शीना बोरा की गायब हड्डियों की असल कहानी से पर्दा उठाती किताब
शीना बोरा की गायब हड्डियों की असल कहानी से पर्दा उठाती किताब
Sheena Bora Murder Case: INX मीडिया की पूर्व सीईओ इंद्राणी मुखर्जी की बेटी शीना बोरा की 2012 में गला घोंटकर हत्या की गई थी. शीना के कत्ल का इल्जाम इंद्राणी मुखर्जी, उसके पूर्व पति संजीव खन्ना और ड्राइवर श्यामवर राय पर है. सीबीआई का आरोप है कि शीना की हत्या उसकी मां इंद्राणी मुखर्जी, उसके पूर्व पति संजीव खन्ना और ड्राइवर श्यामवर राय ने गला घोंटकर की थी. और उसके शव को पेन गांव में लाकर जला दिया था.
Sheena Bora Murder Case: शीना बोरा हत्याकांड एक बार फिर से सुर्खियों में है. आज से 22 साल पहले 2012 में रायगढ़ के पेन गांव के जंगल से जब्त की गई जिन हड्डियों को सीबीआई ने शीना बोरा की बताया था, वे हड्डियां अब लापता हैं. अभियोजन पक्ष ने इस बात की जानकारी मुंबई की स्पेशल कोर्ट को दी है. कोर्ट को बताया गया है कि शीना बोरा की हड्डियां अब गायब हैं. हड्डियों को जांच के लिए मुंबई के जेजे अस्पताल भेजा गया था. सीबीआई ने बताया कि बहुत खोजने के बाद भी ये हड्डियां नहीं मिल रही हैं.
शीना बोरा के मर्डर केस के बारे में राजकमल प्रकाशन से एक पुस्तक प्रकाशित हुई थी- एक थी शीना बोरा. इसे लिखा है संजय सिंह ने. इस पुस्तक में बेहद चर्चित शीना बोरा हत्याकांड के अब तक हुए खुलासों को एक क्रम के साथ प्रस्तुत किया गया है ताकि पाठक शीना बोरा नाम की युवती की उसकी अपनी ही मां द्वारा की गई सुनियोजित हत्या के केस के पीछे की पूरी कहानी को ठीक-ठीक समझ सके. प्रस्तुत है इस पुस्तक का वह अंश जो शीना की हड्डियों के प्राप्त होने और उनकी जांच की कहानी बयां करता है-
एक थी शीना बोरा
24 अप्रैल, 2012 को हुई शीना की हत्या के एक महीने बाद 23 मई, 2012 को ही उसका शव बरामद कर लिया गया था. उस वक़्त उसके शव को सबसे पहले 34 साल के गणेश धेने ने देखा था. मंडप की सजावट का काम करने वाला गणेश पुलिस पाटिल भी था, जिसे ‘पुलिस मित्र’ भी कह सकते हैं. इस ‘मित्रता’ के तहत उसे अपने गांव हेटावने और आसपास के इलाकों में होने वाली घटनाओं पर नजर रखनी होती थी.
23 मई, 2012 को गणेश धेने पेण से अपने गांव लौट रहा था. पेण में वह शादी में मंडप की सजावट के लिए गया था. गणेश धेने के मुताबिक, वह अपने टेम्पो में लौट रहा था कि रास्ते में उसे बड़ी जोर से पेशाब करने की जरूरत महसूस होने लगी. उसने गागोड़े खुर्द के जंगल वाले इलाके में अपना टेम्पो रोका. पेशाब करने के बाद गणेश धेने ने पास ही जमीन पर गिरे कुछ आमों को उठाना शुरू कर दिया. आम उठाते-उठाते वह जंगल के थोड़ा और अन्दर चला गया. वहां, अचानक उसे दुर्गंध आने लगी. जब उसने उस दुर्गंध का पीछा किया तो देखा कि एक कंकाल ढलान पर पड़ा हुआ है, उससे ही दुर्गंध आ रही है. कोई मांस नहीं था, केवल कंकाल ही रह गया था. उसने बैग के कुछ फटे हुए हिस्से भी देखे. (बाद में पता चला यह वही बैग था, जिसे शीना ने जलती लाश पर फेंका था. यह बैग पूरी तरह जला नहीं था.) गणेश ने स्थानीय पुलिस चौकी को फोन किया, जहां से आगे पेण पुलिस स्टेशन को फोन किया गया.
एक पुलिस इंस्पेक्टर, एक सहायक पुलिस इंस्पेक्टर और तीन और पुलिसकर्मी उस स्थान पर पहुंचे, जहां गणेश इन्तजार कर रहा था. पुलिस टीम के पहुंचते ही उसने शव की ओर इशारा किया. पुलिस ने स्थानीय डॉक्टर को बुलाया. यह इस क्षेत्र में नियमित रूप से पूरी की जाने वाली प्रक्रिया है. डॉक्टर ने शव के अवशेषों की जांच की, जिनमें से कुछ हड्डियों के नमूने पोस्टमॉर्टम के लिए भेजे जाने के लिए संरक्षित किए गए. फिर जमीन खोदने वाले कुछ मजदूरों की मदद से कंकाल को आम के एक पेड़ के पास दफना दिया गया. पुलिस द्वारा एकत्र की गई हड्डियों को मुम्बई के जेजे अस्पताल भेज दिया गया. इसके बाद क्या हुआ, इसके बारे में गणेश को कुछ पता नहीं चला. धेने ने यह भी कहा कि उसे लग रहा था कि जलने के निशान दिखाई देने के कारण व्यक्ति को बेरहमी से मार दिया गया था.
लगता है कि लोकल पेण पुलिस द्वारा अपना काम ठीक से नहीं किया गया. उचित प्रक्रिया नहीं अपनाई गई. शरीर के जलने के संकेत के बावजूद न तो हत्या का मामला दर्ज किया और न ही एफआईआर दर्ज की गई. सिर्फ स्टेशन डायरी में एंट्री की गई. पोस्टमार्टम करने के लिए मुम्बई सैंपल भेजे गए. आगे जांच करने की कोशिश ही नहीं हुई. पेण पुलिस की लापरवाही का पता जेजे अस्पताल की तरफ से जांच करने वाले डॉ. ज़ेबा खान के बयान से भी चलता है. डॉ. खान ने बताया कि पेण पुलिस स्टेशन ने जो सैंपल्स जांच के लिए जेजे अस्पताल भेजे थे, उसकी रिपोर्ट (रिपोर्ट वाइड सर्टिफिकेट नम्बर 3/MLC/491 of 2013 दिनांक 20 दिसम्बर,12-2013) पूरी होने पर अस्पताल की तरफ से फोन करके पेण पुलिस स्टेशन को बताई गई. मगर रिपोर्ट कलेक्ट करने कोई नहीं आया. आखिरकार, वो रिपोर्ट 25 अगस्त, 2015 को खार पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर कदम ने कलेक्ट की.
अटकलें गरम हुईं कि एक सीनियर अफसर के कहने पर एफआईआर दर्ज नहीं की गई. 2015 में हत्या का पता चलने पर सीनियर पुलिस अधिकारियों ने उक्त खामियों की जांच के आदेश दिये. पेण पुलिस ने अगर अपना काम शुरुआत में लाश का पता लगने पर ही ठीक तरीके से किया होता तो शायद केस बहुत पहले ही खुल गया होता.
डॉक्टर संजय ठाकुर के मुताबिक, 2012 में वह रायगढ़ जिले के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में काम करते थे. वह मेडिकल टेस्ट के लिए शव के नमूने लेने के लिए घटनास्थल गए थे. उन्होंने मामले में एडवांस डेथ सर्टिफिकेट और साथ ही पोस्टमार्टम रिपोर्ट बनाई थी. मगर उस रिपोर्ट में मौत के कारण के बारे में कुछ नहीं कहा.
अपने बयान में डॉ. संजय ठाकुर ने उस घटनाक्रम के बारे में कुछ इस तरह बताया- पुलिस ने मुझसे मौत का कारण नहीं पूछा. यह कहना सही है कि डॉक्टर के लिए पोस्टमॉर्टम के माध्यम से सामने आने वाली किसी भी गड़बड़ी या सन्दिग्ध परिस्थितियों का उल्लेख करना अनिवार्य है. यह कहना सही है कि मैंने पोस्टमॉर्टम में ऐसी कोई एंट्री नहीं की.
इससे यही ज़ाहिर होता है कि यह केस पेण पुलिस के निकम्मेपन व लापरवाही की वजह से दब गया या किसी खास वजह से दबा दिया गया. अगस्त, 2015 में मुम्बई पुलिस को पहला सुराग मिलने तक यह मामला गुप्त रहा.
23 मई, 2012 को शीना के शव की पहली बरामदगी के बारे में पूछने पर पेण पुलिस ने मुम्बई पुलिस को बताया और कहा कि ऑन स्पॉट पोस्टमार्टम भी किया गया था.
28 अगस्त, 2015 में दूसरी बार शीना का कंकाल बरामद किया गया.
मुम्बई पुलिस की एक टीम इसके लिए रायगढ़ जिले की पेण तहसील में गणेश धेने की मदद से उस जगह पहुंची. पुलिस की टीम में खुदाई करने वाले मज़दूर और कुछ फोरेंसिक एक्सपर्ट भी थे. इन्हें स्थानीय ग्रामीणों से भी मदद मिली. उस वक़्त तीन साल बाद शव की लोकेशन का पता लगाना आसान काम नहीं था. आसपास का माहौल काफी कुछ बदल चुका था. अगस्त का महीना चूंकि मॉनसून का महीना होता है, इसलिए यह इलाका उस समय (मई, 2012 यानी गर्मी का महीना) से अलग दिखता है, जब शव को दफनाया गया था. अब उसे ढूँढ़ना मुश्किल था. जंगल में कई नये पौधे उग आए थे, जिससे जगह अलग दिख रही थी. गणेश धेने को इतना याद था कि कंकाल को आम के एक पेड़ के पास दफनाया गया था, लेकिन उस इलाके में आम के बहुत सारे पेड़ थे. अगले छह घंटों तक कई जगह खुदाई की गई. हर बार असफलता ही हाथ लगी. मगर आखिरकार गणेश धेने ने उस जगह को ढूँढ़ ही लिया. पुलिस शव के अवशेषों को बरामद करके डीएनए और बाकी मेडिकल टेस्ट के लिए ले गई.
इस टेस्ट की रिपोर्ट के बाद जन्म हुआ FM579/15 बनाम FM578/15 के विवाद का.
एफएम 579/15 बनाम एफएम578/15 विवाद
2 सितम्बर, 2015 को नायर अस्पताल ने खार पुलिस स्टेशन को भेजी गई बोन एग्जामिनेशन रिपोर्ट में कहा कि उनके द्वारा 2015 में खोदकर निकाली गई हड्डियां (सैंपल एफएम/578/2015) इंसान की ही थीं. मगर जैसे ही यह जानकारी निकलकर बाहर आई तो इस पर भी विवाद खड़ा हो गया. विवाद था एफएम 579/15 बनाम एफएम 578/15 का. 2015 में मामला खुलने के बाद एक्सपर्ट राय के लिए नायर अस्पताल के पास दो सैंपल भेजे गए. एक सैंपल एफएम 579/15 था, जिसे पेण पुलिस ने जेजे अस्पताल के पास 2013 में भेजा था. इसी सैंपल को 2015 में नायर अस्पताल के पास भेजा गया. दूसरा सैंपल एफएम 578/15 था. इसे खार पुलिस ने पेण से खुदाई करके 2015 में बरामद किया था.
5 सितम्बर, 2015 को नायर अस्पताल द्वारा खार पुलिस को भेजे गए लेटर में कई सवालों के जवाब दिये हैं. जैसे—
– ज़्यादातर इंसानी हड्डियों की डुप्लिकेशन के आधार पर एफएम 578/15 और एफएम579/15 के भेजे गए कंकालों के अवशेष आपस में मैच नहीं करते.
– एफएम578/15 और एफएम579/15 के दांतों के सैंपल भी आपस में मैच नहीं करते.
– एफएम 579/15 के बालों का एफएम578/15 के कंकालों के अवशेषों से जहां तक मैच करने का सवाल है, यह हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता.
– एफएम 578/15 और एफएम579/15 के बीच की हड्डियों के समान होने के बारे कहा गया कि नहीं, क्योंकि इंसानी हड्डियों के डुप्लिकेशन के अलावा जानवरों की हड्डियां भी थीं.
पेण पुलिस के लिए पोस्टमार्टम करने वाले डॉ. संजय ठाकुर ने लिखा कि उन्होंने सिर्फ राइट ह्यूमर्स (एक तरह की हड्डी का प्रकार) को ही संरक्षित किया था. मगर एफएम579/15 में कई सारी जली व बिन जली हड्डियां थीं, जिनमें जानवरों की हड्डियां भी थीं.
पेण पुलिस स्टेशन के 2012 के लिखे लेटर के मुताबिक दाएं हाथ की हड्डी को संरक्षित किया गया था. उसके सैंपल एफएम 579/15 से ऐसा कुछ नहीं मिला. इसके विपरीत एफएम 578/15 वाले सैंपल की वजह से जांच को बहुत बल मिला. बाद में अन्य फोरेंसिक मेडिकल टेस्ट्स में कई बातें सपोर्ट में आईं, जैसे— कंकाल का लिंग, हत्या के वक़्त की उम्र, कद और मौत की वजह.
एम्स (ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस) के मेडिकल बोर्ड ने भी नायर अस्पताल के निष्कर्षों को मेडिकल साइंस के आधार पर से सुसंगत माना. इसमें अपने अतिरिक्त निष्कर्ष भी जोड़े, जिसमें डीएनए रिपोर्ट (नम्बर एम.टी. नम्बर 24026-30/15) भी थी. इस रिपोर्ट के मुताबिक, कंकाल की बायोलॉजिकल मां इंद्राणी मुखर्जी थी. एम्स मेडिकल बोर्ड ने कहा कि मौत करीब तीन साल पहले हुई थी. बोर्ड ने ये भी निष्कर्ष निकाला कि यह हत्या का मामला था. यह हत्या गला दबाने से हुई थी.
इन तमाम विसंगतियों के चलते बचाव पक्ष के वकीलों के सवाल और अभियोजन पक्ष का सिरदर्द बढ़ गया.
7 सितम्बर को अपनी टीम के साथ मिलकर मैंने एक रिपोर्ट फाइल की. इस रिपोर्ट में हमने खुलासा किया कि फोरेंसिक जांच में यह पुष्टि हो गई है कि रायगढ़ के जंगल से बरामद किए गए कंकाल के अवशेष के नमूने डीएनए टेस्ट में इंद्राणी मुखर्जी और मिखाइल बोरा से मेल खाते हैं.
पुलिस ने अब तक बहुत से सबूत इकट्ठा कर लिये थे लेकिन उनके सामने सवाल यह था कि अगर सिर्फ शीना की लाश को ठिकाने लगाना था तो एक बैग ही बहुत था. दो बैग क्यों खरीदे गए? दूसरा बैग किसके लिए था?
Tags: Crime News, Mumbai NewsFIRST PUBLISHED : June 15, 2024, 19:08 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed