बागपत के वो गांव जहां गंदे पानी से किसी को हो रहा कैंसर तो किसी को लकवा
बागपत के वो गांव जहां गंदे पानी से किसी को हो रहा कैंसर तो किसी को लकवा
Baghpat: बागपत के कई गांव में हिंडन नदी के खराब पानी की वजह से हालात बिगड़े हुए हैं. लोगों के पास पीने का साफ पानी तक नहीं है. इसी वजह से गांव के लोग कैंसर और खराब किडनी जैसी बीमारियों से जूझ रहे हैं.
आशिष त्यागी/बागपत: पानी कितना जरूरी है? इतना की 1 दिन न आए तो घर में 100 दिक्कतें हो जाती हैं. आप सोच रहे होंगे कि पानी का मुद्दा कहां से आ गया. तो ये आया है बागपत (Baghpat) से. इस जिले के करीब 150 गांव गंदे-सड़े पानी को पी रहे हैं. लोग ऐसा शौक से नहीं कर रहे. उनकी मजबूरी है. गंदा पानी पीने से मना भी नहीं कर सकते, क्योंकि जिंदा भी तो रहना है. इस मजबूरी के पीछे का कारण है हिंडन नदी. इस नदी में फैक्ट्रीयों और सीवेज का वेस्ट मिलकर घर-घर तक पहुंच रहा है.
पानी के लिए तरस रहे सर्फाबाद के लोग
बागपत के जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर है सर्फाबाद गांव. हिंडन नदी (Hindon River) के किनारे पर यह गांव बसा है. यहां के लोग घर, नौकरी, पढ़ाई नहीं पानी के लिए तरस रहे हैं. पूरा गांव गंदे पानी की चपेट में है. लोगों को बीमारियां हो रही हैं, फसल खराब हो रही हैं और पक्षी मर रहे हैं. यह मामला नया नहीं है. पानी की परेशानी सालों से चली आ रही है. तभी तो सर्फाबाद (Sarfabad) गांव के 70% लोग पथरी और 50% लोग पेट व लीवर से जुड़ी बीमारीयों से जूझ रहे हैं.
पूरे गांव में नहीं है एक भी तालाब
सर्फाबाद गांव में एक भी तालाब नहीं है. इसी वजह से गांव वाले हिंडन नदी के गंदे पानी से काम चला रहे हैं. आसपास की फैक्ट्रीयों का सारा गंद इस नदी में जाता है. बची हुई कसर पूरी करती हैं पॉलीथीन, कूड़ा-करकट और सीवेज का वेस्ट. पूरे गांव में पानी निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है. अब तो नलों से भी गंदा और काले रंग का पानी आने लगा है.
150 गांव झेल रहे हैं परेशानी
यूपी के सहारनपुर, शामली, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत और गाजियाबाद के लगभग 150 गांव हिंडन नदी के गंदे पानी की परेशानी झेल रहे हैं. गंगौली जैसे गांव में खराब पानी की वजह से लोगों को कैंसर और लकवे की बीमारी हो रही है.
लोगों ने खुद बताई अपनी परेशानी
1. लोगों ने बताया कि बढ़ती गंदगी से पशु-पक्षियों में भी बीमारी फैल रही है. मजबूरी में पशुओं को बेचना पड़ रहा है. दूध लेने आसपास के गांव में जा रहे हैं. वहीं, कुछ लोगों के पास आज भी पशुओं को बेहाल हिंडन नदी में नहाने के बिना कोई ऑप्शन नहीं है.
2. 20 साल पहले तक इस नदी का पानी बहुत साफ होता था. लोग इसमें नहाया करते थे. सिंचाई के लिए भी यही पानी काम आता था. लेकिन धीरे-धीरे गंदगी इतनी फैली गई है कि कोई अपनी लड़की को यहां बयाना भी नहीं चाहता. 100 में से 30 युवाओं की ही शादी हो पा रही है. जैसे ही इस गांव का जिक्र आता है तो रिश्ते वाले दूरी बना लेते हैं.
3. बरसात के मौसम में इस नदी का पानी किसानों की फसलों और गांव में घुस जाता है. लोगों को पलायन करना पड़ता है. गांव का हर इंसान बढ़ रही गंदगी से परेशान है और जल स्तर बढ़ने पर खराब फसल का नुकसान झेलता है.
4. ग्राम प्रधान कोमल के ससुर धर्मपाल ने बताया कि चुनाव के समय में भी गंदगी का मुद्दा काफी हावी रहा था. चुनाव लड़ते वक्त ग्रामीणों से वादा किया था कि वह इस गंदगी को साफ किया जाएगा. लेकिन अधिकारियों के मदद न करने की समस्या का कोई हल नहीं निकल पा रहा है.
5. इसके अलावा लोगों की सेहत पर भी बहुत खराब असर पड़ रहा है. डिहाइड्रेशन के लिए इस्तेमाल होने वाला पानी लोगों की जान के लिए आफत बन गया है.
किसने बनाया हिंडन नदी को नाला?
भारतीय नदी परिषद के अध्यक्ष रमन कांत ने इस मुद्दे पर बात की. उन्होंने बताया कि हिंडन नदी का उदगम शिवालिक से होता है. झरने से यह नदी आती है. लेकिन जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, पानी गंदा होता जाता है. सहारनपुर में इस नदी में स्टार पेपर मिल का सारा ड्रेन मिल जाता है. ढमोला नदी से पूरे सहारनपुर का सीवेज नदी में आ जाता है. मुजफ्फरनगर का सीवेज भी इसी नदी में मिल रहा है. कृष्णा नदी पर बने चेक डैम से भी हिंडन बुरी तरह प्रभावित हो रही है. चेक डैम पानी रिचार्ज के लिए तैयार होते हैं, जो गंदे पानी में काम नहीं कर पाते. सहारनपुर से लेकर गौतम बुद्ध तक, 800 गांव इसके किनारे हैं और नदी 355 किलोमीटर लंबी है.
एनजीटी के एक्शन के बाद भी…
लगभग 20 सालों से इन गावों के लोग परेशानियों को झेल रहे हैं. दोआबा पर्यावरण समिति ने एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) में केस भी दायर किया था. 2019 में एनजीटी ने उत्तर प्रदेश सरकार को इन गांवों में स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने और मुफ्त इलाज की सलाह दी थी. 124 फैक्ट्रियां बंद करने का भी आदेश दिया था. लोगों की मदद करने के लिए प्लान भी तैयार किए और पानी की सप्लाई की योजना बनाई गई. पर उसके बाद क्या? प्लान बनाने के बाद कितनी एक्शन लिया गया, यह हालात खुद बयां कर रहे हैं. इस मामले में यूपी सरकार को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को 5 करोड़ रुपये देने का भी आदेश दिया जा चुका है.
जमीनी हकीकत पर कब दिखेगा असर?
रमन कांत की जानकारी के मुताबिक 2006 पर हिंडन नदी पर पूरी स्टडी हुई थी. इस हिसाब से मामला 20 साल पुराना है. लेकिन इसके बाद भी लोगों के लिए कोई हल नहीं खोजा गया है. खराब पानी की वजह से हिंडन के किनारे बसे गांव उजड़ रहे हैं. सीवेज ट्रीट प्लांट और पानी की टंकी जैसी सुविधाओं पर काम किया जा रहा है, लेकिन यह सुविधाएं सर्फाबाद जैसे गांव के लोगों की मदद नहीं कर पा रही है. हिंडन रिवर काउंसिल भी बनाया गया है. पर लोगों के पास फिलहाल मजबूरी में जीवन गुजारने के अलावा कोई और ऑप्शन नहीं बचा है.
FIRST PUBLISHED : May 21, 2024, 15:30 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed