भीषण गर्मी में तपते पत्थर के 8 इंच छेद से बच्चे को 7 बार कराया आर-पार

Bhilwara News: भीलवाड़ा जिले में कुपोषित मासूम बच्चों को स्वस्थ करने के नाम पर एक अजीबोगरीब प्रथा चलन में है. इस प्रथा के तहत बच्चे के एक पत्थर में बने आठ इंच के छेद में से सात बार आरपार कराया जाता है. फिर चाहे मौसम भीषण गर्मी का या फिर सर्दी का.

भीषण गर्मी में तपते पत्थर के 8 इंच छेद से बच्चे को 7 बार कराया आर-पार
राहुल कौशिक. भीलवाड़ा. राजस्थान में कई तरह की प्रथाएं देखने मिलती हैं. कुछ प्रथाएं ऐसी हैं जिनके प्रति लोगों का विश्वास ज्यादा गहरा है. भले ही वह कितनी ही कष्टकारी क्यों ना हो. मेवाड़ इलाके के भीलवाड़ा जिले के मांडल कस्बे में एक ऐसी प्रथा है प्रचलित है. यह प्रथा है ढाई फीट ऊंचे काले पत्थर के बीच बने अर्द्ध चंद्राकार बिंदियानुमा आठ इंच छेद से छोटे बच्चों को निकालना. मान्यता है कि इससे बच्चे स्वस्थ हो जाते हैं. राजस्थान इन दिनों भीषण गर्मी के चपेट में है. तापमान 45 डिग्री से 50 डिग्री के बीच चल रहा है. रेत और सड़क से लेकर पत्थर तवे की भांति तप रहे हैं. फिर भी लोग इस मौसम में पत्थर के छेद से बच्चों को निकालने की कथित प्रथा को निभा रहे हैं. जानकारों के मुताबिक यह पत्थर मांडल कस्बे के तालाब की पाल पर लगा हुआ है. इसे बिंदिया भाटा के नाम से जाना जाता है. इस प्रथा के तहत पत्थर के छेद के बीच से बच्चे को नंगे बदन सात बार आर-पार कराया जाता है. मान्यता है कि बच्चा अगर कुपोषित है तो इस छेद से सात बार निकालने पर वह ठीक हो जाएगा. वह भविष्य में फिर कभी कुपोषण का शिकार नहीं होगा. इस प्रथा के इस इलाके के बहुत से लोग शिद्दत से निभाते हैं. लेकिन तपती गर्मी में इस प्रथा को निभाना बच्चे के लिए कितना कष्टकारी होता है इससे लोग कम ही सरोकार रख रहे हैं. दर्द पर हावी रहती है प्रथा इस भीषण गर्मी में भी यह सिलसिला जारी है. रविवार को 45 डिग्री के पारे के बीच चिलचिलाती धूप में ऐसा दृश्य सामने आया है. यहां एक दंपति अपने डेढ़ साल के बच्चे को इस पत्थर निकाल रहे थे. गर्म पत्थर शरीर को छूने से बच्चा चिल्लाया भी. लेकिन दर्द पर मान्यता हावी रही. इस दौरान किसी ने दृश्य को अपने कैमरे में भी कैद कर लिया. फिर यह फोटो सोशल मीडिया में भी वायरल हो गई. शनिवार और रविवार को यहां भीड़ उमड़ती है इलाके के पुराने लोगों का कहना है कि इस पत्थर के पास पेड़ पर कुपोषित बच्चों के कपड़े भी बांधने की मान्यता है. इसलिए यहां आने वाले लोग पहले बच्चे के कपड़े पेड़ पर बांधते हैं. फिर बच्चे को पत्थर के आठ इंच छेद से निकालते हैं. इस स्थान पर काफी लोग अपने बच्चों को लेकर आते हैं. शनिवार और रविवार को यहां बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं. भीलवाड़ा में सांस के रोग से ग्रसित बच्चे को ठीक करने के लिए झाड़फूंक कर डाम भी लगाये जाने की प्रथा है. इस प्रथा में कथित भोपे बच्चे के शरीर को लोहे की गर्म रॉड दागते हैं. बच्चे के लिए मां के दूध से बढ़कर कोई भी चीज नहीं है भीलवाड़ा के शिशु विशेषज्ञ डॉक्टर प्रशांत आगाल के अनुसार बच्चों के लिए मां के दूध से बढ़कर कोई भी चीज नहीं है. बच्चों की बढ़ती उम्र के साथ उसकी डाइट और उसके खान-पान में बदलाव लाना जरूरी है. माता-पिता को इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए. माता-पिता बच्चों को अच्छा खिलाए पिलाए और उनको सेहतमंद रखें. बच्चा अगर कुपोषण का शिकार है तो उसे डॉक्टर के पास ले जाएं. अंधविश्वास की थ्योरी में नहीं पड़ें. नीम हकीम से दूरी बनाकर रखें. Tags: Bhilwara news, Big news, Rajasthan newsFIRST PUBLISHED : May 27, 2024, 12:40 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed