Opinion:‘ब्रेन ड्रेन’ को ‘ब्रेन गेन’ में बदल रहे हैं पीएम मोदी प्रतिभा अब नहीं रही भाषा की गुलाम

यहां एक बुनियादी सवाल है कि क्या मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिंदी या अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में होना सिर्फ उस भाषा की उन्नति है या फिर बदलाव और विकास की पहचान है. विशेषज्ञों का एक तबका इसे आज़ादी के 75 साल बाद अंग्रेजी से आजादी का लक्षण करार दे रहा है. यहां एक बात साफ करना जरूरी है कि हिंदी या मातृभाषा में उच्च शिक्षा फिलहाल अनिवार्य नहीं है बल्कि ये उन छात्रों के लिए वरदान है जो अब तक अंग्रेजी की अनिवार्यता की वजह से कहीं पीछे छूट जाते थे.

Opinion:‘ब्रेन ड्रेन’ को ‘ब्रेन गेन’ में बदल रहे हैं पीएम मोदी प्रतिभा अब नहीं रही भाषा की गुलाम
नोएडा में मैं जिस सोसायटी में रहता हूं, वहां का एक मेंटेनेंस सुपरवाइजर है. मूल रूप से एक छोटे से कस्बे से ताल्लुक रखता है. वो अपने बेटे को इंजीनियर बनाना चाहता है, बेटा पढ़ने में ठीक भी है और उसकी रुचि भी इंजीनियरिंग की पढ़ाई में है लेकिन बाप-बेटे दोनों के सपने के बीच सबसे बड़ी रुकावट है अंग्रेजी भाषा. कई बार बातचीत में इसका जिक्र भी कर चुका है कि कितना अच्छा होता इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई भी हिंदी भाषा में होती. रविवार को जब इस बात की जानकारी मिली कि मध्य प्रदेश में मेडिकल की पढ़ाई अब हिंदी भाषा में भी हो सकेगी, किताबों के अनुवाद के बाद अब इसकी शुरूआत कर दी गई है और जल्द ही इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी हिंदी भाषा में शुरू होने वाली है. मध्य प्रदेश के फौरन बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी जल्द ही ऐसा करने का ऐलान किया है. उन्होंने खुद ट्वीट कर इसकी जानकारी दी. उन्होंने लिखा ‘उत्तर प्रदेश में मेडिकल और इंजीनियरिंग की कुछ पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद कर दिया गया है. आगामी वर्ष से प्रदेश के विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में इन विषयों के पाठ्यक्रम हिंदी में भी पढ़ने के लिए मिलेंगे’ ये बातें सुनकर मेरे सुपरवाइजर की आंखों में एक अलग ही चमक और चेहरे पर सपने के साकार होने की उम्मीद दिखी, बोला- ‘सर, अब मेरे बेटे की काबिलियत अंग्रेजी की बलि नहीं चढ़ेगी. वो भी इंजीनियर बन सकेगा. मुझे भी उसकी बात बिल्कुल सटीक लगी कि देश में टैलेंट अब भाषा का गुलाम नहीं रहेगा. हमारे देश में आज भी कई मेधावी छात्र भाषा के बैरियर की वजह से अपनी प्रतिभा को सही तरीके से व्यक्त या प्रदर्शित नहीं कर पाते हैं. खासतौर पर कस्बाई और ग्रामीण इलाकों से शुरूआती पढ़ाई करने वाले ज्यादातर छात्र-छात्राओं में हिंदी और अंग्रेजी का अंतर साफ-साफ देखा जा सकता है. मेरा मानना है कि किसी के लिए भी भाषा अपनी भावनाओं और प्रतिभा को व्यक्त करने का सबसे सशक्त माध्यम होता है, ना कि भाषा किसी के लिए भावनाओं या प्रतिभा को दबाने या कुचलने का कारण बन जाए. मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई में हिंदी और अंग्रेजी के इस अंतर को खत्म करने और शिक्षा को भाषा की गुलामी से आज़ाद कराने की दिशा में ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोशिशों का पहला बड़ा नतीजा है. मध्य प्रदेश में हिंदी भाषा में मेडिकल की पढ़ाई की शुरूआत पर पीएम मोदी ने कहा कि अब लाखों छात्र अपनी भाषा में पढ़ाई कर सकेंगे और उनके लिए कई नए अवसर भी पैदा होंगे. दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी मातृभाषा में शिक्षा के बड़े पक्षधर हैं और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में ये दिखता भी है और इसे अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही अंग्रेजी पर निर्भर शिक्षा व्यवस्था के खात्मे की शुरूआत भी कहा जा सकता है. जिसकी मांग लंबे समय से चली आ रही थी. नई शिक्षा नीति में प्रधानमंत्री मोदी ने हिंदी, तमिल, तेलुगू, मलयालम, गुजराती और बांग्ला समेत अन्य भाषाओं में मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई की सुविधा मुहैया कराने की अपील की थी. संघ प्रमुख मोहन भागवत ने इसी साल विजयदशमी पर्व पर मातृ भाषा में शिक्षा पर जोर देते हुए कहा था कि इसे बढ़ावा देने वाली नीतियां बनाई जानी चाहिए और नई शिक्षा नीति के तहत सरकार इस दिशा में उचित कदम उठा रही है, लेकिन सरकार के साथ ही आमजन को भी इस दिशा में आगे बढ़ना होगा. उन्होंने पूछा कि क्या आम लोग अपने बच्चों को मातृभाषा में पढ़ाना चाहते हैं? या कथित आर्थिक फायदे और करियर की चकाचौंध वाली दौड़ में दौड़ाना चाहते हैं? यहां हमें कुछ आंकड़ों पर ध्यान देने की जरूरत है. UDISE के मुताबिक 2020-21 में देश भर करीब 25 करोड़ छात्र-छात्राओं नें स्कूलों में दाखिला कराया, इनमें से 10.39 करोड़ हिंदी माध्यम के स्कूलों के छात्र-छात्राएं हैं, जबकि 7.55 करोड़ छात्र-छात्राएं अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के स्कूलों में गए. सिर्फ 6.77 करोड़ छात्र-छात्राओं ने अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में दाखिला लिया यानि हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं की तुलना में अंग्रेजी माध्यम से स्कूली पढ़ाई करने वालों की संख्या करीब एक तिहाई बैठती है लेकिन मेडिकल और इंजीनियरिंग का पूरा पाठ्यक्रम या शिक्षण के तौर-तरीके अब तक उन्हीं एक तिहाई छात्र-छात्राओं को ध्यान में रखकर तैयार किया जाता रहा है. हालांकि, हिंदी या अन्य मातृभाषाओं में मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई को लेकर कई सवाल भी उठ रहे हैं. छात्रों के प्रदर्शन, शिक्षा की गुणवत्ता, पाठ्य सामग्रियों की उपलब्धता को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं, तो कई सवाल भाषायी अस्मिता से जोड़कर उठाए जा रहे हैं. तमिलनाडु विधानसभा ने तो एक प्रस्ताव पास कर हिंदी भाषा में पढ़ाई को हिंदी थोपना तक करार दे दिया. लेकिन, यहां एक बुनियादी सवाल है कि क्या मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिंदी या अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में होना सिर्फ उस भाषा की उन्नति है या फिर बदलाव और विकास की पहचान है. विशेषज्ञों का एक तबका इसे आज़ादी के 75 साल बाद अंग्रेजी से आजादी का लक्षण करार दे रहा है. यहां एक बात साफ करना जरूरी है कि हिंदी या मातृभाषा में उच्च शिक्षा फिलहाल अनिवार्य नहीं है बल्कि ये उन छात्रों के लिए वरदान है जो अब तक अंग्रेजी की अनिवार्यता की वजह से कहीं पीछे छूट जाते थे या दाखिला मिल भी जाने पर अंग्रेजी माध्यम के छात्रों के मुकाबले खुद को दोयम दर्जे का समझने की भावना से ग्रसित हो जाते थे. ऐसे कई उदाहरण हमारे आस-पास मिल जाएंगे, जो इंजीनियरिंग या मेडिकल की पढ़ाई बीच में छोड़कर चले आए या जैसे-तैसे कर कोर्स पूरा किया लेकिन करियर में कुछ खास कमाल नहीं पाए. कई मामलों में नौबत आत्महत्या तक पहुंच जाती देखी है हमलोगों ने अगर इन सभी मामलों की तह तक पहुंचने की कोशिश करें तो ज्यादातर मामलों में अंग्रेजी भाषा मूल वजह नजर आती है. ऐसे में अगर छात्रों को हिंदी या उसकी अपनी मातृभाषा में शिक्षा का मौका मिले तो उसका प्रदर्शन यकीनन बेहतर होगा. ऐसे ही छात्रों की बड़ी संख्या को देखते हुए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में पढ़ाई, रिसर्च और स्किल डेवलपमेंट में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए गए हैं. – शिक्षण की भाषा ना सिर्फ पाठ्य-पुस्तकों, शब्दावलियों और व्याकरण पर केंद्रित ना होकर अनुभव के आधार पर सुधारात्मक और बातचीत की क्षमता पर केंद्रित होनी चाहिए. – भाषा का इस्तेमाल बातचीत और पठन-पाठन में ज्यादा से ज्यादा होना चाहिए. – ज्यादा से ज्यादा उच्च शिक्षण संस्थानों और पाठ्यक्रमों में शिक्षण का माध्यम मातृभाषा या स्थानीय भाषाएं होनी चाहिए या दो भाषाओं में होनी चाहिए.  साथ ही गैर-अंग्रेजी भाषाओं में तकनीकी शिक्षा व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए भी कई कदम उठाए गए हैं. – राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत क्षेत्रीय भाषाओं में समझ और पठन-पाठन के सकारात्मक नतीजों को बढ़ाने के लिए ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन ने सत्र 2021-22 से ही तकनीकी शिक्षा की पढ़ाई क्षेत्रीय भाषाओं में शुरू कर दी है. – क्षेत्रीय भाषाओं में कोर्स मटेरियल्स उपलब्ध कराने के लिए AICTE ने तकनीकी पुस्तक लेखन और अनुवाद कमेटी बनाई है, जो 12 भाषाओं में किताबों का अनुवाद करेगी. – 7 अलग-अलग भाषाओं वाले 10 राज्यों के 29 संस्थानों को गैर-अंग्रेजी भाषा में इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू करने के लिए चिह्नित किया गया है. ये संस्थान एक या एक से अधिक पाठ्यक्रम की पढ़ाई हिंदी या अन्य क्षेत्रीय भाषा में शुरू करेंगे. हिंदी या अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में मेडिकल-इंजीनियरिंग की शिक्षा के विरोध में एक तर्क ये भी है कि हिंदी में पढ़ाई के बाद मौजूदा पेशेवराना अंग्रेजीपरक व्यवस्था से छात्र खुद का तालमेल कैसे बिठा पाएंगे? इसके लिए हमें जापान, जर्मनी और फ्रांस जैसे देशों का उदाहरण समझने की जरूरत है, जहां उच्च शिक्षा में अंग्रेजी की बजाय उनकी अपनी मातृभाषा का दबदबा है. जापान में उच्च शिक्षा भी जापानी भाषा में पढ़ाई जाती है, ऐसे ही फ्रांस और जर्मनी उच्च शिक्षा में अंग्रेजी के साथ अपनी मातृभाषा को भी प्रोत्साहित करते हैं. जैसा प्रख्यात साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र ने भी लिखा है– निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय के सूल. ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी| Tags: PM ModiFIRST PUBLISHED : October 20, 2022, 14:41 IST