धर्मवीर भारती की कहानी ‘बंद गली का आखिरी मकान’ दो शैलियों में अनूठी प्रस्तुति
धर्मवीर भारती की कहानी ‘बंद गली का आखिरी मकान’ दो शैलियों में अनूठी प्रस्तुति
प्रसिद्ध लेखक धर्मवीर भारती की कहानी ‘बंद गली का आखिरी मकान’ अपने समय की बेहद चर्चित कहानी है. इस कहानी का राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल द्वारा ‘कहानी का रंगमंच’ की शैली में प्रस्तुत किया गया. इसका निर्देशन किया प्रसिद्ध रंगनिर्देशक देवेन्द्र राज अंकुर ने. कहानी को एक ही समय में दो अलग-अलग अंदाज में प्रस्तुत किया गया.
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय-एनएसडी के पूर्व निर्देशक देवेंद्र राज अंकुर ने हिंदी रंगमंच के इतिहास में एक और नया प्रयोग किया है. पिछले दिनों उन्होंने मन्नू भंडारी की 7 कहानियों और उनके उपन्यास ‘आपका बंटी’ के कुछ अंशों को मिलाकर एक नाटक का मंचन किया था जो हिंदी रंगमंच में एक अभिनव प्रयोग था. इस बार उन्होंने एक नाटक को दो विभिन्न शैलियों में प्रस्तुत कर एक और नया प्रयोग किया जिसे दर्शकों ने खूब सराहा.
आमतौर पर एक नाटक को कई निर्देशक विभिन्न शैलियों में प्रस्तुत करते रहे हैं. ‘अंधायुग’, ‘आधे अधूरे’, ‘तुगलक’ जैसे नाटकों के कई मंचन अलग-अलग निर्देशकों ने किए और उनकी प्रस्तुतियां भिन्न रहीं पर देवेंद्र राज अंकुर ने धर्मवीर भारती की 1969 में लिखी गयी लंबी कहानी ‘बन्द गली का आखिरी मकान’ को दो शैलियों में एक साथ मंचित कर अनूठा प्रयोग किया. एक मंचन पारंपरिक शैली में जबकि दूसरी आधुनिक शैली में, जिसमें नवाचार देखने को मिला. दोनों मंचन ‘कहानी का रंगमंच विधा’ के तहत हुआ. गौरतलब है कि देवेंद्र राज अंकुर ने ‘कहानी का रंगमंच’ नामक एक नई विधा को विकसित किया है.
एनएसडी रंगमंडल की ओर से खेले गए दोनों नाटकों में से एक का मंचन ‘सम्मुख’ में हुआ जबकि दूसरे का मंचन ‘अभिमंच’ में हुआ. दोनों नाटक एक ही समय में दो सभागारों में अलग-अलग शैलियों में खेले गए.
किसी को ‘सम्मुख’ का नाटक पसंद आया तो किसी को ‘अभिमंच’ वाला. किसी को दोनों नाटक पसंद आए. निर्देशक देवेंद्र राज अंकुर से जब यह पूछा गया कि आप इन दोनों प्रस्तुतियों में से किस से अधिक संतुष्ट रहे, उन्होंने कहा- “मुझे तो दोनों प्रस्तुतियों से संतोष हुआ. आखिर ये मेरी दो संतानें हैं. मैं इनकी तुलना नहीं कर सकता. यह संभव है कि किसी दर्शक को पहला पसंद आए तो किसी को दूसरा. दोनों नाटकों का स्क्रिप्ट एक ही है. बस शैली भिन्न है. कहांनी में थोड़ा बहुत एडिटिंग मैंने किया है. 1996 में जब पहली बार किया तो उसमें मध्यांतर था. पर दोनों ‘कहानी का रंगमंच’ ही है.”
एनएसडी रंगमंडल के प्रमुख राजेंश सिंह ने बताया कि ‘बन्द गली का आखिरी मकान’ नाटक 28 साल बाद हो रहा है. जब पहली बार इसे देवेंद्र राज अंकुर ने मंचित किया था तो उसे धर्मवीर भारती ने भी देखा था और उन्हें पसंद आया था. भारती जी अपनी प्रतिक्रिया भी रजिस्टर में दर्ज की थी जिसे हमने ब्रोशर में छापा है. 28 साल बाद नाटक की शैली, प्रस्तुति, अभिनय आदि में भी बदलाव हुए हैं जिन्हें इसमें देखा भी जा सकता है. जाहिर है इस नाटक को अब इस परिप्रेक्ष्य में ही देखा जाना चाहिए क्योंकि इन तीन दशकों में दर्शकों की रुचियां भी बदली होंगी.
बन्द गली का आखिरी मकान
‘बन्द गली का आखिरी मकान’ की कहानी इलाहाबाद के एक कस्बाई निम्न मध्ययवर्गीय वकील की कहानी है जो अपनी बहन बिटौनी के पालन-पोषण और विवाह के कारण खुद अविवाहित रह जाता है और बिरजा जैसी आश्रिता को पत्नी की तरह घर में रखता है. यह केवल मुंशी जी की कहानी नहीं बल्कि बिरजा की भी कहानी है. यह एक ‘लिव इन रिलेशन’ की भी कहानी है. दरअसल एक परिवार के विघटन और मूल्यों की टकराहट की भी कहानी है. धर्मपरायण मुंशी जी के अंतर्विरोधों की कहानी है तो बिरजा के रूप में एक स्त्री के साथ दुर्व्यहार, उपेक्षा, अपमान, अत्याचार और शोषण की कहानी है.
एनएसडी रंगमंडल द्वारा दोनों प्रस्तुतियों का दर्शकों पर असर भिन्न रहा. सम्मुख में देवेंद्र राज अंकुर ने ब्लॉक्स के जरिये नाटक में जो गतिशीलता उत्पन्न की है वह जबर्दस्त है. कल्पना कीजिये अगर ये ब्लॉक्स नहीं होते तो क्या नाटक इतना डायनामिक और जीवंत होता.
दोनों प्रस्तुतियों का अलग-अलग असर
‘अभिमंच’ की प्रस्तुति में बीच-बीच में नाटक शिथिल भी होता है उसमें नाटकीय तनाव पूरी तरह बरकरार नहीं रहता जबकि ‘सम्मुख’ में यह तनाव शुरू से अंत तक है. ‘अभिमंच’ के मंच पर साज-सज्जा है तो ‘सम्मुख’ में वह सज्जा नहीं है. अभिमंच में मुंशी जी का अभिनय एक ही अभिनेता करता है, जबकि ‘सम्मुख’ में ऐसा नहीं है. हर पात्र कहानी कहते हैं वे सूत्रधार भी हैं औक पात्र भी बदलते रहते हैं. एक अभिनेता दूसरे पात्र में बदल जाता है. इसमें एक आवाजाही है जो मंचन को गतिशील बनाती है. इसमें ब्लॉक्स और साड़ी का सुंदर प्रतीकात्मक प्रयोग है. दरअसल देवेंद्र राज अंकुर ने यही शैली ‘कहानी के रंगमंच’ में अपनाई है. उन्होंने 1975 में निर्मल वर्मा की कहानी ‘तीन एकांत’ इस विधा की शुरुआत की थी. न्होंने 1996 में पहली बार ‘बन्द गली का आखिरी मकान’ का मंचन किया था. इस तरह ‘कहानी के रंगमंच’ के वर्ष 50 वर्ष पूरे हो रहे हैं. इस आधी सदी में उन्होंने करीब 500 से अधिक कहानियों का मंचन किया है.
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Tags: Hindi Literature, Literature, Literature and ArtFIRST PUBLISHED : April 29, 2024, 11:21 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed