लालू यादव ने निपटा दिया या कांग्रेस खुद ही कन्हैया कुमार को बैकफुट पर ले गई

Bihar Politics: वर्तमान राजनीति के तहत कांग्रेस अभी बिहार में बैकफुट पर है. इस बार भी आरजेडी से जो उसकी डील हुई उसमें लालू यादव ने कांग्रेस के लिए स्पेस नहीं दिया गया. कांग्रेस तो चाह रही थी कि बेगूसराय की सीट से कन्हैया कुमार को लड़वाया जाये, लेकिन बिहार में चूंकि आरजेडी ड्राइविंग सीट पर है और ऐसे में कांग्रेस-आरजेडी के बीच अंडरस्टैंडिंग बनी थी कि.... पूरा विश्लेषण आगे पढ़िये.

लालू यादव ने निपटा दिया या कांग्रेस खुद ही कन्हैया कुमार को बैकफुट पर ले गई
पटना. लोकसभा चुनाव 2024 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली से भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी मनोज तिवारी के सामने बड़े अंतर से हारने वाले कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार कन्हैया कुमार के सामने अब भविष्य की राजनीति को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं. राजनीति के जानकारों की नजर में बेगूसराय छोड़ नई दिल्ली से सांसदी का चुनाव लड़ने का उनका फैसला चौंकाने वाला था. अब सवाल यह है कि वाम राजनीति को छोड़ कांग्रेस में अपनी जमीन तैयार करते कन्हैया कुमार आखिर किस राजनीति के शिकार हुए हैं. क्या उन्हें लालू यादव ने बिहार की राजनीति से निपटा दिया और तेजस्वी यादव का रास्ता साफ कर दिया. या फिर कांग्रेस खुद ही उसके करियर को खा गई? क्या कन्हैया बिहार पॉलिटिक्स में कम बैक कर सकते हैं, आइये जानते हैं क्या कहते हैं राजनीति के जानकार? राजनीति के जानकार बताते हैं कि दरअसल, पिछली बार वर्ष 2029 लोकसभा चुनाव में कन्हैया कुमार जब बेगूसराय से सीपीआई के उम्मीदवार बने थे तभी लालू यादव और तेजस्वी यादव को रास नहीं आये और बेगूसराय से राजद के टिकट पर तनवीर हसन को उम्मीदवार बना दिये थे. बिहार की राजनीति पर गहरी पकड़ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय साफ तौर पर बताते हैं कि लालू यादव और तेजस्वी यादव, कन्हैया कुमार को पसंद नहीं करते हैं, और इसके पीछे का कारण भी बड़ा स्पष्ट है. दरअसल कन्हैया कुमार तेज तर्रार और उभरते हुए नेता हैं जो आने वाले समय में सीधे तौर पर तेजस्वी यादव के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकते हैं. आरजेडी ने ड्राइविंग सीट पर होने का उठाया फायदा रवि उपाध्याय कहते हैं कि वर्तमान राजनीति के तहत कांग्रेस अभी बिहार में बैकफुट पर है. इस बार भी आरजेडी से जो उसकी डील हुई उसमें लालू यादव ने कांग्रेस के लिए स्पेस नहीं दिया गया. कांग्रेस तो चाह रही थी कि बेगूसराय की सीट से कन्हैया कुमार को लड़वाया जाये, लेकिन बिहार में चूंकि आरजेडी ड्राइविंग सीट पर है और ऐसे में कांग्रेस-आरजेडी के बीच अंडरस्टैंडिंग बनी थी कि ड्राइविंग सीट पर होने के कारण आरजेडी ही फैसला करे. जाहिर तौर पर आरजेडी अपने ‘युवराज’ तेजस्वी यादव के लिए किसी भी तरह के समझौते के मूड में नहीं है. लालू यादव वह तमाम दांव-पेंच चल रहे हैं जो आने वाले समय में तेजस्वी यादव की आगे की राजनीति को सुगम बनाने के लिहाज से महत्वपूर्ण साबित हो. कन्हैया कुमार से ‘खौफजदा’ हैं लालू यादव और तेजस्वी! वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि लालू यादव या तेजस्वी यादव किस कदर कन्हैया कुमार को लेकर खौफजदा हैं इसका सबसे दिलचस्प उदाहरण बेगूसराय सीट पर उम्मीदवारी की घोषणा रही. दरअसल, लालू यादव ने बिहार में ड्राइविंग सीट पर होने का फायदा उठाया और दांव चल दिया. उनका यह दांव तेजस्वी यादव के लिए रहा जिसे शायद तुरंत कांग्रेस या तो समझ नहीं पाई या फिर अपने कद के अनुसार, वह समझकर भी चुप बैठी रही. बता दें कि 2024 के लोकसभा चुनाव में कन्हैया कुमार के लिए कांग्रेस बेगूसराय सीट मांग रही थी, लेकिन सीट शेयरिंग से पहले ही सीपीआई ने बेगूसराय से अवधेश राय को अपना उम्मीदवार बना दिया. ऐसे में कन्हैया कुमार के लिए कोई विकल्प ही नहीं बचा कि वह बिहार की राजनीति में अपना जलवा दिखा पाएं. कन्हैया कुमार के लिए दिल्ली से बेहतर होता बिहार दूसरी ओर जब बिहार में कन्हैया कुमार के लिए कांग्रेस का कोई रास्ता नहीं दिखा तो उत्तर पूर्व दिल्ली में कन्हैया को एक बिहारी के सामने ही फ्रंट पर ला दिया. प्रचार के दौरान कन्हैया कुमार का जलवा भी दिखा, लेकिन जब चुनाव परिणाम आये तो यह कांग्रेस के लिए करारा झटका था. रवि उपाध्याय कहते हैं, पूर्वांचलियों के वोटों की उम्मीद में कन्हैया फ्रंट पर आये तो सही, लेकिन बीजेपी के प्रत्याशी मनोज तिवारी से 138778 वोटों के अंतर से उन्हें करारी हार झेलनी पड़ी. खास बात यह कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के साथ आने के बाद ये चुनाव परिणाम रहा. इतना ही नहीं अगर बसपा के 12138 वोट और शेष 26 अन्य उम्मीदवारों के पूरे मत मिला दिये जाएं तो भी मनोज तिवारी एक लाख से अधिक वोट से जीत प्राप्त करते. यानी साफ है कि कन्हैया का परफॉर्मेंस दिल्ली की तुलना में उनके गृह क्षेत्र बेगूसराय में अधिक अच्छा हो सकता था. लालू यादव का दांव और झटके में किनारे हो गए कन्हैया अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि पिछली बार भी जब कन्हैया कुमार ने बेगूसराय से लोकसभा चुनाव सीपीआई के टिकट पर लड़ा था तो राजद ने वहां से अपना उम्मीदवार उतार दिया था. खास बात यह था कि उम्मीदवार अल्पसंख्यक समुदाय के तनवीर हसन प्रत्याशी बनाए गए थे. खास बात यह कि तनवीर हसन को यादवों और मुसलमानों के अधिकतम वोट मिले थे बावजूद इसके कन्हैया कुमार ने ढाई लाख से अधिक मत लाकर क्षेत्र में अपनी पकड़ दिखा दी थी. वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहतेहैं कि अगर राजद के प्रत्याशी का मत भी मिल जाता तो गिरिराज सिंह से उनकी हार का अंतर बहुत ही कम रह जाता. इस बार तो समीकरण भी बदले हुए थे और ऐसे में कन्हैया कुमार की जीत की संभावना भी हो सकती थी. लेकिन, लालू यादव के दांव से कन्हैया कुमार झटके में किनारे कर दिये गए. कांग्रेस कुमार खींच सकते हैं राजनीति की बड़ी लकीर हालांकि, रवि उपाध्याय कहते हैं कि बिहार में तेजस्वी यादव के होने के बाद भी कांग्रेस कन्हैया कुमार को अपनी योजना पर आगे बढ़ रही है. रवि उपाध्याय इसके पीछे जो कारण बता रहे हैं वह भी काफी दिलचस्प है. कांग्रेस पार्टी में कन्हैया कुमार का राजनीतिक कद कैसे बढ़ता गया है, यह इस बात से ही स्पष्ट है कि कांग्रेस ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में पूरे तौर पर साथ रहे. इस दौरान वह कांग्रेस के मजबूत पिलर के रूप में सामने आए हैं. कांग्रेस उनपर ट्रस्ट कर रही है तभी उनको यूथ कांग्रेस का इंचार्ज बनाया है. आने वाले समय में भी कन्हैया कुमार कांग्रेस की कोर टीम में ही रहने वाले हैं क्योंकि राहुल गांधी उनपर पूर्ण विश्वास करते हैं. 2025 के विधानसभा चुनाव होगा तो कांग्रेस के स्टार प्रचारकों की सूची में होंगे और उनकी भूमिका भी अहम होगी यह भी तय है. ऐसे भी तेजस्वी के साथ या फिर उनके सामने तेज तर्रार कन्हैया कुमार आ जाएंगे तो निश्चित तौर पर अपनी बड़ी लकीर खींच सकते हैं. Tags: Bihar politics, Kanhaiya kumar, Lalu Prasad Yadav, Rahul gandhi, RJD leader Tejaswi YadavFIRST PUBLISHED : June 12, 2024, 14:30 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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