इस विधि से करें सहफसली खेती बंपर उत्पादन के साथ होगी तगड़ी कमाई

किसान जवाहर यादव ने बताया कि करेला और लौकी की खेती कई सालों से करते आ रहे थे. दो वर्ष पूर्व सहफसली खेती शुरू की. जिसमें करेला, लौकी, भिंडी सहित अन्य सब्जी को लगाया. इसकी खेती मचान विधि से करने पर एक बीघे में 8 से 10 हजार रूपए तक खर्च आया. वहीं मुनाफे की बात करें तो एक फसल पर ढाई से तीन लाख रुपये तक हो जाता है.

इस विधि से करें सहफसली खेती बंपर उत्पादन के साथ होगी तगड़ी कमाई
बाराबंकी. आज के समय में किसान उन फसलों की खेती करना ज्यादा पसंद करते हैं, जिसमें कम लागत में मुनाफा अधिक होता है. इस लिहाज से सब्जी की खेती किसानों के लिए बेहतर साबित हो रहा है. सब्जी की खेती उन नगदी फसल की श्रेणी में आता है, जिससे रोजाना मुनाफा कमाया जा सकता है. सब्जी की खेती करने के दौरान कुछ चीजों का ध्यान भी रखना पड़ता है. खास कर बारिश के मौसम में अधिक ध्यान देने की जरूरत होती है. यदि किसी कारणवश एक फसल खराब भी हो जाए तो उसके नुकसान की भरपाई दूसरे फसल से हो सकती है. इसके लिए सहफसली खेती करना जरूरी है. सहफसली खेती किसानों के लिए है फायदेमंद  बाराबंकी जिले के शरीफबाबाद गांव के रहने वाले किसान जवाहर यादव करेला और लौकी की खेती कई सालों से करते आ रहे थे. इससे लाखों का मुनाफा भी कमा रहे थे. दो वर्ष पूर्व सहफसली की खेती शुरू की, जिसमें करेला, लौकी, भिंडी सहित अन्य सब्जी को लगाया. सहफसली खेती करने पर एक एकड़ से  करीब ढाई से तीन लाख का मुनाफा सिर्फ एक फसल से हुआ. उन्होंने बताया कि सहफसली खेती में ज्यादातर बैंगन, मिर्च, करेला, लौकी, भिंडी आदि फसल लगाते हैं. इस समय करीब दो बीघे में लौकी, दो बीघे में करेला लगा हुआ है. इसकी खेती करने पर एक बीघे में 8 से 10 हजार रूपए तक खर्च आता है. वहीं मुनाफे की बात करें तो एक फसल पर ढाई से तीन लाख रुपये तक हो जाता है. मचान विधि से करते हैं सब्जी की खेती किसान जवाहर यादव ने बताया कि सब्जियों की खेती मचान विधि से करते हैं. इससे बरसात के दौरान फसलों में रोग लगने का खतरा कम रहता है और पैदावार भी बंपर होता है. सब्जी की खेती करना बेहद आसान है. इसके लिए पहले खेत की जुताई की जाती है और उसके बाद खेत समतल कर दो से तीन फीट की दूरी पर करेला और लौकी की बीज की बुवाई की जाती है. जब पौधा थोड़ा बड़ा हो जाता है तब इसकी सिंचाई करते हैं. इसके बाद पूरे खेत में बांस, तार और रस्सी का स्टेचर तैयार करते हैं. स्टेचर पर पौधे को चढ़ा दिया जाता है. इससे केरला और लौकी की पैदावार अच्छी होती है और रोग लगने का खतरा भी कम रहता है. वही पौधा लगाने के महज डेढ़ से दो महीने में फलन शुरू हो जाता है. इसकी तुड़ाई कर बाजार में बिक्री कर देते हैं. Tags: Agriculture, Barabanki News, Local18, UP newsFIRST PUBLISHED : August 27, 2024, 20:06 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed