ब्राह्मण भारत के नए यहूदी हैं बेंगलुरु CEO को क्यों कहना पड़ा यह पोस्ट वायरल

Brahmin Genes: बेंगलुरु की एक महिला सीईओ ने ब्राह्मण जाति को लेकर सोशल मीडिया पर ऐसा पोस्ट लिखा, जो देखते ही देखते ट्रेंड करने लगा. उन्होंने लिखा कि हमें अपनी ब्राह्मण जाति होने पर गर्व करना चाहिए, हम कोई अत्याचारी नहीं हैं.

ब्राह्मण भारत के नए यहूदी हैं बेंगलुरु CEO को क्यों कहना पड़ा यह पोस्ट वायरल
बेंगलुरु. बेंगलुरु स्थित एंटरप्रेन्योर अनुराधा तिवारी ने सोशल मीडिया पर तब विवाद खड़ा कर दिया जब उन्होंने ट्राइसेप्स को मोड़ते हुए अपनी एक तस्वीर दो शब्दों – Brahmin genes – के साथ पोस्ट कर दी. पोस्ट के वायरल होने के बाद, Brahmin genes शब्द एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर ट्रेंड करने लगा. जहां कई लोग उनके समर्थन में सामने आए, वहीं अन्य ने उनसे जातिवाद को बढ़ावा देना बंद करने का आग्रह किया. अब, अपने लेटेस्ट सोशल मीडिया पोस्ट में, तिवारी ने लोगों से Brahmin genes के खिलाफ ‘नफरत को खत्म करने’ के लिए कहा है. तिवारी ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में लिखा, “क्या ब्राह्मण भारत के नए यहूदी हैं? ब्राह्मणों को अत्याचारी या उपद्रवी के रूप में दिखाने का खतरनाक ढंग से सामान्यीकरण किया जा रहा है. हम गर्व से नहीं कह सकते कि हम कौन हैं,” उन्होंने आगे कहा, “इस एजेंडे को फैलाने वालों को मेरा संदेश: मैं अनुराधा तिवारी हूं, एक गौरवान्वित ब्राह्मण हूं, अत्याचारी नहीं. अब इस नफरत को ख़त्म करो #BrahminGenes” Are Brahmins the new Jews of India? False portrayal of Brahmins as oppressors is being dangerously normalized. We can’t proudly say who we are. My message to those spreading this agenda: I am Anuradha Tiwari, a #ProudBrahmin & not an oppressor. End this hatred now… pic.twitter.com/m5idHOLNn1 — Anuradha Tiwari (@talk2anuradha) August 26, 2024

इससे पहले उन्होंने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट शेयर कर पूछा था, ‘पिछले 24 घंटों में हजारों लोगों ने गर्व से अपनी ब्राह्मण पहचान घोषित की है, #BrahminGenes ट्रेंड कर रहा है. लेकिन कितने राजनेताओं ने इसे साझा किया? जब ब्राह्मणों के लिए खड़े होने का समय आता है, तो वे गायब हो जाते हैं. क्या ब्राह्मण से जानबूझकर नफरत की जाती है? क्या तुच्छ राजनीति के लिए ब्राह्मणों को बलि का बकरा बनाया जा रहा है?”

उन्होंने “ब्राह्मण जीन” पोस्ट पर भी अपना रुख दोहराते हुए कहा, “जैसा कि उम्मीद थी, ‘ब्राह्मण’ शब्द के मात्र उल्लेख से कई हीन प्राणी पैदा हो गए. इससे पता चलता है कि असली जातिवादी कौन हैं. अपर कास्ट को सिस्टम से कुछ भी नहीं मिलता – कोई आरक्षण नहीं, कोई मुफ्त उपहार नहीं. हम सब कुछ अपने दम पर कमाते हैं और हमें अपने वंश पर गर्व करने का पूरा अधिकार है. तो, इससे डील करें.”

लेखक चेतन भगत ने भी सुझाव दिया कि जाति के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना राजनीति से प्रेरित हो सकता है. उन्होंने कहा, “जितना अधिक जाति का मुद्दा उठाया जाता है, उतना ही अधिक समेकित हिंदू वोट टूटता है. विपक्ष इस बात को समझ गया है और वह खेल खेल रहा है. और हां, #BrahminGenes का ट्रेंड भी हिंदू वोटों को बांट रहा है. पता नहीं लोगों को इसका एहसास है या नहीं.”

अनुराधा तिवारी ने भगत की पोस्ट का हवाला देते हुए लिखा, “क्या ब्राह्मणों के खिलाफ नफरत हिंदुओं को एकजुट कर रही है? क्या आरक्षण हिंदुओं को एकजुट कर रहा है? क्या जाति जनगणना हिंदुओं को एकजुट कर रही है? लेकिन जब ब्राह्मण अपने लिए स्टैंड लेने का फैसला करते हैं, तो अचानक हिंदू एकता खतरे में पड़ जाती है.”

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