कौन जा सकता है स्ट्रॉन्ग रूम के अंदर कितने लेयर की होती है सुरक्षा जानें ABC

स्ट्रॉन्ग रूम क्या प्राइवेट प्रॉपर्टी, निजी जमीन, निजी मकान में बनाया जा सकता है? स्ट्रॉन्ग रूम सरकारी बिल्डिंग में ही क्यों बनता है? स्ट्रॉन्ग रूम की जगह कैसे तय होती है? किस लेवल के अधिकारी करते सुरक्षा? सिक्योरिटी लेयर कितनी होती है? कैंडिडेट के समर्थक कहां तक जा सकते हैं? काउंटिंग से कितनी देर पहले ईवीएम काउंटिंग सेंटर पर पहुंचता है? काउंटिंग के बाद EVM कहां रखा जता है? ईवीएम का डाटा कितने दिनों तक सुरक्षित रखना पड़ता है?

कौन जा सकता है स्ट्रॉन्ग रूम के अंदर कितने लेयर की होती है सुरक्षा जानें ABC
नई दिल्ली. लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे को लेकर लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. एक जून को सातवें चरण का चुनाव खत्म होने के साथ ही सभी निगाहें 4 जून नतीजे वाले दिन पर टिक जाएगी. ऐसे में आज जानेंगे कि इतने लंबे समय तक ईवीएम कहां रखा जाता है? ईवीएम जहां रहती है उसे स्ट्रॉन्ग रूम क्यों कहते हैं? साथ ही जानेंगे कि चुनाव आयोग वोटिंग के बाद ईवीएम को स्ट्रॉन्ग रूम में ही क्यों रखती है? क्या होता है स्ट्रॉन्ग रूम? स्ट्रॉन्ग रूम की जगह कैसे तय होती है? किस लेवल के अधिकारी इसकी सुरक्षा करते हैं? सिक्योरिटी लेयर कितनी होती है? कैंडिडेट के समर्थक कहां तक जा सकते हैं? काउंटिंग से कितनी देर पहले ईवीएम काउंटिंग सेंटर पर पहुंचता है? काउंटिंग के बाद EVM कहां रखा जता है? ईवीएम का डाटा कितने दिनों तक सुरक्षित रखना पड़ता है? प्रत्याशी कितने घंटे के अंदर या कितने दिनों के अंदर कोर्ट में काउंटिंग को चैलेंज कर सकता है? आपको बता दें कि जहां ईवीएम रखा जाता है उसे स्ट्रॉन्ग रूम कहते हैं. इसे स्ट्रॉन्ग रूम इसलिए कहते हैं कि एक बार मशीन अंदर चला जाता है तो उसके बाद उस कमरे में कोई दूसरा नहीं जा सकता है. विशेष परिस्थिति में उसे निर्वाचन आयुक्त से अनुमति लेनी पड़ती है. इसके बाद बी अकेले कोई शख्स अंदर नहीं जा सकता है. हां, वोटों की गिनती के वक्त सुरक्षा कर्मियों के साथ और लोग, जो अधिकृत हैं वह अंदर जा सकते हैं. किसी भी जगह पर जैसे प्राइवेट प्रॉपर्टी, निजी जमीन, निजी मकान पर स्ट्रॉन्ग रूम नहीं बनाया जा सकता है. किसी भी जगह पर जैसे प्राइवेट प्रॉपर्टी, निजी जमीन, निजी मकान पर स्ट्रॉन्ग रूम नहीं बनाया जा सकता है. स्टॉन्ग रूम सरकारी बिल्डिंग में ही बनता है. इसके लिए बकायदे जिला मजिस्ट्रेट स्थल निरिक्षण करते हैं और सुरक्षा का जायजा लेते हैं. जिस सरकारी बिल्डिंग में स्ट्रॉन्ग रूम बनाया जाना है, उसका चयन पहले ही कर चुनाव आयोग को भेजा जाता है. चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइट पर लिखा है कि स्टॉन्ग रूम सरकारी बिल्डिंग में बनेगा, लेकिन पुलिस की बिल्डिंग इसका अपवाद रहेगा. स्ट्रॉन्ग रूम की तीन लेयर पर सुरक्षा होती है. स्ट्रॉन्ग रूम की अंदर की सुरक्षा स्थानीय पुलिस नहीं करती है. इसके लिए पैरा मिलिट्री फोर्सेज या अन्य तरह के फोर्सेज की तैनाती होती है. हां, स्ट्रॉन्ग रूम के बाहरी सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य पुलिस के हाथ में होती है. अगर प्रत्याशी चैलेंज करता है तो वह भी हटा कर बीएसएफ या सीआरपीएफ भी कर सकती है. स्ट्रांग रूम में रखें ईवीएम मशीनों की सुरक्षा के बारे में जिला अधिकारी और पर्यवेक्षक लगातार स्ट्रॉन्ग रूम का दौरा करते रहते हैं. स्ट्रांग रूम में रखें ईवीएम मशीनों की सुरक्षा के बारे में जिला अधिकारी और पर्यवेक्षक लगातार स्ट्रॉन्ग रूम का दौरा करते रहते हैं. आपको बता दें कि गाजियाबाद लोकसभा सीट के सभी ईवीएम यहां के स्ट्रांग रूम अनाज मण्डी और गोविन्दपुरम में बने हैं और यहां पर त्रिस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था है. निर्वाचन अधिकारी सहित अन्य अधिकारियों द्वारा समय-समय पर दिशा निर्देशों के साथ निरीक्षण भी किया जाता है. गाजियाबाद के जिला निर्वाचन अधिकारी इंद्र विक्रम सिंह द्वारा समय-समय पर पूरे स्ट्रांग रूम का चारों तरफ से निरीक्षण किया जाता है. बता दें कि जहां स्ट्रॉन्ग रूम बनता है वह पूरा एरिया सीसीटीवी में कैद होना चाहिए.अधिकारी कंट्रोल रूम में बैठकर मॉनिटरिंग करते रहते हैं. प्रत्याशियों या उनके प्रतिनिधि को भी सीसीटीवी से सब दिखाई देता रहता है. आने-जाने वाले सभी लोगों का रजिस्टर रिकॉर्ड रखा जाता है. स्ट्रांग रूम के कमरों की संख्या, किस कमरा में कितना ईवीएम रखा गया है. इन सारी बातों की जानकारी लिखित में प्रत्याशी और चुनाव आयोग दोनों को पहले ही दे दिया जाता है. टीवी स्क्रीन पर सभी कैमरों का डिस्पले दिखना चाहिए. कंट्रोल रुम में अंधेरा न हो इसके लिए बिजली 24 घंटे रहती है. टीवी स्क्रीन पर सभी कैमरों का डिस्पले दिखना चाहिए. कैमरों को विधानसभा के हिसाब से लगाया जाता है. ताकि किसी भी विधानसभा को देखना हो तो पर्यवेक्षक तुरंत देख सकते हैं. सभी कैमरों को इस तरह से लगाया जाता है कि सामने कमरे की दीवार पर भी उस कमरे की जानकारी दिखे. यदि कैमरे कम पड़ते हों तो और भी लगाएं जा सकते हैं. ये भी पढ़ें: स्वाति मालीवाल एपिसोड के बाद क्यों चर्चा में हैं ‘टर्बनेटर’… ‘आप’ की गुगली है या हरभजन की? कन्ट्रोल रूम से अलग पार्टी एजेन्टों के मॉनिटरींग रूप भी होते हैं. यहां 24 घंटे प्रत्याशी या उनके प्रतिनिधि निरीक्षण कर सकते हैं. मॉनिटरिंग रूम में टीवी स्क्रीन पर सभी कैमरों द्वारा सीधा प्रसारण होना चाहिए. मॉनिटरिंग की शत प्रतिशत सही हो रही है कि नहीं इसका भी ख्याल रखा जाता है. ऐजेन्टों का वगैर कार्ड बनाए अंदर नहीं जाने दिया जाता है. काउंटिंग के दिन दो घंटे पहले हर स्तर की निगरानी के साथ स्ट्रॉन्ग रूम खोला जाता है और फिर ईवीएम को काउंटिंग स्थल पर पहंचाया जाता है. अमूमन जहां स्ट्रॉन्ग रूम बनता है , उस जगह पर ही या उसके अगल-बगल में ही काउंटिंग स्थल बनाया जाता है. स्ट्रांग रूम से काउंटिंग हॉल तक ईवीएम ले जाने का पूरा वीडियो बनाया जाता है. ईवीएम का डाटा 15 साल तक सुरक्षित रखा जाता है, लेकिन भारत में एक साल तक या कोई विवाद हो जाए तो कोर्ट के आदेश के बाद तब तक सुरक्षित रखा जाता है, जबतक कि उस विवाद का निपटारा न हो जाए. Tags: Election commissioner, EVM, Loksabha ElectionsFIRST PUBLISHED : May 17, 2024, 11:48 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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