19 अगस्त 1942 को आजाद हुआ था UP का ये जिला बनाई गई थी समानांतर सरकार

डॉ. शिवकुमार सिंह बताया कि 9 अगस्त को मुंबई अधिवेशन में करो या मरो के शंखनाद के बाद पूरे देश में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया था, लेकिन बलिया में इसका विशेष प्रभाव देखा गया.19 अगस्त को वह दिन भी आ गया जब बागी धरती के सपूतों के सामने ब्रिटिश हुकूमत को घुटने टेकने पड़े.

19 अगस्त 1942 को आजाद हुआ था UP का ये जिला बनाई गई थी समानांतर सरकार
बलिया: 1942 के अंग्रेजों भारत छोड़ों आंदोलन के इतिहास में उत्तरप्रदेश के जिला बलिया का नाम बहुत सम्मान से लिया जाता है. इतिहासकारों के अनुसार 19 अगस्त 1942 को बागी बलिया के सपूतों ने न सिर्फ ब्रिटिश सरकार को उखाड दिया बल्कि बलिया को स्वतंत्र घोषित कर यहां एक समानांतर सरकार भी बनाई, जिसका नाम रखा गया स्वतंत्र बलिया प्रजातंत्र. हालांकि यह सरकार ज्यादा दिन नहीं चल सकी और ब्रिटिश सरकार ने सितंबर 1942 में दोबारा यहां कब्जा कर लिया. अगस्त का महीना था और बलिया के सभी कांग्रेसी नेता जेल में बन्द थे. 10 अगस्त को उमाशंकर सोनार और सूरज प्रसाद लाल ने बलिया शहर में जुलुस निकाल कर आजादी का बिगुल बजाया, जिसके बाद पूरे जिले भर में जनता ने तहसील, सरकारी कार्यालय और थानों पर कब्जा कर स्वराज की सरकार बनाने का अभियान भी शुरू कर दिया. उखाड़ दी गई रेल लाइन प्रख्यात इतिहासकार डॉ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने लोकल 18 को बताया कि आजादी के लिए प्राणों की चिंता को भी भूल जाने वाली यह जनता ने सबसे पहले रेलवे-स्टेशन, डाकघर, बीजगोदाम, टाऊन एरिया और थानों पर कब्जा कर लिया. यहां तक कि रेल लाइन उखाड़ कर बलिया से दूसरे जिलों का सम्पर्क काट दिया गया. ऐसे ही सड़कों को जगह- जगह काटकर रास्ते बंद कर दिए गए. 16 अगस्त को मची भगदड़ डॉ. शिवकुमार सिंह बताया कि 16 अगस्त के दिन बलिया शहर में वीरों ने गुदरीबाजार लोहापट्टी में बाजार बंद कराने आए तहसीलदार रामलगन सिंह को खोरीपाकड़ गांव के युवा सेनानी दुःखी कोइरी ने उठाकर पटक दिया, उसके बाद भगदड़ मच गई. जनता और पुलिस के बीच हुई इस सीधी लड़ाई में दुःखी कोइरी, शिवप्रसाद कोइरी, सूरज मिश्र, ढेला दुसाध, राम सुभग चमार, गनपति पाण्डेय, शिवमंगल राम, रघुनाथ अहीर और मोहित लाल ने अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था. 17 अगस्त को रसड़ा तहसील पर कब्जा डॉ. शिवकुमार सिंह बताया कि 17 अगस्त को रसड़ा तहसील पर कब्जा करने के क्रम में पुलिस ने बलिया के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को धोखा दिया. जिसके कारण श्रीकृष्ण मिश्र, विश्वनाथ प्रसाद, बिशु राम, हरि राम और गनपति नोनियां के प्राण चले गए. ठीक दूसरे दिन यानी 18 अगस्त को बैरिया थाने पर आंदोलन में कौशल कुमार सिंह, देवबसन कोइरी , भीम अहीर, मैनेजर सिंह, रामप्रसाद उपाध्याय, रामवृक्ष राय, राम नगीना सोनार, शिवराम तिवारी, निर्भयकृष्ण राय, मुक्तिनाथ तिवारी और विद्यापति गोंड सहित 50 लोगों ने बलिदान दे दिया. 50 हजार लोगों ने घेरा जेल डॉ. शिवकुमार सिंह बताया कि 9 अगस्त को मुंबई अधिवेशन में करो या मरो के शंखनाद के बाद पूरे देश में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया था, लेकिन बलिया में इसका विशेष प्रभाव देखा गया.19 अगस्त को वह दिन भी आ गया जब बागी धरती के सपूतों के सामने ब्रिटिश हुकूमत को घुटने टेकने पड़े. समय था शाम 5 बजे का और स्थान जिला कारागार. जेल के बाहर करीब 50 हजार की संख्या में लोग हाथ में हल, मूसल, कुदाल, फावड़ा, हसुआ, गुलेल, मेटा में सांप व बिच्छू भरकर अपने नेता चित्तू पांडेय व उनके साथियों की रिहाई की मांग कर रहे थे. 19 अगस्त को बनी समानांतर सरकार डॉ. शिवकुमार सिंह बताया कि लोगों का हुजूम देखकर तत्कालीन जिलाधिकारी जगदीश्वर निगम व एसपी रियाजुद्दीन को मौका पर आना पड़ा और दोनों अधिकारियों ने जेल के अंदर जाकर आंदोलनकारियों से बात की. इसके बाद चित्तू पांडेय संग राधामोहन, विश्वनाथ चौबे को तत्काल जेल से रिहा किया गया. चित्तू पांडेय के नेतृत्व में लोगों ने कलेक्ट्रेट सहित सभी सरकारी कार्यालयों पर तिरंगा झंडा फहराया गया और 19 अगस्त 1942 की शाम करीब 6 बजे बलिया को आजाद राष्ट्र घोषित करते हुए देश में सबसे पहले ब्रिटिश सरकार के समानांतर स्वतंत्र बलिया प्रजातंत्र की सरकार का गठन हुआ. चित्तू पांडेय को शासनाध्यक्ष नियुक्त किया गया. 84 लोग हुए शहीद डॉ. शिवकुमार सिंह बताया कि चित्तू पांडेय ने 22 अगस्त 1942 तक यहां सरकार भी चलाई, लेकिन 22 अगस्त की रात ब्रिटिश सरकार ने वाराणसी के कमिश्नर नेदर सोल को बलिया का प्रभारी जिलाधिकारी बनाकर भेज दिया. नेदर सोल अपने साथ बलूच फौज लेकर 22 की रात ही बलिया पहुंचकर अंधाधुंध गोलियां चलवाते हुए एक-एक कर थाना, तहसील व सरकारी कार्यालयों पर कब्जा करने लगा. स्थिति को काबू में करने के लिए इलाहाबाद से लेफ्टिनेंट मार्स स्मिथ भी आंदोलनकारियों पर सख्ती के लिए 23 अगस्त को बलिया पहुंच गए. इस दौरान कुल 84 लोग शहीद हो गए. वहीं चित्तू पांडेय को जेल में डाल दिया. इस प्रकार ब्रिटिश सरकार ने फिर से बलिया को अपने कब्जा में ले लिया. Tags: Ballia news, Local18, Uttar Pradesh News HindiFIRST PUBLISHED : August 19, 2024, 14:37 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed