Opinion: बोर्ड परीक्षा या प्रवेश परीक्षा कितनी परीक्षाओं का दबाव झेलें बच्चे
Opinion: बोर्ड परीक्षा या प्रवेश परीक्षा कितनी परीक्षाओं का दबाव झेलें बच्चे
NEET परीक्षा में दाखिले को लेकर चल रहे विवाद के बीच याद आ जाता है कि इससे पहले इन्ही में से ज्यादातर बच्चे बोर्ड परीक्षाओं को लेकर परेशान थे. उसकी तैयारी में जी-जान से लगे थे. पैरेंट्स भी कहते सुने जाते थे कि बच्चे के बोर्ड के इम्तिहान है, लिहाजा कुछ और सोच या कर नहीं सकते. इस पूरे दवाब को देख कर लगता है कि बोर्ड परीक्षाओं के औचित्य पर विचार करने का समय आ चुका है.
हाइलाइट्स बोर्ड परीक्षाओं के औचित्य पर बड़ी बहस जरुरी बोर्ड नंबरों का हासिल क्या हो रहा किसी भी कॉलेज में 12वीं के नंबर पर दाखिला नहीं
बोर्ड परीक्षाओं के बाद एनटीए की प्रवेश परीक्षा में सफल होने का दबाव. परीक्षा में हुए विवाद का असर. आखिर कितना दिमागी प्रेशर झेले बच्चे. अब वक्त आ गया है जब सरकार छात्रों के करियर बनाने की खातिर एक साथ सारी बातों पर गंभीरता से विचार करें और फैसला ले. तकरीबन देश भर में दसवीं और बारहवीं में बोर्ड की परीक्षाएं कराई जाती हैं. इसके लिए बच्चे दूसरे कॉलेजों में जाकर इंतहान देते हैं. इसके लिए वे बहुत सारी तैयारी भी करते हैं. उन पर काफी दबाव भी होता है. बोर्ड के नाम पर बच्चे और पैरेंट दोनों जुटे रहते हैं, नंबर की रेस में. हांसिल क्या होता है? कुछ थोड़े से बच्चे राज्यों की मेरिट में आ जाते हैं. पैरेंट उनके नंबर सोशल मीडिया पर डाल कर खुश हो लेते हैं. इंजीनियरिंग, मेडिकल या फिर बीए बीएससी में दाखिले के लिए उन्हें फिर जंग लड़नी होती है. फौर तौर पर हम मेडिकल कॉलेजों के दाखिले के लिेए होने वाली NEET या नीट परीक्षा के विवाद को देख ही रहे हैं. नीट के अलावा इंजीनियरिंग और केंद्रीय विश्वविद्यालयों के अंडर ग्रैजुएट कोर्सेज में दाखिला एनटीए के इंतहानों से ही होते हैं.
बोर्ड परीक्षाओं का हासिल क्या
अब एक अहम सवाल उठता है. आखिर में जब हर जगह प्रवेश परीक्षा दे कर ही दाखिला मिलना है तो फिर बोर्ड परीक्षा की कवायद का क्या मकसद है. यहां ये साफ करना जरूरी है कि बोर्ड परीक्षाएं खत्म करने का अर्थ बोर्ड को भंग या बंद कर देना नहीं है. परीक्षाओं के तरीके पर संजीदगी से विचार किया जाना चाहिए. आखिरकार किसी विद्यालय के छात्रों को दूसरे विद्यालय में भेज कर वहां परीक्षा कराने की कितनी उपयोगिता रह गई है. इस पूरी प्रक्रिया में सरकारी पैसा तो खर्च होता ही है. बच्चों को भी असुविधा होती है. इस इंतहान में फिर पैरेंट्स को भी शामिल होना पड़ता है. दूसरी जगह दसवीं बारहवी के बच्चों को ले जाना ले आना उसे ही करना होता है.
शिक्षाविद जे एस राजपूत की राय
बोर्ड परीक्षाओं के औचित्य के सवाल पर जाने माने शिक्षाविद और एनसीइआरटी के निदेशक रह चुके जे एस राजपूत कहते हैं कि इस पर विचार करने की जरूरत है. वे कहते हैं – ” एक दिन में बोर्ड को खत्म नहीं किया जा सकता, लेकिन इस पर एक राष्ट्रीय बहस की जरूरत है. विकल्प ढूंढने पड़ेगे. अपने अध्यापकों पर भरोसे का भी विचार किया जाना चाहिए. सबसे ज्यादा जरूरी है कि इस पूरी बहस में सिर्फ एजुकेशन से जुड़े लोग ही न हो. समाज का हर तबका इसमें शामिल किया जाय.”
बिना परीक्षा के कहीं दाखिला नहीं
बोर्ड परीक्षा में मिलने वाले नंबरों का सिर्फ तभी मतलब है जब कोई बच्चा सबसे ज्यादा नंबर हासिल करने वालों में शामिल हो. कुछ ऐसे कॉलेज हैं जो राज्य का बोर्ड टॉप करने पर सीधे दाखिले की पेशकश करते हैं. ये संख्या परीक्षा देने वाले कुल छात्र-छात्राओं की संख्या में कुछ भी नहीं होती. कहा जा सकता है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था में ही काफी पहले से ये सब शामिल है. लेकिन यहां याद करने की जरूरत है कि बीते दौर में सत्तर के आधे दशक तक इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिला बारहवीं में मिले नंबरों के आधार पर होती रही. मेडिकल के लिए भी इतनी बड़ी प्रतियोगिता नहीं थी. संख्या कम होने के कारण ठीक ठाक पढ़ने वाले छात्रों को मेडिकल में भी दाखिला मिल ही जाता था. अंडरग्रैजुएट यानी बीए, बीएससी और बी कॉम कराने वाले कॉलेजों में अभी कुछ समय पहले तक बारहवीं के नंबर के आधार पर दाखिला मिल जाता रहा. दो या तीन साल पहले ही एनटीए का गठन कर इसे केंद्रीय विश्वविद्यालयों और उनके कॉलेजों में दाखिले का सेंट्रल इंतहान कराने का जिम्मा दिया गया.
नकल का असाध्य रोग
इसके अलावा बोर्ड परीक्षाओं में नकल जैसी असाध्य समस्या भी है. ऐसा लगता है कि अगर इसका महिमामंडन खत्म कर देने पर ये समस्या खुद ब खुद खत्म हो जाएगी. बहुत सारे स्कूल देहाती इलाकों में इसी बात के लिए चल रहे हैं कि बोर्ड परीक्षा “पास” करा देंगे. ये स्थिति भी खत्म हो जानी ही चाहिए. वैसे भी जिस तरह से सीबीएसई ने अपने पाठ्यक्रम को पोस्टकोरोना घटाया है, दूसरे बोर्ड भी उसी तरह के पाठ्यक्रम के बारे में सोच सकते हैं. फिर जो कठिनाई परीक्षा पास करने में होती थी उससे भी निजात मिल सकता है.
बोर्ड के जिम्मे और काम दिए जा सकते हैं
यहां ये भी ध्यान रखने की जरूरत है कि बोर्ड को भंग कर देना खत्म कर देना इसका विकल्प नहीं है. बोर्ड का होना जरूरी है. पाठ्यक्रम तय करने पढ़ाई के तौर तरीकों की देख-रेख करने जैसे काम उसके जिम्मे होना चाहिए. किसी छात्र को लग रहा हो कि उसके स्कूल ने उसके साथ अन्याय किया है तो इस पर निगरानी के लिए बोर्ड का होना जरुरी है. खास तौर से प्रैक्टिकल परीक्षाओं में दिए जाने वाले नंबरों को लेकर. इन परीक्षाओं में अगर बाहरी परीक्षक भेजने की जिम्मेदारी भी उसे दी जा सकती है. रह गई बात आगे की कक्षाओं में प्रवेश दिए जाने की तो उसके लिए एनटीए परीक्षाएं ले ही रहा है.
Tags: Board exams, NEET, Neet exam, NEET TopperFIRST PUBLISHED : June 12, 2024, 12:58 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed