सजा माफ करने पर SC ने उठाया सवाल उम्रकैद में 14 साल की जेल से पहले क्या राज्यपाल कर सकते हैं रिहा
सजा माफ करने पर SC ने उठाया सवाल उम्रकैद में 14 साल की जेल से पहले क्या राज्यपाल कर सकते हैं रिहा
कई मौकों पर राज्य सरकारों की सलाह पर कार्य करते हुए संबंधित राज्यों के राज्यपालों ने स्वतंत्रता दिवस जैसे विशेष अवसरों पर कैदियों को सजा में सामूहिक छूट देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत अपनी क्षमा और छूट की शक्तियों का प्रयोग किया था.
हाइलाइट्सकई मौकों पर राज्य सरकारों की सलाह पर राज्यपालों ने कैदियों को सजा में सामूहिक छूट दी.SC ने केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर 4 हफ्ते के भीतर जवाब दाखिल करने के लिए कहा है.CrPC की धारा 433-ए के तहत उम्रकैद की सजा वाले को 14 साल जेल में बिताने के बाद ही माफी.
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट (SC) ने मंगलवार को केंद्र और राज्यों से इस बारे में जवाब मांगा कि क्या राज्यपाल दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code-CrPC) की धारा 433-ए के नियमों के बावजूद दोषियों को सजा में सामूहिक छूट दे सकते हैं, जिसके तहत उम्रकैद की सजा पाने वाले एक दोषी शख्स को 14 साल जेल में बिताने के बाद ही माफी दी जा सकती है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में फैसला सुनाया है कि अदालत द्वारा जघन्य अपराधों में दोषी को आजीवन कारावास की सजा का मतलब है कि उसे अपना शेष जीवन जेल में बिताना अनिवार्य किया गया था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह फैसला सीआरपीसी की धारा 433-ए के तहत 14 साल की कैद से गुजरने के बाद सजा को माफ करने की राज्य की शक्ति को खत्म नहीं करेगा.
कई मौकों पर राज्य सरकारों की सलाह पर कार्य करते हुए संबंधित राज्यों के राज्यपालों ने स्वतंत्रता दिवस जैसे विशेष अवसरों पर कैदियों को सजा में सामूहिक छूट देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत अपनी क्षमा और छूट की शक्तियों का प्रयोग किया था. जब एक हत्या के दोषी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, तो उसे हरियाणा के राज्यपाल ने अपनी अनुच्छेद 161 की शक्तियों का प्रयोग करते हुए केवल आठ साल की कैद के बाद 1998 में रिहा कर दिया था. इस निर्णय की वैधता की जांच करने वाली तीन जजों की पीठ ने इस सवाला को पांच जजों की बेंच को भेज दिया था.
सवाल ये था कि ‘क्या संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत दी गई शक्ति का प्रयोग करते हुए एक नीति बनाई जा सकती है, जहां कुछ निश्चित नियम या शर्तों को तय किया जा सकता है, जिनके पूरा होने पर कार्यपालिका द्वारा किसी भी मामले के संबंध में तथ्यों या सामग्री को राज्यपाल के सामने रखे बिना सजा में छूट का लाभ दिया जा सकता है. और क्या इस तरह की व्यवस्था संहिता की धारा 433-ए के तहत तय जरूरतों को खत्म कर सकती है.
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जस्टिस इंदिरा बनर्जी, हेमंत गुप्ता, सूर्यकांत, एमएम सुंदरेश और सुधांशु धूलिया की पीठ ने इस मुद्दे को उठाया. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति की छूट और क्षमा की शक्तियों पर एक अलग असर पड़ेगा और इसलिए केंद्र के तर्कों को ध्यान में रखा जाना चाहिए. पीठ ने कहा कि यह अन्य राज्यों को भी प्रभावित कर सकता है और केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी करने का फैसला किया है. जिसमें उन्हें चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के लिए कहा गया है.
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Tags: CrPC, Governor, Supreme Court, Supreme court of indiaFIRST PUBLISHED : September 14, 2022, 06:57 IST