सपने तो थे डॉक्टर बनने के पर नीट परीक्षा की हकीकत उम्र भर याद रहेगी
सपने तो थे डॉक्टर बनने के पर नीट परीक्षा की हकीकत उम्र भर याद रहेगी
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद नीट परीक्षा में अब कानूनी दाव पेंच के मौके तकरीबन खत्म हो गए हैं. फिर नीट पास करके मेडिकल कॉलेज में दाखिला पाने की चाहत रखने वाले विद्यार्थियों को नीट 2024 की परीक्षा का विवाद तमाम उम्र याद रहेगा. वे कभी नहीं भूल पाएंगे कि उनके सपने के साथ कितनी उथल पुथल हुई थी.
डॉक्टर बनने के सपने देखने वाली आंखों में तामउम्र नीट परीक्षा के लंबे विवाद की किरकिरी रहेगी
नीट परीक्षा पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला विधिवत सुना दिया गया. तय पाया गया कि पेपर लीक सिस्टमेटिक ब्रीच नहीं था. जब देश की सबसे बड़ी अदालत ने कह दिया तो फिर कोई भी सवाल बेमानी है. हां, किसी प्रभावित को व्यक्तिगत कोई दिक्कत हो तो वो हाईकोर्ट के सामने अपनी बात रख सकता है. फिर भी ये तो तय है कि इस साल जिन आंखों ने डॉक्टर बनने के सपने देखे थे, उनकी आंखों में किरकिरी जरुर रहेगी. ताउम्र वे बच्चे इस साल नीट के इंतहान और फिर इस पर हुई पूरी कवायद को याद रखेंगे.
मेडिकल का सवाल IIT की डॉक्टरी
नीट की परीक्षा होने के बाद पर्चे का एक सवाल ऐसा भी निकला जिसका जवाब खोजने की जहमत खुद मीलॉर्ड को उठानी पड़ी. सवाल मेडिकल के दाखिले के लिए पूछा गया था, लेकिन भरोसा करना पड़ा आईआईटी के जानकारों पर. खैर ये तो ठीक था क्योंकि फिजिक्स के सवाल का जवाब आईआईटी ही दे सकता है. लेकिन ऐसा सवाल पर्चे में लिया ही क्यों गया जिसके दो जवाब होने का अंदेशा था. अब तो सारे बच्चे सही वाला जवाब दे देंगे. लेकिन इस सवाल का असर समझने की जरूरत है. इस सवाल ने टॉपर्स की लिस्ट तो छोटी कर ही दी. फिर भी पूरे नंबर हासिल करने वालों के पांच नंबर कटने के बाद भी उन्हें तो अच्छे मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिल ही जाएगा. लेकिन जो बच्चे सबसे नीचे रहे होंगे, उनके पांच नंबर कट जाने के बाद उनकी क्या हालत हुई होगी. हो सकता है वे मेरिट से बाहर हो गए हों या बिल्कुल ही ऊंटपटांग कॉलेज में दाखिले के लिए मजबूर हो गए हों. उत्तर बदल जाने से पांच नंबर घटते हैं. जिन्होंने पहले सही माने जा रहे विकल्प का उत्तर दिया होगा उनके जवाब गलत होने से चार नंबर तो उस सही जवाब के गलत होने से कट गए और एक नंबर सही जवाब के गलत हो जाने से माइनस मार्किग के मिले हुए नंबरों में से घटा लिया गया.
एनटीए की उदारता !
बच्चों को ये भी नहीं भूलेगा कि इस साल नीट का इंतहान लेने वाली संस्था एनटीए ने कितनी उदारता बरती. एनटीए ने एक ही इस प्रश्न के दो में से एक भी विकल्प चुनने पर चार नंबर दे दिया था. ये बात कोर्ट में सामने आई थी. एक छात्र ने एनटीए के इस फैसले को चुनौती दी थी. कोर्ट ने परीक्षा कराने वाली एजेंसी से पूछा कि ऐसा क्यों किया तो उनकी उदारता सामने आई. एनटीए ने कोर्ट को बताया था कि बहुत से गरीब बच्चे बड़े भाई बहनों के किताब से पढ़ते हैं जिसमें एक अन्य विकल्प को सही बताया गया था. बहुत से छात्र पुस्तक के नए संस्करण से पढ़ते हैं जिसमें चौथे नंबर के विकल्प को सही बताया गया था. अब ये बात समझ से परे है कि भ्रम की स्थिति से बचने के लिए जिन छात्रों ने इस प्रश्न को अटेंप्ट ही नहीं किया उनके एक नंबर क्यों और कैसे काट लिए गए. वहां क्यों नहीं उदारता बरती गई. क्योंकि निगेटिव मार्किंग वाली परीक्षाओं में ज्यादातर छात्र यही करते हैं. आखिरकार सभी पूर्णांक के बराबर नंबर पाने वाले छात्र ही तो नहीं होते.
एनटीए ने इस परीक्षा में 1563 छात्रों को परीक्षा लेने वाले संस्था की तरफ से हुई देर के लिए ग्रेस मार्क्स दिए थे. इसे लेकर भी लंबा विवाद चला था. हालांकि एक अन्य मामले में उस समय के प्रधान न्यायाधीश यूयू ललित ने ऑनलाइन परीक्षाओं में कंप्युटरों में लॉग इन लॉग आउट समय के हिसाब से परीक्षा समय के निर्धारण का निर्देश दिया था. विवाद बढ़ने कोर्ट में एनटीए ने कहा था कि ग्रेस मार्क्स हटा दिया जाएगा. साथ ही पहले ग्रेस मॉर्क्स पाने वाले चाहें तो दुबारा परीक्षा भी ले ली जाएगी. अगर वे परीक्षा नहीं देना चाहते तो बिना ग्रेस मार्क्स के उनकी मार्क्सशीट जारी कर दी जाएगी.
परीक्षा रद्द न करने के कोर्ट के फैसले पर किसी को ऐतराज नहीं हो रहा है. होना भी नहीं चाहिए. इससे प्रभावित होने वाले छात्रों की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ जाएगी. जरुरी नहीं है कि जिन छात्रों ने इस बार परीक्षा पास कर ली है वे सारे अगली परीक्षा में उसी तरह का नंबर ले आएं. क्योंकि परीक्षा देते समय की मनःस्थिति का परीक्षा में प्रदर्शन पर बहुत अधिक असर होता है. फिर भी ये एनएटी की ये दलील गले से उतर नहीं पा रही है कि गड़बड़ सिर्फ बिहार के दो जिलों में ही हुई. खैर इस पर कोर्ट ने जो फैसला दे दिया तो फिर बहुत सवाल नहीं उठ सकते.
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आखिरकार ये डॉक्टरी की पढ़ाई में दाखिले के लिए ली गई परीक्षा है. बहुत सारे बच्चों और उनके अभिभावकों के लिए ये सबसे महत्वपूर्ण मोड़ होता है. इस परीक्षा के लिए पर्चा बनाने में इस तरह की लापरवाही कैसे हुई. कौन लोग इसके जिम्मेदार हैं. फिर उनकी गलती को दबाने के लिए बेइमानी की श्रेणी तक जा रही उदारता क्यों दिखाई गई. इसका दोषी कौन है. इन गड़बड़ियों के लिए जिम्मेदार लोगों पर भी एक्शन लिया जाना चाहिए. तभी ऐसी नजीर कायम होगी कि संवेदनशील परीक्षाओं में हर स्तर पर संजीदगी जरूरी है.
Tags: NEET, Neet exam, Supreme court of indiaFIRST PUBLISHED : August 2, 2024, 14:23 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed