2500 साल पहले शुरू हुआ था टैटू बनवाने का चलनशोध में सामने आए कई रोचक तथ्य
2500 साल पहले शुरू हुआ था टैटू बनवाने का चलनशोध में सामने आए कई रोचक तथ्य
गौरतलब है कि टैटू बनवाने की यह परंपरा 2000-2500 साल से ज्यादा पुरानी है. बीएचयू के एक शोध में इसको लेकर कई चौकानें वाले तथ्य सामने आए हैं . बीएचयू प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग की टीम ने गुदना (टैटू) गुदवाने की परंपरा पर बड़ा शोध किया है.
वाराणसी: शरीर पर टैटू बनवाने का चलन बहुत पुराना है. हालांकि इसकी शुरुआत कब हुई ये खोज का विषय है. टैटू बनवाने का चलन धीरे-धीरे फैशन बनकर दुनियाभर पर छाने लगा. खास तौर पर पश्चिमी देशों में इसे आवश्यक फैशन का एक हिस्सा माना जाता है, जिसमें लोग शरीर के अधिकतर हिस्से को टैटू के इंक से रंगा लेते हैं. भारत में भी पिछले कुछ वर्षों में यह फैशन तेजी से बढ़ने लगा है. पर क्या आप जानते हैं टैटू बनवाने का चलन भारत में कब शुरू हुआ .
गौरतलब है कि टैटू बनवाने की यह परंपरा 2000-2500 साल से ज्यादा पुरानी है. बीएचयू के एक शोध में इसको लेकर कई चौकानें वाले तथ्य सामने आए हैं . बीएचयू प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग की टीम ने गुदना (टैटू) गुदवाने की परंपरा पर बड़ा शोध किया है.
गुदना से किया जाता था ये टेस्ट
इस शोध के मुताबिक, प्राचीन समय में भी लड़कियां गुदना गुदवाती थी. परंपरा के अनुसार जो लड़की गुदना का दर्द नहीं सह पाती थी वो समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है. उस समय की ऐसी धारणा थी कि जो गुदना का दर्द नहीं सह सकती वो विवाह के बाद प्रसव के दर्द कैसे सकेगी. इसलिए जो लड़की गुदना नहीं गुदवाती थी उसकी शादी नहीं होती थी.
इन क्षेत्रों में किया गया रिसर्च
बीएचयू की रिसर्च स्कॉलर प्रीति रावत ने बताया कि सोनभद्र, मिर्जापुर, बिहार समेत पूर्वांचल के कई जिलोक आदिवासी क्षेत्र से इसके लिए दुर्लभ तथ्य जुटाए गए हैं. प्रीति ने बताया कि सोनभद्र जिले के पंचमुखी क्षेत्र से 5 किलोमीटर के दायरे में 2000 हजार साल पुराने शैलचित्रों से इसका खुलासा होता है कि गुदना गुदवाने की परंपरा करीब 2000- 2500 साल पुरानी है.
गुदने से होती कि कम्युनिटी की पहचान
रिसर्च स्कॉलर प्रीति रावत ने बताया कि इसी सर्वे के दौरान यह भी तथ्य सामने आया कि समाज में अलग-अलग कम्युनिटी के लोगो की पहचान भी उनके गुदने से होती थी. बिहार के सासाराम में ताराचंडी मंदिर के करीब गोंड समाज की महिलाओं के हाथों में एक जैसा गुदना दिखा. जबकि वैश्य समाज की महिलाओं के हाथ मे जालीनुना गुदना नजर आया.
Tags: Local18, Uttar Pradesh News Hindi, Varanasi newsFIRST PUBLISHED : June 1, 2024, 16:32 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed