यमुना के किनारे है 138 साल पुराना म्यूजियम यहां मौजूद हैं 15 हजार किताबें
यमुना के किनारे है 138 साल पुराना म्यूजियम यहां मौजूद हैं 15 हजार किताबें
Museum in Etawah: इटावा में यमुना नदी के किनारे एक 138 साल पुराना संग्राहलय बना हुआ है. इसकी स्थापना खटखटा बाबा ने की थी. यह संग्रहालय इस समय खंजर बनता जा रहा है. इस संग्रहालय की स्थापना भारतीय भाषाओं की 15 हजार से अधिक पुस्तकें हैं.
इटावा: सिद्ध पुरुष खटखटा बाबा के निर्देश पर यूपी के इटावा में यमुना नदी के किनारे एक संग्रहालय स्थापित किया गया था. इस संग्रहालय में हजारों पांडुलिपियों, प्राचीन साहित्य के दुर्लभ ग्रंथों, ताड़ पत्रों एवं भोज पत्रों पर हस्तलिखित ग्रंथों आदि को सहेज कर रखा गया था कि यहां आने वाली पीढ़ियों को देश की गौरवशाली विरासत और प्राचीन वांग्मय की झलक मिल सके, लेकिन उचित रख रखाव के अभाव में देश के इस अनूठे संग्रहालय में सुरक्षित रखी गई राष्ट्रीय थाती अब अपना अस्तित्व खोती जा रही है.
15 हजार से अधिक हैं पुस्तकें
संग्रहालय में संस्कृति तथा अन्य भारतीय भाषाओं की 15 हजार से भी ज्यादा पुस्तके हैं. इन अमूल ग्रंथों को कपड़ों में बांधकर 4 कमरों की 10 आलमारियों के अंदर रखा गया है. यहां की धूपघड़ी सूर्योदय से सूर्यास्त तक प्रत्येक घंटे का समय बताती थी, लेकिन अब वह अपना असली स्वरूप खो चुकी हैं. यह घड़ी कलाबद्ध 5005 मेष 16 वर्ष की है. कलाबद्ध की शुरुआत कलयुग के प्रारम्भ से मानी जाती है. इसलिए कलाबद्ध का प्रयोग बंद हो चुका है.
पानी में न डूबने वाला पत्थर है धरोहर
वर्ष 1965 में इस संग्रहालय के प्रभारी महिपाल सिंह रामेश्वरम की यात्रा पर गए थे, जहां से वह पानी में न डूबने वाला रामेश्वरम का पत्थर लाए थे. यह पत्थर अब संग्रहालय की धरोहर है. धूप घड़ी अब टूट चुकी है. संग्रहालय में वेद, पुराण, उपनिषदों एवं अन्य धार्मिक ग्रंथों के अतिरिक्त ताड़ पत्र तथा भोज पत्र पर हस्तलिखित पुस्तके हैं.
आध्यात्मिक विषयों की पुस्तकें हैं मौजूद
उसमें संस्कृत, हिंदी, गुजराती, पंजाबी, मराठी, तमिल, तेलुगू, मलयालम, उड़िया, कन्नड़, असमिया, डोगरी, उर्दू, बंगला, राजस्थानी व मणिपुरी आदि भाषाओं के पुस्तकों के अलावा सामवेद, यजुर्वेद, ऋजुवेद, राजनीति शास्त्र, समाज शास्त्र, ज्योतिष शास्त्र, तंत्र-मंत्र, खगोल विज्ञान, वेदान्त एवं आध्यात्मिक विषयों की पुस्तकें हैं.
बाबा के शिष्य थे डिप्टी कमिश्नर
इस संस्कृत विद्यापीठ की स्थापना वर्ष 1866 सिद्ध पुरुष शिव प्रसाद खटखटा बाबा के आशीर्वाद से उनके शिष्य श्री ब्रह्मनाथ जी ने की थी. ब्रह्मनाथ इटावा में डिप्टी कमिश्नर थे, जो बाबा से प्रभावित होकर उनकी सेवा तथा विद्यापीठ की देखरेख में समर्पित हो गए.
डिप्टी कमिश्नर बने थे उनके शिष्य
उन्होंने सरकारी नौकरी से त्याग पत्र तक दे दिया. वह खटखटा बाबा के एकमात्र ऐसे शिष्यों में थे, जो अपने गुरु जैसी सिद्धियां तथा आचरण हासिल कर ‘छोटे खटखटा बाबा’ के नाम से पुकारे जाते थे. वह विद्यापीठ में पुस्तकें लाने की रुचि रखते थे, जिसके फलस्वरूप विद्यापीठ में पुस्तकों की संख्या में वृद्धि होती रही.
जानें संग्रहालय की खासियत
श्री ब्रह्मनाथ ने संस्कृत विद्यापीठ तथा संग्रहालय की स्थापना से लेकर 1925 तक इसकी देखभाल की. इसके साथ ही लाहार स्टेट जो आजकल मध्य प्रदेश में है. वह प्रयाग सिंह राजावत करने लगे. उन्होंने साल 1966 तक अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई. इसके पश्चात इनके पुत्र महिपाल सिंह ने देखभाल की कमान अपने हाथ में ले ली.
Tags: Etawa news, Local18FIRST PUBLISHED : August 26, 2024, 14:54 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed