जब PM रहते इंदिरा को स्पीकर के सामने खेद प्रकट करना पड़ गया जानें वह किस्सा
जब PM रहते इंदिरा को स्पीकर के सामने खेद प्रकट करना पड़ गया जानें वह किस्सा
संसद और विधानमंडल के सदनों में प्रतिपक्ष का बात-बेबात हंगामा अब बात है. सदन के प्रमुख बतौर स्पीकर या सभापति ने कोई सख्ती की तो इसे दलीय दुर्भावना के रूप में प्रतिपक्षी नेता देखते हैं. सदन की मर्यादा तार-तार हो रही है. ऐसे में आजादी के बद नौ साल तक लोकसभा के स्पीकर रहे सरदार हुकुम सिंह की बरबस याद आती है. सदन में उनकी सख्ती और अनुशासन का आलम यह था कि प्रधानमंत्री रहते इंदिरा गांधी को भी एक बार खेद प्रकट करने की नौबत आ गई थी.
सत्ता पक्ष पर प्रतिपक्ष का हमलावर होना कोई नई बात नहीं है. लोकतंत्र में इसकी पूरी छूट भी है. पर, विधायी सदनों में असंयमित अंदाज में विपक्ष का हु़ड़दंग न तो संसदीय परंपरा में है और न इसकी वैधानिक व्यवस्था ही संविधान में दर्ज है. अलबत्ता ऐसी स्थिति से निपटने का इंतजाम जरूर विधायी सदनों के कार्य संचालन नियमावली में दर्ज है. सदन में हर सदस्य के आचरण के लिए प्रोटोकॉल बना हुआ है. सदन के प्रमुख स्पीकर या सभापति को यह अधिकार है कि वे जिस सदस्य को बोलने का मौका दे, वह अपनी बात रखे. बीच में टोकाटोकी या हंगामा करने की छूट तो कत्तई नहीं है. आजादी के बाद सत्तर के दशक तक तो इस मर्यादा का पालन अवश्य हुआ, लेकिन उसके बाद स्थितियां बदलती गईं. स्पीकर की इच्छा के विरुद्ध बोलना या आचरण करना विपक्षी दलों का शगल बन गया. विपक्ष ने अपनी भूमिका सत्ता पक्ष के हर काम या फैसले पर बाज दफा बेवजह सवाल उठाने और हंगामे तक सीमित कर ली है. बिहार विधानसभा में हंगामे की स्थिति तीन दिनों से बनी हुई है. लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष इसी अंदाज में दिख रहा है. महत्वपूर्ण विधायी कार्यों से विपक्ष का कोई सरोकार नहीं दिखता. ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. सच कहें तो विधायी सदनों में विपक्ष की ऐसी हरकतें अब सामान्य बात हो गई हैं. कार्यवाही का सीधा प्रसारण होता है. इससे वैसी बातें भी लोगों तक पहुंच जाती हैं, जिन्हें स्पीकर या सभापति सदन की कार्यवाही से हटा देते हैं.
हंगामा को हक समझ बैठे हैं विपक्षी
आश्चर्य की बात यह है कि जो दल या गठबंधन सत्ता में रहता है, उसे विपक्ष के हंगामे रास नहीं आते. लेकिन जब वही दल या गठबंधन विपक्ष में बैठता है तो वह इसे अपना धर्म मान लेता है. वर्ष 2011 में भाजपा विपक्ष में थी. तब भी संसद के दोनों सदनों में हंगामा आम बात थी. सुषमा स्वराज लोकसभा में हंगामे की अगुआ बनतीं तो राज्यसभा में अरुण जेटली मोर्चा संभालते. अरुण जेटली ने रांची में 30 जनवरी 2011 को इसे उचित ठहराते हुए कहा भी था कि संसद की कार्यवाही में बाधा पहुंचाना लोकतंत्र के पक्ष में है. संसदीय बाधा को अलोकतांत्रिक बताना उचित नहीं है. अब कांग्रेस और उसके सहयोगी दल संसद में वही आचरण कर रहे हैं तो किसे दोष दिया जाए और किसे क्लीन चिट!
असेंबली से संसद तक मचा हंगामा
बिहार विधानसभा में पिछले तीन दिनों से हंगामे की स्थिति है. बिहार को विशेष दर्जा देने से केंद्र के इनकार के बाद इंडिया ब्लॉक की पार्टियों ने हंगामा शुरू किया. अब यह बजट पर अंटका है. गुरुवार को तो हालात ऐसे बिगड़ गए कि विधानमंडल के दोनों सदनों की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी. विधानसभा में विपक्षी विधायकों ने वेल में आकर टेबल पलटने शुरू कर दिए थे. इससे उत्पन्न स्थिति को देखते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उठ कर चले गए. संसद में भी यही हो रहा है. आम बजट को लेकर विपक्ष भारी गुस्से में है. पहले दिन से ही विपक्ष आक्रामक है. बजट घोषणा के अगले दिन विपक्ष ने सरकार पर राज्यों के साथ पक्षपात का आरोप लगाते हुए संसद के बाहर प्रदर्शन किया तो भीतर हंगामा खड़ा किया. स्पीकर ओम बिरला लगातार हंगामा करने वालों को चेतावनी देते रहे. विपक्ष की सेहत पर इसका कोई असर होता नहीं दिख रहा है.
जब पीएम को खेद प्रकट करना पड़ा
विधायी सदनों के हालात देख कर लगातार नौ साल तक लोकसभा के स्पीकर रहे सरदार हुकुम सिंह की भूमिका बरबस याद आती है. अकाली दल के कांग्रेस में विलय के बाद हुकुम सिंह कांग्रेस में आए थे. उन्हें पंडित जवाहर लाल नेहरू का विश्वसनीय व्यक्ति माना जाता था. अकाली दल बाद में अलग हो गया, लेकिन हुकुम सिंह कांग्रेस में ही बने रहे. बहरहाल, हुकुम सिंह के स्पीकर रहते लोकसभा में 24 मार्च 1966 को एक ऐसी घटना हुई, जिसे लोग भूल चुके होंगे. शायद संसद के दस्तावेजों में यह घटना दर्ज होगी. वैसे उन दिनों अखबारों में यह खबर जरूर छपी थी. हुआ यह था कि उस दिन जब स्पीकर खड़ा होकर लोकसभा में कुछ बोल रहे थे, इसकी परवाह किए बगैर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अचानक सदन से बाहर निकल गईं. नियम यह कहता है कि स्पीकर जब बोल रहे हों तो उस दौरान कोई सदस्य उठ कर बाहर नहीं जा सकता है. पर, इंदिरा गांधी ने ऐसा किया. स्पीकर ने जब नियमों का हवाला देकर उन्हें इसके लिए फटकारा तो उन्होंने इस बारे में अपनी अज्ञानता जाहिर की. इस मामूली अवमानना के लिए इंदिरा गांधी को स्पीकर के सामने खेद प्रकट करना पड़ा था. तब प्रधानमंत्री को भी एक आम सदस्य की तरह संसदीय परंपराओं-नियमों का पालन करना पड़ता था. हाल के वर्षों में प्रतिपक्षी नेताओं ने नियमों और परंपराओं की सबसे अधिक धज्जियां उड़ाई हैं. स्पीकर के बार-बार आग्रह के बावजूद प्रतिपक्षी सांसदों का आचरण कैसा है, यह कार्यवाही का लाइव प्रसारण देख कर ही स्पष्ट हो जाता है.
याद आए स्पीकर सरदार हुकुम सिंह
अब जरा सरदार हुकुम सिंह के बारे में जान लेते हैं. स्पीकर के रूप में हुकुम सिंह ने हमेशा सदन की मर्यादा और अनुशासन बनाए रखने का प्रयास किया. जब तक वे स्पीकर रहे, विधायिका का आदर्श बरकरार रखा. दलीय दुर्भावना से दूर रह कर जिन कुछ स्पीकर की चर्चा होती है, उनमें हुकुम सिंह का नाम सबसे ऊपर है. उनके स्पीकर रहते अगर कोई सदस्य बिन बुलाए बोलता तो वे उसकी ओर ध्यान ही नहीं देते. सख्ती ऐसी कि इसके बावजूद कोई बोलना जारी रखता तो भविष्य में उसे बोलने का मौका ही नहीं देते. स्पीकर एक बार व्यवस्था देने के लिए खड़े हो जाते तो उन्हें टोकने या व्यवधान पैदा करने का साहस किसी में नहीं होता. आज की स्थिति देखकर संसदीय मर्यादा के क्षरण का अनुमान लगाया जा सकता है. हुकुम सिंह के वक्त सदन की कार्यवाही में विघ्न पैदा करने वाले सदस्य को इसके अंजाम का पता होता था. अगले सत्र में स्पीकर उसकी अनदेखी कर देते. हालांकि, तब के सदस्य भी आज की तरह के आचरण से परहेज ही करते. इंदिरा गांधी का खेद प्रकट करना इसका ज्वलंत उदाहरण है.
करंजिया को खड़े रहने की सजा दी
सरदार हुकुम सिंह की स्पीकर रहते सख्ती का एक और उदाहरण है. एक बार उस वक्त के बहु प्रसारित साप्ताहिक ‘ब्लिट्ज’ में कोई खबर छप गई थी. ‘ब्लिट्ज’ के मालिक और संपादक आरके करंजिया थे. उन पर सदन के विशेषाधिकार हनन का हनन का मामला था. हुकुम सिंह ने उन्हें लोकसभा में हाजिर होने का नोटिस दिया. करंजिया पेशी के लिए आए तो देखा कि उनके लिए सदन में एक स्पीकर के आसन के सामने कठघरा बनाया गया है. करंजिया को उस कठघरे में खड़ा कर दिया गया. स्पीकर ने उन पर लगे आरोप पढ़ कर सुनाए. करंजिया ने उन आरोपों को स्वीकार भी किया. उन्हें स्पीकर ने सजा सुनाई. सत्र की समाप्ति तक उन्हें कठघरे में ही खड़ा रहने की सजा थी.
Tags: Bihar vidhan sabha, Budget session, Indira Gandhi, Parliament sessionFIRST PUBLISHED : July 26, 2024, 05:49 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed