पैंगोंग पर शिवाजी की प्रतिमा पर क्यों उठा सवाल क्यों मचा सोशल मीडिया पर बवाल
पैंगोंग पर शिवाजी की प्रतिमा पर क्यों उठा सवाल क्यों मचा सोशल मीडिया पर बवाल
Shivaji statue issue: पैंगोंग लेक हमेशा से भारत और चीन के बीच विवाद की वजह से सुर्खियों में रहता है. अब शिवाजी की प्रतिमा को लेकर सोशल मीडिया पर वायरल है. भारतीय सेना की मराठा लाइट इंफेंट्री ने शिवाजी की मूर्ती पैंगोंग के किनारे क्या लगाई सोशल मीडिया में विवाद शुरु हो गया.
Shivaji statue issue : भारतीय सेना और विवाद अब मानों एक दूसरे के पूरख होते नजर आ रहे है. कोई भी काम सेना क्यों ना कर लें, सोशल मीडिया की सुर्खियां बन ही जाती है. पिछले कुछ समय से तो सेना मूर्ती और पेंटिंग के विवादों में घिरी रही है. अब पैंगोंग झील के किनारे स्थापित की गई छत्रपति शिवाजी महाराज की लगाई गई प्रतिमा सोशल मीड़िया में सुर्खियों में है. इसी तरह का मूर्ती विवाद महाराष्ट्र चुनाव से पहले खड़ा हो गया था. जब नौसेना दिवस के मौके पर सिंधुदुर्ग में लगाई गई शिवाजी महाराज की प्रतिमा क्षतिग्रस्त हो गई थी.
क्या है पूरी कहानी
26 दिसंबर 2024 को छत्रपति शिवाजी महाराज की एक विशाल प्रतिमा पैंगोंग झील के किनारे स्थापित की गई. 14,300 फीट की ऊंचाई पर स्थापित इस मूर्ती को वहां पर तैनात मरठा लाइट इंफ्रेंट्री की यूनिट ने स्थापित की. खुद इसका अनावरण लेह स्थित 14 कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग और मराठा लाइट इंफेंट्री के कर्नल ऑफ रेजिमेंट लेफ्टिनेंट जनरल हितेश भल्ला ने किया था. बाकायदा आधिकारिक X हैंडल पर इसकी जानकारी और तस्वीर भी जारी की गई थी. साथ ही यह भी लिखा कि यह कार्यक्रम भारतीय शासक की अटूट भावना की जश्न मनाता है, जिनकी विरासत पीढ़यों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है. बस इसके बाद सोशल मीडिया पर विवाद शुरू हो गया. लद्दाख के चुशुल से काउंसलर कोनचोक स्टांजिन ने पैंगोंग झील के किनारे भारतीय सेना द्वारा स्थापित की गई छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा की प्रासंगिकता पर सवाल उठाया. उनका कहना था कि यह प्रतिमा बिना स्थानीय सलाह-मशवरे के स्थापित की गई है. इसका स्थानीय पर्यावरण और वन्यजीवों से कोई संबंध नहीं है. काउंसलर कोनचोक स्टांजिन ने सोशल मीडिया पर लिखा, “हमारी समुदाय और प्रकृति को सम्मानित करने वाले प्रोजेक्ट्स पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए”.
पूर्व सैनिकों ने खड़े किए सवाल
कुछ पूर्व सैनिकों लद्दाख में लगे इस प्रतिमा की प्रासंगिकता पर सवाल उठाया. सोशल मीडिया पर कई पूर्व सैनिकों ने अपनी बाते रखी. जिसमें कहा गया अगर कोई प्रतिमा स्थापित करनी थी, तो ज़ोरावर सिंह की प्रतिमा अधिक उपयुक्त होती, क्योंकि उन्होंने पांगोंग झील के पास कई महत्वपूर्ण सैन्य अभियान किए थे. सेना की तरफ से इस पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है. सेना के सूत्रों के मुताबिक जब भी कोई यूनिट किसी जगह पर पोस्ट होती है, तो अपने रेजिंमेंट से जुड़ी प्रतिमाएं या पूजा स्थल बनाती है. पैंगोंग में लगाई गई प्रतिमा यूनिट के सैनिकों और अफसरों के साथ साथ रेजिमेंट के पूर्व सैनिकों ने स्वेच्छिक योगदान के जरिए बना है. इसमें सरकार का कोई पैसा खर्च नहीं हुआ है. सेना के सूत्रों ने यह भी बताया कि जब भी यूनिट वापस जाती है तो अपने साथ के असेट को आने वाली यूनिट को हैंडओवर कर के जाती है. यह आने वाले यूनट पर निर्भर करता है कि वह असेट उसे रखाना है या नहीं. अगर नहीं रखना होता है तो जाने वाली यूनिट अपने साथ लेकर जाती है. शिवाजी की इस प्रतिमा का क्या होगा यह कहना अभी साफ नहीं है.
मूर्ती और पेंटिंग के विवादों में सेना
ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हो रहा है कि सेना मूर्ती या पेंटिंग को लेकर विवाद में है. नवंबर 2023 में 10.5 फिट उंची शिवाजी की प्रतिमा कुपवाड़ा में LOC के पास स्थापित की गई थी. उसका अनावरण के लिए जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिंहा और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे मौजूद थे. इस मूर्ती को सेना की मराठा लाइट इंफ्रेंट्री के अपनी यूनिट में स्थापित किया था. 35 फिट ऊंची शिवाजी की प्रतिमा दिसंबर 2023 में सिंधुदुर्ग में नौसेना दिवस पर लगाई थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद उसका अनावरण किया था. लेकिन अगस्त 2024 में वो प्रतिमा क्षतिग्रस्त हो गई थी. इस घटना पर तो जमकर बवाल मच गया. इसी साल थलसेना प्रमुख के लॉंज से 1971 के सरेंडर वाली पेंटिंग हटाई जाने को लेकर विवाद बड़ा विवाद हो गया था. मामला सोशल मीड़िया से सीधा संसद तक पहुंच गया.
Tags: Indian Army news, LAC Indian Army, Ladakh Indian ArmyFIRST PUBLISHED : December 30, 2024, 19:05 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed