इन दोनों जजों को पहचान लीजिए इन्होंने ही दिलाया मुस्लिम महिलाओं को हक
इन दोनों जजों को पहचान लीजिए इन्होंने ही दिलाया मुस्लिम महिलाओं को हक
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में एक शानदार फैसला सुनाया. यह फैसला जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की डबल बेंच ने सुनाया. आइए इस खबर में दोनों जजों के बारे में जानते हैं.
नई दिल्ली: तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के लिए बुधवार यानी 10 जुलाई का दिन बेहद खास रहा. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला अपराध प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 (अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144) के तहत अपने पति से भरण-पोषण की हकदार है. यह फैसला अपने आप में ऐतिहासिक रहा. यह फैसला जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की डबल बेंच ने सुनाया.
यह फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्लिम महिला ही नहीं, किसी भी धर्म की महिला भरण पोषण की अधिकारी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 125 के तहत महिला मेंटेनेंस का केस पति पर डाल सकती है. इसमें धर्म रुकावट नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं को भी दिया गुजारे भत्ते का हक, कहा- धर्म रुकावट नहींसुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि अब समय आ गया है कि भारतीय पुरुष परिवार के लिए गृहिणी की भूमिका और त्याग को पहचानें. उन्हें संयुक्त खाते और एटीएम खोलकर उसे वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिए.
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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को महिलाओं के भरण पोषण पर एक बड़ी लकीर खींचते हुए कहा कि इसमें धर्म बाधा नहीं है. कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के लिए भी भरण पोषण के लिए पति की जिम्मेदारी तय की. बता दें कि तेलंगाना की एक महिला ने भरण पोषण के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. इस मामले में पति हाई कोर्ट में केस हार गया था. जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की डबल बेंच ने इस पर फैसला सुनाया.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि मुस्लिम महिला ही नहीं, किसी भी धर्म की महिला भरण पोषण की अधिकारी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 125 के तहत महिला मेंटेनेंस का केस पति पर डाल सकती है. इसमें धर्म रुकावट नहीं है. जस्टिस नागरत्ना ने फैसला सुनाते हुए एक बड़ी बात भी कही. उन्होंने कहा कि अब वक्त आ गया है कि भारतीय पुरुष पत्नियों के त्याग को पहचानें. आइए उन दोनों जजों के बारे में जानते हैं जिन्होंने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया है.
कौन हैं जस्टिस बीवी नागरत्ना?
जस्टिस बीवी नागरत्ना का जन्म 30 अक्टूबर साल 1962 में हुआ था. उनके पिता जस्टिस ईएस वेंकटरमैया 19 जून 1989 से 17 दिसंबर साल 1989 के बीच भारत के 19वें मुख्य न्यायाधीश भी रह चुके हैं. जस्टिस बीवी नागरत्ना ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के लॉ डिपार्टमेंट से एलएलबी की है. पढ़ाई पूरी करने के बाद बीवी नागरत्ना ने 28 अक्टूबर 1987 को एक वकील के रूप में अपनी लॉ-करियर की शुरुआत बेंगलुरु में की थी. उन्हें 18 फरवरी साल 2008 को कर्नाटक हाई कोर्ट का अतिरिक्त जज नियुक्त किया गया था और 17 फरवरी, 2010 को एक स्थायी न्यायाधीश बनाया गया.
हाई कोर्ट के जज के रूप में बीवी नागरत्ना के लगभग 13 साल का कार्यकाल पूरा हो गया है और साल 2021 में जब सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम ने केंद्र सरकार के पास कोर्ट में खाली पड़ी वैकेंसी के लिए 9 नामों की सिफारिश की तो उनमें जस्टिस बीवी नागरत्ना का नाम भी शामिल था. इसके बाद बीवी नागरत्ना सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बनीं.
कौन हैं जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह?
जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह मूल रूप से पंजाब के रोपड़ के रहने वाले हैं. 12 मार्च 1963 को रोपड़ में जन्मे जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह ने सेंट मैरी कॉन्वेंट स्कूल कसौली हिमाचल प्रदेश से शुरुआती शिक्षा ली. उन्होंने सैफुद्दीन ताहिर हाई स्कूल अलीगढ़ से भी पढ़ाई की. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से विज्ञान संकाय में स्नातक किया. इसके बाद एलएलबी की डिग्री ली.पंजाब और हरियाणा बार काउंसिल में 6 जून 1987 को जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह ने नामांकन करवाया. जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह ने संविधान, सेवा, श्रम, नागरिक कानून सहित मूल अपीलीय दोनों पक्षों पर प्रैक्टिस की. इन्हें सुप्रीम कोर्ट, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट, दिल्ली हाई कोर्ट, हिमाचल प्रदेश सहित कई हाई कोर्ट में कामकाज का अनुभव है.
Tags: Supreme Court, Supreme court of indiaFIRST PUBLISHED : July 11, 2024, 10:09 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed