मो शहाबुद्दीन की बात नहीं मानकर क्यों पछताए थे लालू यादव कैसे हुई किरकिरी
मो शहाबुद्दीन की बात नहीं मानकर क्यों पछताए थे लालू यादव कैसे हुई किरकिरी
DP Ojha News: पूर्व डीजीपी डीपी ओझा का अंतिम संस्कार शनिवार को पटना के गुलबी घाट पर कर दिया गया और वह पंचतत्व में विलीन हो गए. लेकिन, डीपी ओझा के कार्यकाल के किस्से आज भी लोगों की जेहन में हैं. एक वाकया मोहम्मद शहाबुद्दीन से लालू यादव के रिश्ते और राबड़ी देवी सरकार की किरकिरी से जुड़ी हुई भी है. दरअसल, शहाबुद्दीन जब जेल में बंद थे तो लालू प्रसाद यादव उनसे मिलने जेल पहुंच गए. इस पर कटाक्ष करते हुए डीपी ओझा ने सार्वजनिक कार्यक्रम में कह दिया था...पूरी कहानी आगे पढ़िये.
हाइलाइट्स डीपी ओझा ने शहाबुद्दीन पर कसा था शिकंजा, बिहार के चर्चित आईपीएस अफसरों में रहे. अपने एक्शन से लालू यादव और राबड़ी देवी के लिए मुसीबत बन गए थे डीजीपी डीपी ओझा.
पटना. डीपी ओझा 1 फरवरी 2003 को बिहार के पुलिस महानिदेशक यानी डीजीपी बनाए गए थे. डीपी ओझा को तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने 6 दिसंबर 2003 में डीजीपी के पद से हटा दिया था. इन 10 महीनों के छोटे से कार्यकाल में डीजीपी डीपी ओझा ने ‘सीवान के साहेब’ नाम से मशहूर बाहुबली मोहम्मद शहाबुद्दीन की नाक में दम कर दिया था. दरअसल, वर्ष 2003 में मोहम्मद शहाबुद्दीन ने लालू यादव से वारिस हयात खान को डीजीपी बनाने की पैरवी की थी, लेकिन लालू यादव ने सबसे सीनियर होने के आधार पर डीपी ओझा को डीजीपी बना दिया था. लेकिन, डीजीपी बनने के बाद डीपी ओझा ने शहाबुद्दीन पर इतनी सख्ती कर दी कि लालू यादव सियासी तौर पर बेहाल हो गए थे. तब राबड़ी देवी मुख्यमंत्री थीं, लेकिन सरकार चलाने में एक-एक दिन भारी पड़ने लगा था. स्थिति यह आ गई थी कि डीपी ओझा फरवरी 2004 तक डीजीपी के पद पर रहने वाले थे, लेकिन बीच में ही हटा दिये गए.
इसके बाद डीजीपी पद से हटाए जाने से खफा होकर डीपी ओझा ने रिटायरमेंट से पहले ही भारतीय पुलिस सेवा से इस्तीफा दे दिया. लेकिन, मोहम्मद शहाबुद्दीन के खिलाफ उन्होंने जो फाइलें तैयार कराईं इसके चलते बाद में के दिनों में भी शहाबुद्दीन को चैन नहीं मिला. दरअसल, शहाबुद्दीन के खिलाफ अपहरण, फिरौती जैसे कई संगीन आपराधिक मामले दर्ज थे. डीपी ओझा के नेतृत्व में शहाबुद्दीन के ठिकानों पर पुलिस ने छापेमारी की और गिरफ्तारी अभियान चलाए.
डीपी ओझा का लालू यादव पर वो कटाक्ष!
साल 2003 खत्म होते-होते डीपी ओझा सत्ताधारी नेताओं और खास कर शहाबुद्दीन की आंखों में खटकने लगे थे. शहाबुद्दीन जब जेल में बंद थे तो लालू प्रसाद यादव उनसे मिलने जेल पहुंच गए. इस पर कटाक्ष करते हुए डीपी ओझा ने सार्वजनिक कार्यक्रम में कह दिया था कि बिहार के लोगों ने लफंगों के हाथों में सता डाल दी है, सत्ताधारी नेता भी अपराधियों के चरण छूने पहुंच जाते हैं. उनका यह तंज सीधा-सीधा लालू यादव और शहाबुद्दीन के रिश्तों को लेकर था.
डीपी ओझा की फाइलों की फांस में फंस गए शहाबुद्दीन
डीपी ओझा की तैयार कराई गई रिपोर्ट और शहाबुद्दीन के खिलाफ केसों को मजबूती से तैयार कराए गए डॉक्यूमेंट्स ने बाहुबली शहाबुद्दीन को सलाखों के पीछे धकेल दिया. बाद में 2005 में लालू-राबड़ी सरकार चली गई और जब नीतीश सरकार आई तो शहाबुद्दीन पर कानून का शिकंजा और भी कसता गया और अंत-अंत तक वह कानूनी पचड़ों में उलझे रहे. आलम यह रहा कि शहाबुद्दीन की जब मौत हुई तो भी वह कानून की गिरफ्त में ही थे.
लालू यादव के साथ 1 मिनट भी काम क्यों नहीं करना चाहते थे डीपी ओझा?
हालांकि, डीपी ओझा ने इसका खामियाजा भुगता भी और बिहार की सरकार को लेकर खुले तौर पर नकारात्मक बातें करने की कारण रिटायरमेंट से 2 महीने पहले ही डीपी ओझा को पुलिस महानिदेशक के पद से हटा दिया गया था. उनकी जगह वही वारिस हयात खान यानी डब्ल्यू एच खान को डीजीपी बनाए गए थे, जिसको डीपी ओझा से पहले शहाबुद्दीन डीजीपी पद पर देखना चाहते थे. शहाबुद्दीन ने पहले की थी पद से हटाने के बाद डीपी ओझा ने रिटायरमेंट ले लिया था और कहा था कि सरकार के अंदर वह 1 मिनट काम नहीं करना चाहते.
नहीं सध सके डीपी ओझा के राजनीतिक लक्ष्य
हालांकि, ऐसा लगता है कि वह इस स्थिति के लिए तैयार ही थे. शायद उनकी राजनीतिक मंशा भी रही थी. शहाबुद्दीन पर एक्शन के लेकर लालू यादव और राबड़ी देवी की सरकार की आंखों में किरकिरी बने डीपी ओझा को लालू विरोधी मतदाताओं के बीच लोकप्रियता मिली थी. इसको भुनाने के लिए डीपी ओझा ने 2004 में भूमिहार बाबुल बेगूसराय लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा भी, लेकिन उनकी जमानत जब्त हो गई. डीपी ओझा को 6000 से भी कम वोट मिले थे. इस चुनाव में जदयू के ललन सिंह ने कांग्रेस की कृष्ण शाही को लगभग 20, 000 मतों से हराया था.
अपने कार्यकाल के कारण अमिट इतिहास हो गए डीपी ओझा
भूमिहार जाति से आने वाले डीपी ओझा 1967 बैच के आईपीएस अधिकारी थे उनका झुका हुआ विचारधारा की तरफ रहा. डीपी ओझा का 6 दिसंबर 2024 को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. 7 दिसंबर को उनका अंतिम संस्कार पटना के गुलबी घाट पर कर दिया गया. उन्होंने अपने कार्यकाल में जिस प्रकार के कार्यों को अंजाम दिया वह बिहार प्रशासनिक सेवा में अमिट हो गया है. लोग जब भी लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के शासनकाल को याद करेंगे और मोहम्मद शहाबुद्दीन का जिक्र होगा तो तत्कालीन डीजीपी डीपी ओझा को जरूर याद किया जाएगा जिनके कारण राबड़ी देवी की सरकार के लिए एक-एक दिन भारी पड़ने लगा था.
Tags: Bihar latest news, Lalu Prasad Yadav, Mohammad shahabuddinFIRST PUBLISHED : December 8, 2024, 12:10 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed