वो मुस्लिम जो बना दुनिया का पहला वीगन कहा गया सबसे बड़ा काफ़िर

आप हैरान हो सकते हैं कि कोई 12सदी पहले सीरिया में एक ऐसा मुस्लिम कवि और दार्शनिक हुआ, जो हिंदू तपस्वी की तरह जीवन जीता था. मांस नहीं, दूध नहीं, शहद नहीं, इस्लाम का प्रबल आलोचक. निधन पर जिसका दाह संस्कार हुआ. वह दुनिया का पहला वीगन भी था.

वो मुस्लिम जो बना दुनिया का पहला वीगन कहा गया सबसे बड़ा काफ़िर
हाइलाइट्स वह इस्लाम के इतने बड़े आलोचक थे कि उन्हें इस धर्म के इतिहास के तीन बड़े काफ़िरों में गिना जाने लगा वह कहते थे, वे जिनके पास दिमाग है, लेकिन कोई धर्म नहीं है और वे जिनके पास धर्म है, लेकिन कोई दिमाग नहीं है अल मारी पक्के वीगन थे, शहद और दूध तक के इस्तेमाल के विरोधी थे 2013 के वसंत में अल कायदा की सीरियाई शाखा के लड़ाकों ने 11वीं सदी के एक मुस्लिम कवि की मूर्ति का सिर काट दिया. उनके लिए वो काफिर था. क्योंकि वो कहता था ..ना तो मांस खाओ. ना दूध पीयो..ना अंडा ही और ना शहद खाओ..उन्हें काफिर मान लिया गया क्योंकि इस्लाम की बहुत सी बातों की आलोचना करते थे. उनका नाम अल मारी था, जिसे दुनिया का पहला वीगन माना गया. अल मारी कवि और दार्शनिक भी थे. वह 973-1080 ईस्वी तक जीवित रहे. तीन और चार साल की उम्र के बीच उन्हें चेचक हो गई, जिससे उनकी दृष्टि चली गई. वह उलमा (धार्मिक विद्वानों) के एक प्रमुख परिवार से आते थे, जिनके पूर्वज कथित तौर पर मअरात अल नुमान के पहले क़ादी (न्यायाधीश) थे. इस्लाम के इतिहास में जो तीन बड़े काफिर माने गए, वो उनमें एक था. अन्य दो के नाम इब्न अल रवांडी, अबू हयान अल ताहिदी हैं. रवांडी का जन्म अफगानिस्तान में हुआ था. वह धर्मशास्त्री और विद्वान थे लेकिन बाद में इस्लाम का त्यागकर नास्तिक बन गए. अबू हयान अल ताहिदी को तीखे भाषणों के लिए जाना जाता था. वह इस्लाम की आलोचना करते थे अल-मारी अपने समय का एक विवादास्पद तर्कवादी थे. वह अंधविश्वास और हठधर्मिता को खारिज करते थे. उन्होंने धार्मिक हठधर्मिता और प्रथाओं पर हमला किया. वह इस्लाम की आलोचना करते थे लेकिन साथ ही यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और और पारसी धर्म की आलोचना करते थे. फिर एक समय ऐसा आया जबकि वो आस्तिक बन गए. अल मारी को इस्लाम में सबसे बड़े काफिरों में एक माना जाता है लेकिन एक दार्शनिक और विद्वान के तौर पर उनका काफी रूतबा सदियों से रहा है. (फाइल फोटो) उन्होंने बच्चा पैदा नहीं करने का आंदोलन भी चलाया वह ऐसे शख्स थे जिन्होंने सामाजिक न्याय की वकालत की. वह 10वीं सदी में समय और धर्म से अलग जाकर शाकाहारी थे. वह लोगों से कविताओं के जरिए लोगों से अपील करते थे, “भोजन के रूप में मारे गए जानवरों के मांस का सेवन नहीं करें. मवेशियों के दूध को नहीं पीएं, क्योंकि इस पर उनके बच्चों का हक है. उनकी एक दर्शन पर बहुत विवाद हुआ. उन्होंने तभी प्रसव-विरोधी दृष्टिकोण रखा, जिसमें सुझाव दिया गया कि बच्चों को जीवन के दर्द और पीड़ा से बचाने के लिए पैदा नहीं किया करना चाहिए. आजकल ऐसे आंदोलन यूरोप में चल रहे हैं. ताजिदंगी शाकाहारी रहे अल मारी ने 30 साल की उम्र वो हर खाना छोड़ दिया, जो उनके वीगन बनने की राह में आड़े आ रहा था, फिर ताजिंदगी सख्त शाकाहारी खाना खाते रहे. हालांकि उनके बहुत विरोधी थे लेकिन सम्मान भी खूब मिला. खासकर छात्र उनकी बातों से उनकी ओर खूब आकर्षित होते थे. वह बाद में अमीर बन गए लेकिन कभी शादी नहीं की. अल कायदा की सीरिया शाखा ने कुछ समय पहले अल मारी की प्रतिमा का सिर काट दिया. वह कहते थे धर्म पूर्वजों द्वारा बनाई कल्पिक कहानी है अल-मारी एक संशयवादी थे. मतलब हर चीज पर तर्क और बहस के पैरोकार थे. वह हमेशा इस्लाम धर्म में अंधविश्वास और हठधर्मिता की निंदा करते थे. अल-री मानते थे कि धर्म “पूर्वजों द्वारा बनाई गई कल्पित कहानी” है, जो जनता के काम में ज्यादा ली गई. हज को बेकार मानते थे वह हज को बेकार की चीज मानते थे. इसे “बुतपरस्त की यात्रा” कहते. वह कहते थे कि भिक्षु अपने मठों में या भक्त मस्जिदों में इलाके की मान्यताओं का आंख बंद करके पालन कर रहे हैं. संगठित धर्म पर अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हुए उन्होंने एक बार कहा था, “पृथ्वी के निवासी दो प्रकार के हैं – वे जिनके पास दिमाग है, लेकिन कोई धर्म नहीं है और वे जिनके पास धर्म है, लेकिन कोई दिमाग नहीं है.” मांसाहारी के कट्टर विरोधी अल-मारी ने मांस और अन्य सभी पशु उत्पादों का सेवन बंद करने का फैसला किया. और पूरी कड़ाई के साथ ताजीवन इसका पालन किया. उन्होंने तब अपनी कविता के जरिए अपील की, अन्यायपूर्वक जल द्वारा छोड़ी गई मछलियां न खाओ मारे गए पशुओं के मांस को भोजन के रूप में न करो उन माताओं के सफेद दूध की इच्छा न करो जो अपने बच्चों के लिए शुद्ध दूध का इरादा रखती हैं पक्षियों के अंडे लेकर उन्हें दुखी मत करना और उस शहद को बचा लो जो मधुमक्खियां सुगंधित पौधों के फूलों से परिश्रमपूर्वक प्राप्त करती हैं उन्होंने उसे इसलिये संचय नहीं किया कि वह दूसरों का हो जाए आज भी विवादास्पद अल-मारी आज भी विवादास्पद हैं, क्योंकि वह अरब दुनिया के प्रमुख धर्म इस्लाम पर संदेह करते थे. 2013 में, उनकी मृत्यु के लगभग एक हजार साल बाद, अल-कायदा की सीरिया शाखा अल-नुसरा फ्रंट ने अल-मारी की मूर्ति को ध्वस्त कर दिया. उसकी वजह ये बताई गई कि अल मारी विधर्मी था. FIRST PUBLISHED : May 8, 2024, 10:09 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed