पारंपरिक खेती करने वाले किसान हो जाएं सावधानइस फसल लगाने से पहले जानें यह बात

कन्नौज में मक्का की खेती करीब 55000 हेक्टेयर में किसान करते हैं. मक्का की खेती में करीब 10 बार पानी लगाने की जरूरत होती है. इस सीजन भी मक्का में बहुत ज्यादा पानी लगता है.

पारंपरिक खेती करने वाले किसान हो जाएं सावधानइस फसल लगाने से पहले जानें यह बात
अंजली शर्मा /कन्नौज. कन्नौज में किसान अपनी पारंपरिक खेती आलू की फसल के बाद सबसे बड़े पैमाने पर मक्का की फसल करते हैं. मक्का की फसल साल में दो बार की जाती है. ऐसे में इस समय लगने वाली मक्का में किसानों को सबसे ज्यादा पानी की जरूरत होती है. लेकिन, जिस तरह से कन्नौज के कुछ इलाकों में लगातार पानी की कमी हो रही है. वह डार्क जोन में जा रहे हैं. किसानों को मक्के की फसल के साथ-साथ कुछ ऐसी फसलें करनी चाहिए जिसमें पानी का कम प्रयोग हो. कन्नौज में मक्का की खेती करीब 55000 हेक्टेयर में किसान करते हैं. मक्का की खेती में करीब 10 बार पानी लगाने की जरूरत होती है. इस सीजन भी मक्का में बहुत ज्यादा पानी लगता है. जिस कारण लगातार बीते कई सालों से कन्नौज के कुछ क्षेत्र सहित आने वाले समय में कन्नौज का मुख्यालय भी डार्क जोन यानी की पानी की कमी वाला क्षेत्र होने वाला है. ऐसे में आने वाला समय बड़ी समस्या खड़ी करने वाला है जिसके लिए सावधानी नहीं बरती गई तो हालात बेकाबू हो जाएंगे. दो बार होती यह फसल मक्का की फसल साल में दो बार होती है. एक फसल जायत में दूसरी फसल खरीफ में की जाती है. जायत की फसल गर्मियों में होती है. वहीं, खरीफ की फसल बरसात में होती है. बरसात के माह में होने मक्का की फसल में कम पानी लगता है. इसमें प्राकृतिक बारिश का पानी मिलता है. वहीं, जायत में मक्का की फसल में भीषण गर्मी होती है.फसल को बचाने के लिए पानी की जरूरत ज्यादा होती है. क्या करे उपाय आने वाले समय में पानी की कमी ना हो इसके लिए किसानों को सबसे पहले ऐसी फसलों का चयन करना चाहिए. जिनमें कम से कम पानी का प्रयोग हो. वहीं, मक्का की फसल करने वाले किसानों को भी फसल में पानी लगाते समय कुछ विशेष सावधानियां बरतनी होगी. ट्यूबवेल के माध्यम से खेतों में पानी लगाने से पानी का दोहन बहुत ज्यादा होता है. वहीं, अगर अंडरग्राउंड पाइप के माध्यम से जरूरत के हिसाब से पानी लगाया जाएगा तो फिर पानी कम लगेगा. खेतों में नमी बनी रहेगी. जल संरक्षण के साथ-साथ फसलों के बेहतर उत्पादन के लिए किसानों को कई तरह की सलाह दी जाती है. उसमें से एक सिंचाई की बौछारी विधि है. इस विधि से सिंचाई करने पर किसानों की लागत कम होती है. इसके साथ ही अच्छा उत्पादन मिलता है. बौछारी विधि को ‘टपक सिंचाई’ या ‘बूंद-बूंद सिंचाई’ भी कहते हैं. क्या बोले कृषि अधिकारी जिला कृषि अधिकारी आवेश कुमार बताते है कि कन्नौज में आलू की फसल के बाद किसान बड़े पैमाने पर मक्का की फसल किसान करते हैं. इस बार करीब 55000 हेक्टेयर क्षेत्र में किसानों ने मक्का की फसल की है. किसान साल में दो बार मक्का की फसल करते हैं. जायत और खरीफ जायत के मौसम में मक्का की फसल में कम से कम 10 बार पानी लगाना होता है. जिस कारण पानी का दोहन बहुत ज्यादा होता है. कन्नौज के कई ऐसे ब्लॉक हैं जो पहले से डार्क जोन में जा चुके हैं. अगला नंबर कन्नौज मुख्यालय ब्लॉक का है. ऐसे में किसानों को वक्त रहते सचेत हो जाने की जरूरत है. क्योंकि, मक्का की फसल में जिस तरह से पानी की जरूरत होती है आने वाले समय में कन्नौज में पानी का लेवल बहुत नीचे चला जाएगा. जिससे अन्य बहुत सारी समस्याएं खड़ी हो जाएगी. वहीं किसानों को चाहिए कि कुछ विधियां कृषि विभाग से सीख कर इस फसल को करें और वही मक्का की फसल के साथ-साथ अन्य ऐसी फसलों को भी करें जिनमें पानी कम लगता हो. Tags: Hindi news, India agriculture, Kannauj news, Latest hindi news, Local18, Uttar pradesh newsFIRST PUBLISHED : May 23, 2024, 21:39 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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