहीं देने पर हाईकोर्ट का सख्‍त रुख
हाइलाइट्स केवल दो बच्‍चों तक मैटरनिटी लीव दिए जाने का प्रावधान है. दिल्‍ली पुलिस की कर्मचारी को CATS ने तीसरे बच्‍चें पर मैटरनिटी लीव प्रदान की. इस फैसले को दिल्‍ली पुलिस ने दिल्‍ली हाईकोर्ट के सामने चुनौती दी है. नई दिल्‍ली. भारत में मौजूदा वक्‍त में केवल दो बच्‍चों तक ही महिला को मैटरनिटी लीव (मातृत्‍व अवकाश) दिए जाने का प्रावधान है. तीसरा बच्‍चा होने की स्थिति में यह सुविधा नहीं दी जाती है. ऐसे ही एक मामले में महिला की तरफ से याचिका लगाई गई, जिसमें तीसरे बच्‍चे के लिए मैटरनिटी लीव की मांग की गई. दिल्‍ली हाईकोर्ट ने सेंट्रल सिविल सर्विस (अवकाश) नियमों के विशेष प्रावधान की फिर से जांच करने का आदेश देते हुए केंद्र सरकार से पूछा कि तीसरे और उसके बाद के बच्चों का क्या दोष है, जिनके जन्म पर उनका कोई नियंत्रण नहीं है. न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और गिरीश कठपालिया की बेंच ने कहा कि नियम के कारण तीसरे और उसके बाद के बच्चों को मातृ देखभाल से वंचित होना पड़ता है, जो पहले दो बच्चों को मिली थी. केंद्रीय सिविल सेवा (अवकाश) नियम, 1972 के नियम 43 के अनुसार, अगर किसी महिला सरकारी कर्मचारी के दो से कम जीवित बच्चे हैं, तो वह 180 दिनों की अवधि के लिए मातृत्व अवकाश पाने की हकदार है. हाईकोर्ट ने कहा कि तीसरे बच्चे को जन्म के तुरंत बाद और मां के प्‍यार से वंचित करने की अपेक्षा करना “अत्याचारी” होगा. हाईकोर्ट ने माना कि नियम 43 के अनुसार उस बच्चे की मां को प्रसव के अगले दिन ही आधिकारिक कर्तव्यों के लिए रिपोर्ट करना होगा. यह याद रखना महत्वपूर्ण होगा कि गर्भवती महिला के शारीरिक और मानसिक परिवर्तन एक जैसे ही होते हैं. चाहे वह गर्भावस्था के पहले दो अवसर हों या तीसरे या उसके बाद कोई और अवसर. न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और गिरीश कठपालिया की बेंच ने कहा, “बाल अधिकारों के दृष्टिकोण से इस मुद्दे की जांच पर हम पाते हैं कि नियम 43 सीसीएस (छुट्टी) नियम एक महिला सरकारी कर्मचारी से पैदा हुए पहले दो बच्चों और तीसरे या बाद के बच्चे के अधिकारों के बीच एक अनुचित अंतर बनाता है, जिससे तीसरे और बाद के बच्चे को मातृ देखभाल से वंचित होना पड़ता है, जो पहले दो बच्चों को मिली थी.” पेश मामले में दिल्ली पुलिस  की तरफ से यह याचिका लगाई गई है. एक महिला कांस्‍टेबल को केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) ने तीसरे बच्चे वाली एक महिला कांस्टेबल को मैटरनिटी लीव देने का निर्देश दिया था, जिसे दिल्‍ली पुलिस ने चुनौती दी है. दिल्‍ली पुलिस से जुड़ने से पहले महिला के उनकी पहली शादी से दो बच्चे थे. यह शादी टूट गई और दोनों बच्चे अपने पिता के पास रहे. दूसरी शादी से उन्‍हें  तीसरा बच्चा हुआ, लेकिन मातृत्व अवकाश के लिए उसका आवेदन खारिज कर दिया गया. Tags: Central government, DELHI HIGH COURT, Delhi policeFIRST PUBLISHED : July 23, 2024, 21:27 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed