10 दिनों तक दर्द झेलता रहा CJI चंद्रचूड़ आज भी नहीं भूले हैं स्कूल का वो दिन

CJI DY Chandrachud: सीजेआई चंद्रचूड़ ने इस बात पर प्रकाश डाला कि आर्थिक असमानता, घरेलू हिंसा और गरीबी के कारण बच्चे अक्सर अपराधी व्यवहार की ओर बढ़ने लगते हैं. बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, बिना किसी जरूरी मार्गदर्शन के, बच्चे नकारात्मक प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं.

10 दिनों तक दर्द झेलता रहा CJI चंद्रचूड़ आज भी नहीं भूले हैं स्कूल का वो दिन
नई दिल्ली. प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को स्कूल की सजा के एक दर्दनाक अनुभव को याद किया जिसने उनके दिल और आत्मा पर गहरी छाप छोड़ी. सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि बच्चों के साथ बहुत सावधानी से व्यवहार किया जाना चाहिए क्योंकि आप बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, यह उनकी याददाश्त पर जीवन भर असर छोड़ता है. सीजेआई चंद्रचूड़ ने नेपाल के सुप्रीम कोर्ट द्वारा आयोजित किशोर न्याय पर व्याख्यान देते हुए यह बात कही. किशोरों पर टिप्पणी करते हुए, सीजेआई ने अतीत के अपने अनुभव को याद किया जहां एक स्कूल की सजा ने उनके दिल और आत्मा पर छाप छोड़ी जो आज भी ताजा है. बार एंड बेंच ने सीजेआई के हवाले से बताया, “मैं स्कूल का वह दिन कभी नहीं भूलूंगा, मैं कोई किशोर अपराधी नहीं था, जब मेरे हाथों पर छड़ी चलाई गई थी और मेरा अपराध सिर्फ इतना था कि मैं क्लास में सही आकार की सुइयां लेकर नहीं आया था. मुझे अभी भी याद है कि मैं अपने शिक्षक से मुझ पर हाथों को छोड़कर शरीर के पीछे के हिस्से पर बेंत लगाने की विनती कर रहा था.” सीजेआई चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि उन्हें अपने माता-पिता को यह बताने में बहुत शर्म आ रही थी और वह अगले 10 दिनों तक उन निशानों के साथ उस दर्द को झेलते रहे जिन्हें वह हमेशा छिपाने की कोशिश करते थे. सीजेआई ने कहा, “उसने मेरे दिल और आत्मा पर एक छाप छोड़ी और जब मैं अपना काम करता हूं तो यह अब भी मेरे साथ है. बच्चों पर मजाक बनाने की छाप इतनी गहरी है.” सीजेआई चंद्रचूड़ ने इस बात पर प्रकाश डाला कि आर्थिक असमानता, घरेलू हिंसा और गरीबी के कारण बच्चे अक्सर अपराधी व्यवहार की ओर बढ़ने लगते हैं. बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, बिना किसी जरूरी मार्गदर्शन के, बच्चे नकारात्मक प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं. सीजेआई ने आगे एक और मामले का जिक्र किया जो भारत की शीर्ष अदालत में पहुंचा था, जिसमें एक 14 वर्षीय लड़की मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 के तहत अपनी गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति मांग रही थी. चंद्रचूड़ ने कहा, “नतीजों के डर से वह उस वक्त तक चुप रही जब तक कि वह गर्भवती नहीं हो गई, अदालत ने पीड़िता की मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उसकी टर्मिनेशन की याचिका को स्वीकार कर लिया.” Tags: DY Chandrachud, Nepal, Supreme CourtFIRST PUBLISHED : May 4, 2024, 16:42 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed