चित्रकूट के आदिवासियों के लिए सोने से कम नहीं है तेंदू पत्ता

चित्रकूट जिले सहित आस-पास के जनपदों में दूर-दूर तक रोजगार के संसाधन नही हैं. ऐसे में चित्रकूट मानिकपुर क्षेत्र के आदिवासी समाज के लोग अपना जीवन-यापन और बच्चों को पालने के लिए जंगलों पर ही निर्भर हैं.

चित्रकूट के आदिवासियों के लिए सोने से कम नहीं है तेंदू पत्ता
विकाश कुमार/ चित्रकूट : बुंदेलखंड का चित्रकूट पाठा क्षेत्र का सबसे पिछड़ा क्षेत्र माना जाता है. यहां आज तक लोगों को रोजगार के संसाधन उपलब्ध नहीं हो पाए. ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र के आदिवासी लोग गर्मी के सीजन में तेंदू के पत्ते को जंगलों से दिन-रात तोड़कर उनको बाजारों में बेचते हैं. इससे जो पैसा मिलता है उसी ये लोग जीवन यापन करते हैं. आपको बता दें कि चित्रकूट जिले सहित आस पास के अन्य जनपदों में भी रोजगार के लिए कोई सुविधा और संसाधन नहीं है. यहां न तो फैक्ट्री हैं और न ही कंपनियां. ऐसे में चित्रकूट और मानिकपुर क्षेत्र के आदिवासी समाज के लोग अपने जीवन यापन के लिए पूरी तरह से जंगलों पर ही निर्भर हैं और उसी से होने वाली आय से गुजारा करते हैं. महुआ और तेंदू पत्ता है सहारा ये लोग आमतौर पर सीजनी काम करते हैं. पहले ये जंगलों से महुआ बीनकर उसे बेचते हैं और फिर उसके बाद गर्मी के मौसम में ये तेंदू के पत्तों को बेचकर गुजारा करते हैं. 40 से 50 रूपए किलो बाजारों में बिकता है पत्ता मानिकपुर सरहट के रहने वाले लवलेश, सुखवरिया सहित अन्य लोगों ने बताया की उनके यहां चित्रकूट क्षेत्र में रोजगार की व्यवस्था नहीं है. ऐसे में उन लोगों के पास आय का यही एक जरिया है. उन्होंने बताया कि इस गर्मी में वो लोग तेंदू का पत्ता तोड़ने के लिए सुबह 4 बजे से जंगलों की तरफ निकल जाते हैं और पत्ते तोड़कर 10 बजे तक घर आ जाते हैं. बाद उसे सुखाकर पत्तों का बंडल बनाकर उसे वन निगम या बाजार में बेच देते हैं. ये पत्ता 40 से 50 रूपए किलो बिकता है. बाद में इसी से बीड़ी बनती है. परदेस से बहुत याद आता है घर उन्होंने बताया आगे बताया कि जब जंगल में कुछ नहीं होता तब ये लोग अन्य राज्यों में मजदूरी करने निकल जाते हैं. उन लोगों ने कहा कि उन्हें गर्मी के सीजन का बहुत बेसब्री से इंतजार रहता है क्योंकि यहां पर वो अपने घर पर रहते हुए भी जीवन यापन कर पाते हैं. Tags: Local18FIRST PUBLISHED : May 18, 2024, 19:46 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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