सुप्रीम कोर्ट में बन गया है पेंडिग केसों का पहाड़ 5 साल में बढ़ गए 35% मामले
सुप्रीम कोर्ट में बन गया है पेंडिग केसों का पहाड़ 5 साल में बढ़ गए 35% मामले
Supreme Court Case Pending: पिछले पांच सालों में सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामलों की संख्या में 35% की वृद्धि हुई है, जो 2019 में 59,859 से बढ़कर 2023 के अंत तक 80,765 हो गई है. यह जानकारी खुद कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने संसद में दी है.
नई दिल्ली: कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने गुरुवार को संसद को बताया कि पिछले पांच सालों में सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामलों की संख्या में 35% की वृद्धि हुई है, जो 2019 में 59,859 से बढ़कर 2023 के अंत तक 80,765 हो गई है. कुल मिलाकर, पिछले पांच सालों में लंबित मामलों में 20,900 से अधिक की वृद्धि हुई है, जिससे देश की शीर्ष अदालत पर दबाव बढ़ रहा है, जबकि यह पूरी ताकत से काम कर रही है.
देश भर के 23 उच्च न्यायालयों (High Court) में लंबित मामलों की संख्या 2019 में 46.8 लाख से बढ़कर 2023 में 62 लाख से अधिक हो गई, जो 15 लाख से अधिक मामलों और 33% की वृद्धि को दर्शाता है. हालांकि, सबसे अधिक लंबित मामले अधीनस्थ न्यायालयों में हैं, जो 2023 के अंत तक 4.4 करोड़ मामले होंगे. सरकार द्वारा साझा की गई जानकारी के अनुसार, 2019 की तुलना में, जब निचली न्यायपालिका में 3.2 करोड़ मामले लंबित थे, लंबित मामलों में 1.2 करोड़ से अधिक मामलों की वृद्धि हुई है, जो 38% की वृद्धि है.
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कानून मंत्री ने इस मामले पर क्या कहा?
कानून मंत्री ने कहा कि ‘अदालतों में मामलों के लंबित रहने के कई कारण हैं, जिनमें इंफ्रास्ट्रक्चर और सहायक कोर्ट स्टाफ की उपलब्धता, शामिल तथ्यों की जटिलता, साक्ष्य की प्रकृति, हितधारकों जैसे बार, जांच एजेंसियां, गवाह और वादी (अभियोजक) का सहयोग तथा नियमों और प्रक्रियाओं का उचित उपयोग शामिल हैं.’ मेघवाल ने कहा कि मामलों के निपटान में देरी के अन्य कारणों में विभिन्न प्रकार के मामलों के निपटान के लिए संबंधित अदालतों द्वारा निर्धारित समय-सीमा का अभाव, बार-बार स्थगन और निगरानी के लिए पर्याप्त व्यवस्था का अभाव शामिल है.
क्यों हो रहा है ऐसा मंत्री ने बताया
मंत्री ने माना कि आपराधिक न्याय प्रणाली में शामिल एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी के कारण अक्सर मामले लंबित रहते हैं. हालांकि आपराधिक न्याय प्रणाली पुलिस, अभियोजन, फोरेंसिक लैब और चिकित्सा-कानूनी विशेषज्ञों जैसी विभिन्न एजेंसियों की सहायता से काम करती है. लेकिन मंत्री ने कहा कि अदालतों में लंबित मामलों का समाधान न्यायपालिका के विशेष अधिकार क्षेत्र में आता है.
चीफ जस्टिस ने जताई चिंता
चीफ जस्टिस (CJI) डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा, ‘दुर्भाग्यवश, आज समस्या यह है कि हम अधीनस्थ अदालतों के न्यायाधीशों द्वारा दी गई किसी भी राहत को संदेह की दृष्टि से देखते हैं. इसका मतलब यह है कि अधीनस्थ अदालत के न्यायाधीश महत्वपूर्ण मामलों में जमानत देकर कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं.’ प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि न्यायाधीशों को प्रत्येक मामले की बारीकियों और सूक्ष्मताओं को देखना होगा. उन्होंने कहा कि ज्यादातर मामले सुप्रीम कोर्ट में आने ही नहीं चाहिए.
Tags: Supreme Court, Supreme court of indiaFIRST PUBLISHED : July 29, 2024, 07:26 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed