क्या है IPM तकनीक जिसमें कम लागत में होता है दोगुना उत्पादन और बंपर मुनाफा

फसलों को कीड़े या रोग से बचाने के लिए किसान कीटनाशक डालते हैं, जो तात्कालिक लाभ तो पहुंचाती हैं, लेकिन खेत को नुकसान भी पहुंचाती हैं. लेकिन IPM तकनीक एकदम अलग है. इससे किसान बिना पेस्टिसाइड डाले खेती कर सकते हैं और उन्हें मुनाफा भी ज्यादा होता है.

क्या है IPM तकनीक जिसमें कम लागत में होता है दोगुना उत्पादन और बंपर मुनाफा
संजय यादव/बाराबंकी. किसानों की आय में इजाफा हो, उनकी आमदनी बढ़े, इसके लिए खेती में अब नई तकनीक और विधियों के इस्तेमाल पर जोर दिया जा रहा है. किसान भी नगदी फसलों की खेती का रुख कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के किसान इन दिनों करेले की खेती में अपना कमाल दिखा रहे हैं. इस खेती से वे न सिर्फ अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं, बल्कि पैदावार भी ज्यादा हो रही है. दरअसल, ये किसान करेले की खेती के खास तरीका अपना रहे हैं, जो कम लागत में ही ज्यादा मुनाफा देती है. खेती की यह नई तकनीक इंट्रीगेटिट पेस्ट मैनेजमेंट यानी आईपीएम (IPM) कहलाती है. यह फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को कंट्रोल करने की सस्ती विधि है. फसल में कीड़े या बीमारी से बचाने के लिए किसान कीटनाशक का प्रयोग करते हैं. खेत से खरपतवार हटाने की दवा डालते हैं. ये रासायनिक दवाएं उन्हें तात्कालिक लाभ तो पहुंचाती हैं, लेकिन बड़ा नुकसान भी कराती है. ये दवाएं न सिर्फ महंगी होती हैं, बल्कि किसानों की सेहत, फसल की गुणवत्ता और खेत की मिट्टी को खराब कर देती हैं. किसान बिना कीटनाशक भी खेती कर सकते हैं. इस तरीके को एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कहते हैं. आईपीएम तकनीक में कीट नियंत्रण करने के लिए पीले, नीले, लाल और सफेद स्टिकी ट्रैप, लाइट ट्रैप व स्पाइन बुश का प्रयोग किया जाता है. इस विधि में हानिकारक रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग नहीं होता . आईपीएम विधि से करेले की खेती बाराबंकी के किसान श्रीकांत ने लोकल18 को बताया कि पहले वे धान, गेहूं आदि की खेती करते थे. इसमें कोई खास फायदा नहीं हो रहा था. फिर आईपीएम विधि से एक बीघे में करेले की खेती की. अच्छा मुनाफा मिला. आज करीब एक एकड़ में इसी विधि से करेले की खेती कर रहे हैं. एक एकड़ में करीब 60 हजार रुपए की लागत आती है, जबकि मुनाफा करीब दो से ढाई लाख रुपए का हो जाता है. श्रीकांत ने बताया कि फसलों को नष्ट करने वाले कीटों पर नियंत्रण के लिए पीले, नीले, लाल और सफेद स्टिकी ट्रैप, लाइट ट्रैप और स्पाइन बुश खेतों में लगा देते हैं. खतरनाक कीड़े इस स्टिक पर ट्रैप हो जाते हैं. इससे हमारी फसलों को नुकसान नहीं पहुंच पाता है. इसको लगाने से कीटनाशक दवाइयां भी नहीं डालनी पड़ती है, जिससे सब्जियां शुद्ध और अच्छी पैदा होती हैं. ऐसे करें करेले की खेती की तैयारी किसान श्रीकांत ने लोकल18 को बताया कि करेले की खेती करना आसान है. खेत की जुताई के बाद बेड बनाते हैं. फिर पन्नी बिछाकर इसमें एक से डेढ़ फीट पर छेद करके करेले के बीज को लगा दिया जाता है. जब पौधा थोड़ा बड़ा होने लगता है तो सिंचाई की जाती है. उसके बाद खेत में बांस का स्ट्रक्चर बनाकर करेले की बेल को डोरी के सहारे बांध दिया जाता है. इससे पौधा स्ट्रक्चर पर फैल जाता है और फसल तैयार होने के बाद तोड़ने में भी आसानी होती है. पौधा लगाने के महज ढाई महीने बाद फसल निकलना शुरू हो जाती है. यह फसल तीन महीने तक चलती है, जिसे हर दिन बेचा जा सकता है. कितनी ही कहानियां हैं हमारे आसपास, हमारे गांव में-हमारे शहर में. किसी की सफलता की कहानी, किसी के गिरने और उसके उठने की कहानी, किसान की कहानी, शहर की परंपरा या किसी मंदिर की कहानी, रोजगार देने वाले की कहानी, किसी का सहारा बनने वाले की कहानी…इन कहानियों को दुनिया के सामने लाना, यही तो है लोकल-18. इसलिए आप भी हमसे जुड़ें. हमें बताएं अपने आसपास की कहानी. हमें वॉट्सऐप करें हमारे नंबर पर, 08700866366. Tags: Agriculture, Barabanki News, Local18, Uttar Pradesh News HindiFIRST PUBLISHED : May 3, 2024, 19:35 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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