और कितना कम होगी कांग्रेस लालू के झटके से फ्रंट फुट पर आने को बेताब कांग्रेसी

Bihar Politics News: लालू यादव की बैशाखी के सहारे चल रही बिहार कांग्रेस भी अब फिर डर रही है और उसको अपनी हैसियत के कम होने का खतरा दोबारा दिखने लगा है. शायद यही कारण है कि निर्दलीय (कांग्रेस के अघोषित) सांसद पप्पू यादव और कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश सिंह ने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिये हैं और कांग्रेस के लिए सियासी बैटिंग शुरू कर दी है. कांग्रेस के फ्रंट फुट से बैक फुट पर जाने की पूरी कहानी पढ़िये.

और कितना कम होगी कांग्रेस लालू के झटके से फ्रंट फुट पर आने को बेताब कांग्रेसी
हाइलाइट्स बिहार में आरजेडी का प्रेशर और सियासी बैटिंग में जुट गए कांग्रेसी नेता. बिहार विधानसभा चुनाव में सीट शेयरिंग पर उठाया हिस्सेदारी का सवाल. लालू यादव के बयान के बाद बिहार कांग्रेस के तेवर के सियासी मायने क्या? पटना. बिहार महागठबंधन की सहयोगी कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि वो आगामी 2025 का चुनाव 2020 से कम सीटों पर नहीं लड़ेगी. अब सवाल उठ रहा है कि कांग्रेस ऐसा अभी से ही क्यों कहने लगी है. जानकार कहते हैं कि कांग्रेस को यह अहसास हो गया है कि आरजेडी अब अधिक भागीदारी के साथ चुनाव लड़ना चाहती है और कांग्रेस को कम सीटें दिये जाने की संभावना है, ऐसे में कांग्रेस ने अभी से बैटिंग करनी शुरू कर दी है. इस क्रम में पूर्णिया सांसद पप्पू यादव और कांग्रेस के अध्यक्ष अखिलेश सिंह के बयान गौर करने लायक हैं. पप्पू यादव जहां कह रहे हैं कि कांग्रेस को महागठबंधन को लीड करना चाहिये वहीं, अखिलेश सिंह का कहना है कि 2020 से कम सीटों पर लड़ना कांग्रेस को मंजूर नहीं. बता दें कि पिछली बार कांग्रेस 70 सीटों पर लड़ी थी. लेकिन, सवाल यह है कि कांग्रेस ऐसे बयान देने के लिए क्यों आगे आ रही है? आइये पहले इन दोनों नेताओं के बयानों को विस्तार से जाने कि इन्होंने आखिर क्या कहा है. पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव ने कहा है कि यह तय है कि बिहार में विधानसभा चुनाव गठबंधन के तहत ही होगा, लेकिन कांग्रेस को बड़े भाई की भूमिका निभानी चाहिए. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री कोई हो यह दिल्ली में बैठकर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी तय करेंगे, पर बिहार में कांग्रेस को बड़ी भूमिका निभानी चाहिए. उन्होंने नाम लिए बगैर तेजस्वी यादव पर कटाक्ष करते हुए कहा कि कुछ लोगों की जिद के चलते हम लोग पिछड़ जाते हैं. जाहिर तौर पर पप्पू यादव का यह बयान आरजेडी और तेजस्वी यादव के लिए सीधे तौर पर आया है. वहीं, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश सिंह ने कहा कि बिहार में कांग्रेस 2020 के विधानसभा चुनाव से कम सीटों पर 2025 में नहीं लड़ेगी. बता दें कि इससे पहले बिहार कांग्रेस के प्रभारी शाहनवाज आलम भी कह चुके हैं कि बिहार में ना कोई बड़ा भाई है और ना कोई छोटा भाई, सीट बंटवारा लोकसभा में जीत के स्ट्राइक रेट के मुताबिक होगा. जाहिर तौर पर कांग्रेस ने अभी से अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिये हैं और हिस्सेदारी को लेकर मुखर है. लेकिन, ऐसा क्यों हो रहा है कि लालू यादव के सामने सरेंडर नहीं संघर्ष के रास्ते पर कांग्रेस चलने के लिए तैयार हो रही है. कांग्रेस के उभार से आरजेडी को डर! दरअसल, बीते दिनों के कुछ घटनाक्रमों पर नजर डालें तो कांग्रेस को शायद अहसास हो गया है कि आरजेडी बिहार में कांग्रेस को उभरने नहीं देना चाहती है. कमजोर पिच पर खड़ी कांग्रेस जरूर है, लेकिन उसको अपने जनाधार में बढ़ोतरी का अनुभव हो रहा है. अब वह लोकसभा चुनाव में स्ट्राइक रेट की बात कर रही है, अपरोक्ष रूप (पप्पू यादव की मांग) से महागठबंधन का नेतृत्व मांग रही है. साथ ही 70 से कम विधानसभा सीटों पर लड़ने से इनकार कर रही है. लेकिन हकीकत यह भी है कि महागठबंधन में तीन वामदलों के साथ आरजेडी, कांग्रेस और वीआईपी में हिस्सेदारी को लेकर सवाल उलझने के पूरे-पूरे आसार दिख रहे हैं. लेकिन, तथ्यात्मक पहलू यह भी है कि आरजेडी कांग्रेस के उभार से डरती भी है. कांग्रेस कमर कस ले तो कमाल हो! राजनीति के जानकार कहते हैं कि पूर्णिया लोकसभा सीट पर जिस तरह आरजेडी ने जिद ठान ली और पप्पू यादव को टिकट नहीं दिया, इससे यह बात साबित होती दिखी कि पप्पू यादव के कद के कारण आरजेडी में कुछ तो असहजता है. इसका परिणाम भी बड़ा दिलचस्प रहा क्योंकि यहां राजद की कैंडिडेट बीमा भारती कभी फाइट में ही नहीं आ सकीं और परंपरागत मुस्लिम वोट भी आरजेडी से शिफ्ट होकर पप्पू यादव के पाले में चले गए. हाल के दिनों में देखेंगे तो पप्पू यादव का कद कांग्रेस की ओर से बढ़ाने की कवायद भी दिख जाएगी. झारखंड में जिस तरह से पप्पू यादव ने चुनाव प्रचार किया, और जो चुनाव परिणाम आए इससे पप्पू यादव का कद और बढ़ गया. जाहिर है कि पप्पू यादव को संट करने की कवायद में लगी आरजेडी को कांग्रेस में पप्पू यादव का बढ़ा कद झटका ही कहा जा सकता है. कांग्रेस की लीडरशिप से आरजेडी को खतरा! वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि बीते दिनों जिस तरह बेगूसराय संसदीय सीट को लेकर लालू यादव का दांव रहा वह भी कांग्रेस के जेहन में जिंदा है. तेजस्वी यादव की राजनीति को सुगम बनाने के राहुल गांधी के कन्हैया कुमार को किनारे कर दिया गया था. बता दें कि कन्हैया कुमार के लिए कांग्रेस बेगूसराय सीट मांग रही थी, लेकिन सीट शेयरिंग से पहले ही सीपीआई ने बेगूसराय से अवधेश राय को अपना उम्मीदवार बना दिया. ऐसे में कन्हैया कुमार के लिए कोई विकल्प ही नहीं बचा कि वह बिहार की राजनीति में अपना जलवा दिखा पाएं. अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि कन्हैया कुमार पर कांग्रेस दांव खेलने के मूड में रही है, लेकिन आरजेडी के दबाव में वह हिम्मत नहीं कर पाती है. कांग्रेस के तेवर दिखाने के या फिर एक्शन के भी? अशोक कुमार शर्मा कहते हैं, अब जब लालू प्रसाद यादव ने इंडिया अलायंस में कांग्रेस के नेतृत्व (राहुल गांधी) को खुलकर अस्वीकार कर दिया है और ममता बनर्जी के पक्ष में खड़े हो गए हैं तो कांग्रेस ने भी अपने तेवर कड़े कर लिये हैं. अब वह भी चाहती है कि उसे सम्मान मिले. अशोक कुमार शरमा कहते हैं कि कांग्रेस को यह अहसास होना जरूरी भी है क्योंकि जबतक वह आरजेडी के साथ रहेगी बड़ा भाई तो लालू यादव की पार्टी आरजेडी ही रहेगी. सवाल यह है कि पूरे भारत में अपनी पैठ रखने वाली राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस आखिर कब तक छोटा भाई बनकर रहेगी? सुनहरा अतीत भी तो नहीं देखती कांग्रेस दरअसल, कई ऐसे मौके आए हैं जब कांग्रेस के कई नेता बिहार में अपने सुनहरे अतीत को याद करते हुए आरजेडी से अलग होने की बात करते रहे हैं. लेकिन, हकीकत यह भी है कि ‘फ्रंट फुट’ पर खेलने की बात होती तो है, पर अंत में पार्टी बैकफुट पर चली जाती है. बता दें कि एक बार कांग्रेस ने संयुक्त बिहार (बिहार-झारखंड तब एक थे) की 324 विधानसभा सीटों में से 239 सीटों पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी. वहीं, बिहार विभाजन के बाद वर्ष 2010 में हुए चुनावों में कांग्रेस ने अपना सबसे खराब प्रदर्शन किया और 243 विधानसभा सीटों में से मात्र 4 सीटें हासिल कर पाई. कैसे बैकफुट पर जाती गई कांग्रेस (अविभाजित बिहार) 1951: 239 1957: 250 1962: 185 1967: 128 1969: 118 1972: 167 1977: 57 1980: 169 1985: 196 1990: 71 1995: 29 2000: 23 झारखंड विभाजन के बाद बिहार में कांग्रेस 2005: 09 2010: 5 (4+1 सीट उपचुनाव में जीती) 2015: 27 2020: 19 क्या हुआ जो बैकफुट पर जाती रही कांग्रेस बता दें कि बिहार में 1990 से पहले अधिकतर समय कांग्रेस के हाथ में सत्ता रही, लेकिन वर्ष 1989 में भागलपुर दंगे के बाद बिहार में कांग्रेस से मुस्लिम समुदाय छिटक गया. दूसरी ओर मंडल राजनीति के दौर में लालू यादव, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान जैसे नेताओं का उभार हुआ तो कांग्रेस बैकफुट पर जाती चली गई. आलम यह था कि मध्यमार्गी राजनीति करने वाली कांग्रेस की राजनीति असमंजस वाली रही. कांग्रस न तो वह सवर्णों का खुलकर साथ दे पाई और न ही पिछड़े और दलित समुदायों को ही अपने साथ ला पाई. इस बीच कांग्रेस के वोट बैंक पर आरजेडी (बीजेपी विरोधी छवि के कारण मुस्लिम मतों का झुकाव राजद की ओर हो गया) ने सीधा कब्जा कर लिया. राजनीति ने ली करवट तो कांग्रेस और गिर गई! इसके बाद तो लालू यादव ने ‘MY’ यानी मुस्लिम-यादव समीकरण का ऐसा गठजोड़ बना लिया कि बिहार की राजनीति में लालू यादव अन्य दलों की राजनीति ही हाईजैक कर ली. कुछ ऐसा समीकरण (मुस्लिम-यादव-पिछड़े और दलित) बन गया कि वर्ष 2005 तक इसमें कोई सेंध नहीं लग पाई. हालांकि, बिहार की राजनीति ने इससे पहले ही करवटें लेनी शुरू कर दी थी. वर्ष 1995 के चुनाव में कांग्रेस मात्र 29 सीटों पर सिमट गई, लेकिन बीजेपी 41 सीटें जीतकर मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई. (खास बात यह है कि 2020 के विधानसभा में 80 सीटों के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है. ) फिर तो कांग्रेस ने आरजेडी की बैशाखी थाम ली. साल 2000 में लालू यादव ने कांग्रेस के 23 विधायकों को राबड़ी देवी कैबिनेट में शामिल किया. वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सदानंद सिंह को विधानसभा का अध्‍यक्ष भी बनाया गया. इसके बाद तो जैसे कांग्रेस पर भी आरजेडी का कब्जा हो गया और कांग्रेस छोटी पार्टी की भूमिका में आ गई. सिमटती गई कांग्रेस, दूसरे दल बढ़ते रहे पहली बार बीजेपी विरोध के नाम पर कांग्रेस ने आरजेडी का सहारा लिया तो वह इतना बड़ा नुकसान कर बैठी कि इसका भुगतान वह तीन दशक बाद तक कर रही है. कांग्रेस ने फिर भी सबक नहीं लिया और वर्ष 2005 में मात्र 5 सीटों पर सिमट गई. 2010 में कांग्रेस सिर्फ चार सीटें ही जी पाई थी. इसके पांच साल बाद वर्ष 2015 में कांग्रेस फिर आरजेडी के साथ हो ली तो यहां भी लालू प्रसाद और नीतीश कुमार ने कांग्रेस के उम्मीदवारों को चयन किया था. समझा जा सकता है कि कांग्रेस ने किस तरह सरेंडर कर दिया था. आरजेडी और कांग्रेस के कॉमन मतदाता यही सोचते रहे कि आरजेडी और कांग्रेस एक ही तो है. वहीं, आरजेडी से नजदीकी के कारण कांग्रेस के कोर वोटर (सवर्ण और दलित) भी धीरे-धीरे विरोधी दलों की ओर शिफ्ट हो गए. कांग्रेस को मिला मौका, क्या लगाएगी चौका या… एक राजनीतिक स्थिति यह भी रही कि कांग्रेस के पास लालू यादव जैसा बड़ा कोई नेता भी नहीं मिल पाया जो बिहार की राजनीति की जटिलताओं को समझ पाए और उसे कांग्रेस के पक्ष में साध पाए. परिस्थितिवश और अपनी लगातार गलतियों के कारण कांग्रेस बिहार की राजनीति में ‘बैक फुट’ पर जाती चली गई. अब जब आरजेडी ने कांग्रेस नेतृत्व का मुखर तौर पर विरोध कर दिया है तो कांग्रेस के पास रिवाइवल का एक मौका बन सकता है, लेकिन सवाल यह है कि क्या कांग्रेस इस मौके का इंतजार कर रही थी और वह वाकई में अपने जनाधार के विस्तार के लिए तैयार है या फिर चंद सीटों की बढ़ोतरी के लिए सियासी बैटिंग कर रही है. इस प्रश्न का उत्तर भविष्य के गर्भ में है और राजनीति जानने वाले और बिहार की जनता कांग्रेस के अगले कदम को लेकर उत्सुक भी है या नहीं, कहा नहीं जा सकता. Tags: Bihar Congress, Bihar politics, Bihar rjd, Lalu Prasad Yadav, Rahul gandhi latest newsFIRST PUBLISHED : December 16, 2024, 15:51 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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