पूरा गांव छोड़ गया बुजुर्ग नहीं झुके ऐसी क्या थी जिद मरने पर सब कर रहे सलाम
पूरा गांव छोड़ गया बुजुर्ग नहीं झुके ऐसी क्या थी जिद मरने पर सब कर रहे सलाम
2001 की जनगणना के अनुसार सेकराकुडी पंचायत के मीनाक्षीपुरम गांव में कभी 1,296 निवासी थे. फिर पर्यावरणीय के बदलावों, बारिश में उतार-चढ़ाव और स्थायी सूखे की अथक पकड़ ने धीरे-धीरे गांव की जीवन शक्ति को खत्म कर दिया. अब वह एक भूतहा गांव है.
मदुरै. जब 73 साल के कंदासामी नायकर ने रविवार को मीनाक्षीपुरम में अंतिम सांस ली, तो यह तमिलनाडु के तूतीकोरिन जिले में उनके गांव की आखिरी सांस थी. नायकर इस गांव के एकमात्र निवासी थे. जो एक ऐसे समुदाय का मार्मिक प्रतीक था जो कभी संपन्न था, लेकिन अब वह महज एक भूतहा गांव बन गया है. 2001 की जनगणना के अनुसार सेकराकुडी पंचायत के मीनाक्षीपुरम गांव में कभी 1,296 निवासी थे. फिर भी पर्यावरणीय के बदलावों, बारिश में उतार-चढ़ाव और स्थायी सूखे की अथक पकड़ ने धीरे-धीरे गांव की जीवन शक्ति को खत्म कर दिया. जिसके कारण पिछले 10 साल में बड़े पैमाने पर पलायन हुआ. कभी उपजाऊ रहे खेत बंजर हो गए. जिससे परिवारों को कहीं और स्थिरता और आजीविका की तलाश करनी पड़ी.
‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस पलायन के बीच नायकर मीनाक्षीपुरम से चिपके रहे. अपनी पत्नी से 20 साल अधिक जीवित रहे और उसी गांव में रहते रहे, जहां उनका जन्म हुआ था. उनके दो बेटे और दो बेटियां हैं. छोटे बेटे बाला कृष्णन ने मीनाक्षीपुरम के बदलाव पर विचार किया. उन्होंने बताया कि ‘गांव खेती पर बहुत ज्यादा निर्भर था. बारिश की कमी और पानी की कमी के कारण हालात बिगड़ने लगे. लोगों को पानी और दूसरी बुनियादी सुविधाएं पाने के लिए 3-4 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था, जिससे वे गांव में रहने में रुचि नहीं रखते थे.’
आखिरी दिनों तक अपना काम खुद किया
नायकर की आखिरी इच्छा गांव में मरने की थी. अपने आखिरी महीनों तक उन्होंने अपने रोजमर्रा के काम खुद ही किए और अपना खाना खुद बनाया. हाल ही में कृष्णन ने अपने पिता की मदद के लिए किसी की व्यवस्था की. 15 किलोमीटर दूर कासिलंगपुरम में रहने वाले कृष्णन अक्सर अपने पिता के लिए खाना लाते थे या नायकर अपने बेटे के घर जाते थे. रविवार को सूरज ढलने के बाद जिस शख्स ने नायकर की जांच की, उसने पाया कि वह बेजान पड़े हैं. कृष्णन ने कहा कि ‘भले ही मेरे पिता किसान थे, लेकिन वे रेक्ला और जल्लीकट्टू (बैल दौड़) में हिस्सा लेने के लिए जाने जाते थे.’
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कोई भी गांव में आकर बसने के लिए तैयार नहीं
सेकराकुडी पंचायत की अध्यक्ष आई रामलक्ष्मी ने भारी मन से कहा कि ‘पंचायत की सीमा के भीतर छह गांव हैं. अब, आधिकारिक तौर पर हमने पिछले दशक में हुए पलायन के कारण एक गांव खो दिया है.’ उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में भूजल स्तर में सुधार हुआ है और सड़कें बनी हैं, लेकिन पिछली तकलीफों का भूत अभी भी मंडरा रहा है. कोई भी गांव में आकर बसने के लिए तैयार नहीं है. जैसे-जैसे मीनाक्षीपुरम यादों में खोता जा रहा है, यह इलाके के कई ऐसे ही गांवों के सामने आने वाली चुनौतियों की मार्मिक याद दिलाता है.
Tags: Climate Change, Forest and Climate Change, Tamil naduFIRST PUBLISHED : May 30, 2024, 18:13 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed